खेल मैदानों का संरक्षण

By: Jan 23rd, 2018 12:05 am

नागरिक समाज की अनदेखी का उदाहरण बना एक निर्माण कार्य यह साबित करता है कि किस तरह सरकारों की आंखों में धूल डाली जा सकती है। धर्मशाला में आईजी कार्यालय निर्माण ने पिछली सरकार के बाद जयराम सरकार की आंखों में भी धूल डालकर न केवल जनभावनाओं को कुंद किया, बल्कि यह बता गया कि किस तरह ठेंगा दिखाया जा सकता है। मैदान पर नाहक पुलिस का बोर्ड नागरिक समाज को सताता है, बल्कि अब इसके खेल स्वरूप पर विभाग तन कर बैठ गया है। आश्चर्य यह है कि सरकार के दखल को नजरअंदाज करते हुए महकमे ने अपने इरादों की तस्वीर को ऐसी भूमि पर गाड़ दिया, जो आने वाली पीढि़यों के फेफड़ों को ताजगी देने तथा तमाम खेलों के लिए एक राज्य स्तरीय संपत्ति है। कहां तो सरकार से अपेक्षा रही है कि मैदान को स्टेडियम के प्रारूप में विकसित करते हुए राष्ट्रीय खेलों का मुख्य आयोजन स्थल बनाए, लेकिन इसके विपरीत तीन दशक पूर्व घोषित खेल परिसर को बाकायदा उजाड़ा जा रहा है। उल्लेखनीय है कि इसी मैदान को राष्ट्र के कई बड़े आयोजनों की मेजबानी मिलती रही है और खेल ढांचे में उपयुक्त सुधार के वादों के बावजूद इसे पुलिस की मनमर्जी व हथकड़ी से बांध दिया गया। यह विडंबना और राज्य की अवहेलना है कि प्रदेश के खेल मैदान पर पुलिस अपना हक जमाती है, जबकि यहां विभाग आज तक अपने जवानों की खेल क्षमता तक को निखार न सका। कई बार इस बाबत नागरिक समाज विभिन्न मंचों से मांग कर रहा है कि यहां सत्तर के दशक में घोषित खेल परिसर का ढांचा विकसित करते हुए इसे खेल विभाग के सुपुर्द किया जाए, लेकिन हिमाचल में खेल नीति के अभाव में ऐसा नहीं हो सका। मैदान में बने खेल छात्रावास पर भी पुलिस का कब्जा है, जबकि अन्य छोर पर बास्केटबाल फील्ड को उखाड़कर निर्माण पर उतारू विभाग ने सारी संभावना को तहस-नहस करना शुरू कर दिया है। खेल नीति के अभाव में बड़े खेल मैदानों का संरक्षण नहीं किया, तो आने वाले समय में ये निशान भी मिट जाएंगे। भले ही मंडी शिवरात्रि के लिए पड्डल मैदान के द्वार खुल गए, लेकिन किसी ने यह नहीं सोचा कि इससे कितना नुकसान उस जमीन का होगा जहां खिलाड़ी अपनी क्षमता के बीज बोता है। कमोबेश यही दास्तान सुजानपुर, चंबा, कुल्लू और पालमपुर के मैदानों की है। वर्तमान जयराम ठाकुर सरकार अगर युवाओं के लिए उदाहरण बनकर पेश होना चाहती है, तो इन तमाम मैदानों को केवल खेल गतिविधियों के हिसाब से विकसित करे, जबकि सामाजिक, सांस्कृतिक या व्यापारिक उद्देश्यों के लिए अलग से सामुदायिक मैदान बनाए जाएं। सभी मैदान तुरंत प्रभाव से खेल विभाग के अधीन लाकर राष्ट्रीय स्तर के आयोजन कराए जाएं। इसके अलावा विभिन्न खेलों में प्रशिक्षण के लिए अकादमियां स्थापित करते हुए खेल प्रतिभाओं के माध्यम से हिमाचली उपलब्धियों का मुकाम बदलेगा। सरकार राष्ट्रीय खेलों के आयोजन पर हामी भरे तो रांची की तरह अधोसंरचना का विकास होगा। एक साथ आठ से दस प्रमुख स्थानों पर विभिन्न खेलों का आयोजन संभव बनाने के लिए ढांचागत सुविधाएं सशक्त होंगी, तो इसी हिसाब से धर्मशाला पुलिस मैदान एक प्रतिष्ठित स्टेडियम की तर्ज पर मुख्य आयोजन स्थल बन सकता है। फिलहाल इसके औचित्य पर प्रश्न टांग कर पुलिस विभाग ने अपने दफ्तर की नींव इसके अस्तित्व पर खोद दी है। मुख्यमंत्री के आश्वासन व सुशासन की परख में जनता यह देख रही है कि नागरिक संवेदना पर किस तरह प्रहार करके एक विभाग सारे तर्क व तथ्य मरोड़ रहा है। जरूरी यह है कि मैदान को खेल विभाग को देकर भविष्य की परिकल्पना में इसे राज्य स्तरीय स्टेडियम के प्रारूप में विकसित किया जाए।


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