खटकने क्यों लगे वित्तीय लाभ

By: Jan 22nd, 2018 12:05 am

मेवरिक रोशन चौहान

लेखक, सुंदरनगर से हैं

कोई भी देश अपनी सेना की वजह से ताकतवर माना जाता है। अगर देश चैन की नींद सोता है, तो उसकी वजह भी सेना ही है।  जब देश के लोग सो रहे होते हैं, तो देश का सैनिक सरहदों पर जाग रहा होता है। एक सैनिक होने का मतलब सिर्फ वर्दी धारण करना ही नहीं है, बल्कि हर पल देश के लिए कुर्बानी देने के लिए तैयार रहना है। किसी भी राष्ट्र की उन्नति के लिए राष्ट्र की नीतियां, कानून, शिक्षा, सैन्य शक्ति, प्रशासन,  नागरिकों और विभिन्न संगठनों के दबाव समूहों की अहम सहभागिता होती है। कोई भी राष्ट्र तभी विकसित हो सकता है, जब वहां की सरहदें सुरक्षित हों। नागरिक संविधान में वर्णित अपने मूलभूत अधिकारों का उपयोग तभी कर सकता है, जब आंतरिक हालात सही हों।  पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे राष्ट्र इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हमारे समक्ष हैं। सैनिक जीवन अपने आप में ही कठिन है, निरंतर  संघर्षरत है जो बाल्यावस्था में ही उनके चयन प्रक्रिया से शुरू हो जाता है। उनके हमउम्र अपने सुनहरे दिनों का आनंद ले रहे होते हैं और 18-19 वर्ष की उम्र में सैनिक देश की सरहदों को सुरक्षित रखने में मुस्तैद हो जाते हैं। इन्हें कल तक जिंदगी की सही परिभाषा भी मालूम नहीं थी, अपने माता-पिता, भाई-बहन पर आश्रित रहने वाले, वे देश की सरहदों पर शहादत देने और वतन की तरफ नापाक इरादे रखने वालों के मंसूबों को बर्बाद  करने में तत्पर रहते हैं। जहां उनके हमजोली अपना भविष्य सुरक्षित करने में कड़ी मेहनत कर रहे होते हैं, उस उम्र में वही सैनिक कभी माइनस 35 डिग्री के तापमान में ठंडे मरुस्थल सियाचिन ग्लेशियर, तपते रेगिस्तान, असम जैसे उत्तरी-पूर्वी राज्यों के घने जंगलों में तो कभी जम्मू और कश्मीर की बहुरूपिया वादियों में जिंदगी और मौत के साथ आंख-मिचौनी खेल रहे होते हैं। आपरेशन के दौरान सैनिक टुकड़ी की जटिलताओं को देखते हुए आर्म्ड फोर्सेज (स्पेशल पावर) एक्ट-1958 सर्वप्रथम मणिपुर में लागू किया गया। युद्ध शब्द अपने आप ही विनाश का भयानक दृश्य हमारे सामने रख देता है, पर युद्ध के लिए तैयार रहने के लिए लंबे युद्ध अभ्यास सैनिक जीवन का अहम हिस्सा हैं। एक सैनिक के जीवन के संघर्ष और चुनौतियों को परिभाषित करना सरल नहीं है।

राष्ट्र की सुरक्षा के लिए सैनिकों के सहयोग, समर्पण और शहादत को ध्यान में रखते हुए सेवानिवृत्ति के पश्चात उनका मनोबल ऊंचा बना रहे और अपने परिवार की सही देखरेख कर सकें, इसके अंतर्गत डीमोबिलाइज्ड सशस्त्र बल (हिमाचल राज्य में गैर तकनीकी सेवा में रिक्तियों का आरक्षण) नियम, 1972 और पूर्व सैनिक  (हिमाचल राज्य में तकनीकी सेवा में रिक्तियों का आरक्षण) नियम, 1985 को लागू किया गया। वर्तमान सरकार ने सत्ता में आते ही सैनिकों के सम्मान और जोश को बनाए रखने के लिए, पिछली सरकार द्वारा पांच अगस्त, 2017 में इन नियमों के 5(1) पर लगाई गई रोक को कैबिनेट में समीक्षा कर निरस्त कर दिया और वित्तीय लाभ को जारी रखने का फैसला लिया।

वर्तमान सरकार द्वारा भूतपूर्व सैनिकों के वित्तीय लाभ को जारी करने से एक खास बुद्धिजीवी वर्ग वित्तीय संकट का हवाला देकर प्रतिरोध कर रहा है। क्या यह बुद्धिजीवी वर्ग सैनिकों के हितों को लेकर भी कभी मंथन करता है? उनकी गिद्ध नजर हमेशा पूर्व सैनिकों के हितों पर ही क्यों रहती है? अनेक नीतियां और संस्थान ऐसे भी हैं, जो सरकार के लिए चुनौती बने हुए हैं। शिक्षा की गुणवत्ता में आ रही निरंतर गिरावट, पेंशन बहाली, जातिगत आरक्षण जैसे अनेक मुद्दे हैं जो विचारणीय हैं। यदि किसी भी वर्ग को यह भ्रम है कि भूतपूर्व सैनिकों के हित उचित नहीं हैं, तो सभी नागरिकों के लिए सेना में पांच वर्ष की सेवा अनिवार्य कर दी जाए। यदि वर्तमान सरकार ने भूतपूर्व सैनिकों के बलिदान और कठिन सैनिक जीवन को देखते हुए कुछ विशेषाधिकार दिए हैं, तो उन  अधिकारों की कसौटी पर भूतपूर्व सैनिक खरे उतरते हैं। बुद्धिजीवी वर्ग जरा एक दिन के लिए ग्लेशियर में रह कर दिखाए, सब समझ आ जाएगा कि सरकार क्यों उन्हें ये सब लाभ देती है। ये सैनिक हमेशा घर से दूर रहते हैं और अकसर शिक्षक वर्ग घर के पास अपनी पोस्टिंग करवाने में लगा रहता है। उन्हें ये नहीं भूलना चाहिए कि जब वे अपनी जवानी गली-मोहल्लों में, बाजारों और मेलों में आनंद से बिता रहे थे, तब ये सैनिक अपने घरों से दूर सरहद पर देश की निगरानी कर रहे थे। आजाद तो हम हो गए, पर इस आजादी को बरकरार रखना उतना ही मुश्किल है। क्योंकि दुश्मन की बुरी नजर हमेशा देश की तरफ रहती है, तो ऐसे में सैनिक ही है, तो उसे मुहतोड़ जवाब देता है। देश की भावी पीढ़ी बनाने वाला अध्यापक ही अगर सैनिक के महत्त्व को नहीं जान सकता, तो यह हैरानी की बात है। बुद्धिजीवी वर्ग को चाहिए कि अपनी संकीर्ण मानसिकता का परित्याग कर अपने से संबंधित संस्थानों पर ध्यान दें, ताकि सरकार द्वारा चलाई जा रही नीतियों, उद्देश्यों को बिना बाधा के हासिल किया जा सके। सरकार पर अनौपचारिक दबाव न बनाएं। राष्ट्र को मजबूत बनाने के लिए हर नागरिक की भूमिका अहम है। मूलभूत उद्देश्यों को सरकार के समक्ष लाया जाए, ताकि राष्ट्र का सही निर्माण हो।


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