चाय बागानों-धार्मिक संस्थाओं को लीज पर दी जमीन का होगा रिव्यू

By: Jan 21st, 2018 12:08 am

पूर्व वीरभद्र सिंह सरकार ने दी थी सैद्धांतिक मंजूरी, 1200 हेक्टेयर जमीन पड़ी है बेकार, टी-टूरिज्म के बहाने निजी निवेश या बेचने की थी तैयारी

शिमला— हिमाचल में चाय के बागानों व धार्मिक संस्थाओं को लीज पर दी गई जमीन पर आधारित पूर्व सरकार के फैसलों की समीक्षा हो रही है। वीरभद्र मंत्रिमंडल ने करीब एक वर्ष पहले फैसला लिया था कि 1200 हेक्टेयर के लगभग चाय बागानों की जो जमीन बेकार पड़ी है, उन्हें टी-टूरिज्म के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है। यानी निजी निवेश को आकर्षित करने की तैयारी थी। इसी जद्दोजहद में भू-मालिकों को सैद्धांतिक अनुमति भी मंत्रिमंडल के फैसले के जरिए दे दी गई। यही नहीं, धार्मिक संस्थाओं को लीज पर दी गई ऐसी जमीनों को भी बेचने की छूट देने पर विचार किया गया, जिनका रकवा किसी संस्था के पास 150 हेक्टेयर से ज्यादा होगा। हालांकि सूत्रों का दावा है कि इस मामले में सैद्धांतिक अनुमति नहीं दी गई थी। बावजूद इसके छानबीन चल रही है। दरअसल, राधा स्वामी सत्संग ब्यास को लोगों द्वारा दान में दी गई बेशुमार जमीनें शिमला से लेकर कांगड़ा तक हैं। अन्य उपयोगों के साथ-साथ इसे बेचने की भी मांग उठती रही। ऐसी दो ही संस्थाएं सरकार के पास पहुंची थीं, मगर अब इन महत्त्वपूर्ण फैसलों का रिव्यू चल रहा है। जयराम सरकार ने सत्ता में आते ही कहा था कि पूर्व वीरभद्र सरकार के छह माह के मंत्रिमंडल निर्णयों की समीक्षा होगी। इसी फेहरिस्त में यह तैयारी चलने की सूचना है। हिमाचल में ब्रिटिशकाल से ही कांगड़ा घाटी में चाय की खेती होती आ रही है, मगर औद्योगीकिकरण के साथ-साथ जब से मनरेगा की शुरुआत हुई, तभी से चाय बागानों के उजड़ने की कहानी भी शुरू हो गई।  मौजूद आंकड़ों के मुताबिक हिमाचल में चार हजार एकड़ के करीब जमीन पर चाय की खेती होती आ रही थी, मगर पिछले दस वर्षों में यह आंकड़ा 2200 एकड़ रह गया है। लगभग 400 लोग चाय की खेती से संबंधित जमीन के मालिक हैं। इनमें गिनती के ही बड़े बागान मालिक हैं, जबकि अन्य छोटे व मध्यम दर्जे के हैं।

अढ़ाई लाख किलो उत्पादन

प्रदेश में चाय पत्ती की खेती के अधीन 1200 हेक्टेयर भूमि बेकार पड़ी हुई है। इसमें 2.50 लाख किलोग्राम तक चाय का उत्पादन किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए सरकारें व कृषि विभाग को पहल करनी होगी।

तुड़ान को मजदूर कहां से लाएं

वर्तमान में मध्यम व बड़े दर्जे के चाय बागान मालिक ही इस व्यवसाय में लगे हैं, जबकि छोटे अपना कारोबार लगभग त्याग कर चुके हैं। पालमपुर में सबसे ज्यादा टी गार्डन हैं। इनमें से छोटे बागान लगभग उजड़ चुके हैं। कारण वही बताए जा रहे हैं कि चाय की खेती के लिए मजदूरों का अकाल पड़ता जा रहा है।

मार्केटिंग न होना भी दिक्कत

हिमाचल में चाय की जो खेती हो रही है, उसका उत्पादन इतना नहीं है कि उसकी मार्केटिंग से व्यवसायियों को बड़ा लाभ मिल सके। इसके उलट दार्जिलिंग व असम के साथ-साथ तमिलनाडु के विभिन्न इलाकों में चाय की खेती से संबंधित बड़े-बड़े टी गार्डन हैं, जिनमें व्यवसायियों को भी मार्केटिंग से बड़ा लाभ हासिल होता है।

दो चाय बागान मालिकों को लाभ पहुंचाने की थी कोशिश

सूत्रों का कहना है कि पूर्व सरकार के दौरान दो बड़े चाय बागान के मालिक सरकार के द्वारा पहुंचे थे। उन्होंने बेकार पड़ी जमीनों को बेचने की मांग रखी थी। इसी कड़ी में सैद्धांतिक फैसला भी लिया गया। हालांकि मंझोले व छोटे चाय बागान मालिक भी यही चाहते थे कि उन्हें भी ऐसी छूट मिले। इसी के नतीजतन टी-टूरिज्म को लेकर फैसला लिया गया।


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