गुप्त नवरात्र का महत्व

By: Jan 20th, 2018 12:07 am

देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए वर्ष के सबसे पवित्र और सिद्ध दिन नवरात्र के माने गए हैं। इन नौ दिनों में देवी अपने भक्तों और साधकों पर पूर्ण कृपा बरसाने को आतुर रहती हैं। जो लोग जीवन में धन, मान, सुख, संपत्ति, वैभव और सांसारिक सुखों को पाना चाहते हैं, उन्हें नवरात्र में देवी के सिद्ध दिनों में साधना जरूर करनी चाहिए। अधिकांश लोग वर्ष के दो नवरात्रों के बारे में ही जानते हैं। ये नवरात्रे चैत्र और शारदीय नवरात्र कहलाते हैं, लेकिन इन दो के अलावा दो और नवरात्रे होते हैं, जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है।

माघ और आषाढ़ माह

ये गुप्त नवरात्र माघ और आषाढ़ माह में आती है। गुप्त नवरात्रों का महत्त्व चैत्र और शारदीय नवरात्रों से भी अधिक हैं क्योंकि इनमें देवी अपने पूर्ण स्वरूप में विद्यमान रहती हैं, जो प्रकट रूप में नहीं होता है। गुप्त नवरात्रों में देवी शीघ्र प्रसन्न होती हैं, लेकिन इसमें सबसे जरूरी और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि साधकों को पूर्ण संयम और शुद्धता से देवी आराधना करना होती हैं।

गुप्त नवरात्र

वर्ष 2018 के प्रथम गुप्त नवरात्र माघ शुक्ल प्रतिपदा यानी 18 जनवरी से प्रारंभ हो रहे हैं, जो माघ शुक्ल नवमी 26 जनवरी को पूर्ण होंगे। गुप्त नवरात्र आमतौर पर उत्तरी भारत जैसे हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड और इनके आसपास के प्रदेशों में बड़े पैमाने पर मानए जाते हैं। गुप्त नवरात्र में भी नौ दिनों तक क्रमानुसार देवी के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है।

गुप्त नवरात्र में देवी के नौ रूप

गुप्त नवरात्र की नौ प्रमुख देवियां हैं मां काली, मां त्रिपुर सुंदरी, मां तारा, मां भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्तिका, मां धूमावती, मां बगलामुखी, मां मातंगी तथा मां कमला देवी। साधक गुप्त नवरात्र में माता के नौ रूपों की कठिन भक्ति और साधना के द्वारा पूजा करते हैं।

कथा

गुप्त नवरात्र से जुड़ी प्रामाणिक एवं प्राचीन कथा यह है। इस कथा के अनुसार एक समय ऋषि शृंगी भक्तजनों को दर्शन दे रहे थे। अचानक भीड़ से एक स्त्री निकलकर आई और करबद्ध होकर ऋषि शृंगी से बोली कि मेरे पति दुर्व्यसनों से सदा घिरे रहते हैं, जिस कारण मैं कोई पूजा-पाठ नहीं कर पाती। धर्म और भक्ति से जुड़े पवित्र कार्यों का संपादन भी नहीं कर पाती। यहां तक कि ऋषियों को उनके हिस्से का अन्न भी समर्पित नहीं कर पाती। मेरा पति मांसाहारी हैं, जुआरी है, लेकिन मैं मां दुर्गा की सेवा करना चाहती हूं, उनकी भक्ति-साधना से अपने और परिवार के जीवन को सफल बनाना चाहती हूं। ऋषि शृंगी महिला के भक्तिभाव से बहुत प्रभावित हुए। ऋषि ने उस स्त्री को आदरपूर्वक उपाय बताते हुए कहा कि वासंतिक और शारदीय नवरात्रों से तो आम जनमानस परिचित हैं, लेकिन इसके अतिरिक्त 2 नवरात्र और भी होते हैं जिन्हें ‘गुप्त नवरात्र’ कहा जाता है। उन्होंने कहा कि प्रकट नवरात्रों में 9 देवियों की उपासना होती है और गुप्त नवरात्र में 10 महाविद्याओं की साधना की जाती है। इन नवरात्रों की प्रमुख देवी स्वरूप का नाम सर्वैश्वर्यकारिणी देवी है। यदि इन गुप्त नवरात्रों में कोई भी भक्त माता दुर्गा की पूजा-साधना करता है, तो मां उसके जीवन को सफल कर देती हैं। ऋषि शृंगी ने आगे कहा कि लोभी, कामी, व्यसनी, मांसाहारी अथवा पूजा-पाठ न कर सकने वाला भी यदि गुप्त नवरात्र में माता की पूजा करता है, तो उसे जीवन में कुछ और करने की आवश्यकता ही नहीं रहती। उस स्त्री ने ऋषि शृंगी के वचनों पर पूर्ण श्रद्धा करते हुए गुप्त नवरात्र की पूजा की। मां उस पर प्रसन्न हुईं और उस स्त्री के जीवन में परिवर्तन आने लगा। उसके घर में सुख-शांति आ गई, पति, जो गलत रास्ते पर था, सही मार्ग पर आ गया। गुप्त नवरात्र में माता की आराधना करने से उनका जीवन पुनः खिल उठा।


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