गीता रहस्य

By: Jan 20th, 2018 12:05 am

वेद मंत्रों के व्याख्यान द्वारा ही यह समझ में आता है कि मनुष्य जाति का जन्म वेद विद्या के विद्वानों के संग में रहकर यज्ञ करना है और ऐसे विद्वानों की सेवा से विषय विकारों का नाश करके अज्ञान का नाश करना है। पुनः वेद मंत्रों द्वारा ही समझ आएगा कि अष्टांग योग जिसमें यम, नियम, आसन प्राणायाम इत्यादि शिक्षा का अभ्यास करना चाहिए…

ऋग्वेद मंत्र 10/36/3 का भाव है कि साधक वेदानुसार ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना एवं उपासना नित्य करता है और ईश्वर के नाम का जाप करता है, वह उस परमात्मा को अपने हृदय में साक्षात प्राप्त कर लेता है। अगले मंत्र 4 में कहा है कि साधक ईश्वर को अपने अंदर प्रकट करने के लिए श्रद्धापूर्वक वेदाध्ययन,यज्ञ, आत्म यज्ञ, स्तुति, प्रार्थना, उपासना एवं ईश्वर के नाम का स्मरण रूप अभ्यास करके उस परम दिव्य पुरुष परमेश्वर को प्राप्त कर लेते हैं। अर्थात यज्ञ में बैठकर चारों वेदों के ज्ञाता, ब्रह्मा द्वारा साधक ईश्वर के स्वरूप, गुण, कर्म एवं स्वभाव को वेद मंत्रों से सुनते हैं तब ईश्वर के प्रति प्रेम जागता है। फलस्वरूप हम ईश्वर के विषय में पूर्णतः जानने लगते हैं कि ईश्वर निरकार, सर्वव्यापक, अनंत गुणों वाला, अनादि स्वयंभू, चेतन, सृष्टि रचयिता, पालनकर्ता एवं संहारकर्ता इत्यादि अनंत गुणों वाला है। पुनः वेद मंत्रों के व्याख्यान द्वारा ही यह समझ में आता है कि मनुष्य जाति का जन्म वेद विद्या के विद्वानों के संग में रहकर यज्ञ करना है और ऐसे विद्वानों की सेवा से विषय विकारों का नाश करके अज्ञान का नाश करना है। पुनः वेद मंत्रों द्वारा ही समझ आएगा कि अष्टांग योग जिसमें यम, नियम, आसन प्राणायाम इत्यादि शिक्षा का अभ्यास करना चाहिए। श्लोक 8/8 में श्रीकृष्ण महाराज ने अभ्यास योग मुक्त शब्दों का प्रयोग योगाभ्यास के लिए ही किया है अर्थात ईश्वर को प्राप्त करने के लिए यह सारी विधियां और योगाभ्यास करने को कहा गया है। इस अभ्यास के द्वारा ही चित्त की वृत्तियां अंदर ही रुक जाती हैं। जिसे योग शास्त्र सूत्र 1/2 में कहा है। अर्थात योगाभ्यास द्वारा ही साधक के चित्त की वृत्तियां निरुद्ध हो जाती हैं और साधक समाधि अवस्था को प्राप्त कर लेता है। इसी योगाभ्यास आदि का वर्णन ऊपर कहे वेदमंत्रों में है। पुनः हम यह समझ लें कि श्रीकृष्ण महाराज ने पूर्णतः वेद विद्या के आधार पर अर्जुन को शिक्षा दी थी और जिस शिक्षा के द्वारा अर्जुन धर्म युद्ध करने के लिए उठ खड़ा हो गया था। आज हमें इसी परंपरागत, वैदिक आचार्यों द्वारा वेद मंत्रों  की शिक्षा की ही आवश्यकता है। जिसे सुनकर तथा जीवन में धारण करके हम सब प्राणी ऊपर कहे अभ्यास,योगयुक्त होकर अपने-अपने क्षेत्र में रहकर वेदानुकूल शुभ कर्म करते हुए ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं। अतः हम पुनः ईश्वरीय, अमर वाणी चारों वेदों की ओर अपना ध्यान आकर्षित करें।

स्वामी रामस्वरूप


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