जनहित की हांडी में पकती सियासत

By: Jan 11th, 2018 12:08 am

पीके खुराना

लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं

सरकारी नौकरियां बेरोजगारी दूर करने का सबसे घटिया साधन है। यदि आवश्यकता न होने पर भी सरकारी पदों की संख्या बढ़ा दी जाए और नए लोग भर्ती कर लिए जाएं, तो नए लोगों का वेतन, भत्ता और अन्य सुविधाएं अंततः जनता की जेब का बोझ ही बढ़ाएंगी। राजनीति की यह बीमारी किसी एक सरकार पर लगा कलंक नहीं है, बल्कि भाजपा की पूर्ववर्ती सरकारें भी इस दोष की भागी हैं। अब जनहित में होने वाले काम सचमुच जनहित के लिए हों, राजनीतिक लाभ के लिए नहीं…

गुजरात विधानसभा चुनावों के बाद संसद का संक्षिप्त सत्र चला और समाप्त हो गया। गुजरात विधानसभा चुनावों के समय हमने अमित शाह और नरेंद्र मोदी का नया रूप देखा। वहां किसानों में गुस्सा था, बेरोजगारी को लेकर नौजवानों में गुस्सा था, आरक्षण के मुद्दे पर पटेल समाज तथा अन्य पिछड़ी जातियों के लोग नाराज थे। नोटबंदी और जीएसटी के कारण व्यापारी वर्ग नाराज था। जीएसटी का सर्वाधिक विरोध सूरत में हुआ। सारे विरोध के बावजूद भाजपा अपनी सत्ता कायम रखने में सफल रही और विजय रूपाणी मुख्यमंत्री के रूप में कायम हैं।

जनता के सामने अब नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह गाल फुला-फुला कर कह रहे हैं कि यदि सचमुच गुजरात की जनता हमसे नाराज होती तो हम सत्ता में वापस कैसे आते। हालांकि वे यह नहीं बताते कि गुजरात में उनकी सीटें पहले से भी कम हो गई हैं, उनके कई मंत्री चुनाव हार गए हैं, जिग्नेश मेवाणी चुनाव जीत गए हैं और किसानों का गुस्सा इस रूप में फूटा है कि गुजरात के ग्रामीण इलाकों से भाजपा को समर्थन नहीं मिला है। वहां उसे धूल चाटनी पड़ी है। यही नहीं, बहुत सी सीटों पर भाजपा बहुत मामूली अंतर से जीती है और यदि प्रदेश में कांग्रेस का संगठन होता और राज्य स्तर पर कांग्रेस के पास कोई बड़ा और विश्वसनीय नाम होता, तो शायद तस्वीर कुछ और होती। यह तो सच है कि जीतने वाला ही सिकंदर कहलाता है और मोदी तथा शाह ने अपनी रणनीति से यह सफलता तो पा ही ली है कि गुजरात की जनता के समर्थन से वे गुजरात में सत्ता में बने हुए हैं।

गुजरात चुनावों के दौरान मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह पर पाकिस्तान से साठगांठ का आरोप लगाया और इस आरोप को खूब भुनाया। संसद सत्र के समय कांग्रेस का रुख यह था कि मोदी के इस झूठे आरोप के लिए मोदी को डा. मनमोहन सिंह से माफी मांगनी चाहिए वरना संसद नहीं चलने देंगे। इसके जवाब में मोदी ने यह चाल चली कि लोकसभा में तीन तलाक का बिल पेश करवा दिया, ताकि वह मुस्लिम महिलाओं में यह संदेश दे सकें कि कांग्रेस इस प्रगतिशील कानून की राह में रोड़ा बन रही है। डा. सिंह से माफी न मांगने का मोदी का यह बड़ा हथियार था, जो लोकसभा में कामयाब हो गया, लेकिन राज्यसभा में जहां भाजपा का बहुमत नहीं है, वहां बिल पास नहीं हो सका। राज्यसभा में कांग्रेस यह कहती रही कि वह इस बिल के खिलाफ नहीं है, लेकिन इसके कुछ प्रावधानों में संशोधन चाहती है, लेकिन सिलेक्ट में बिल भेजकर मुद्दा सुलझाने का प्रयास करने के बजाय भाजपा जानबूझ कर अड़ी रही, क्योंकि उसका उद्देश्य बिल पास करवाने से ज्यादा राजनीतिक लाभ लेना था। दरअसल मुस्लिम समाज का एक बड़ा वर्ग, खासकर पुरुष वर्ग इस बिल के खिलाफ था। बहुत से मुस्लिम महिला संगठनों ने भी इस बिल के कई प्रावधानों का विरोध किया था। यदि यह बिल इसी रूप में पास हो जाता तो सरकार को मुस्लिम वर्ग के सक्रिय विरोध का सामना करना पड़ता और यदि बिल में संशोधन मंजूर हो जाते तो मोदी की हेठी होती। अपने अहं के चक्कर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह बिल पास न होने देना ज्यादा माकूल समझा।

मोदी की समस्या यह है कि वह मानते हैं कि देश हित को सिर्फ वही जानते हैं और जनहित की नीतियों में सिर्फ उनका रुख ही सही रुख है। अपने अहंकार में वह किसी दूसरे का रुख जानने-समझने को तैयार ही नहीं हैं। गुजरात चुनावों में जब उन्हें और अमित शाह दोनों को यह स्पष्ट नजर आ गया कि वहां भाजपा हार भी सकती है, तो उन्होंने जीएसटी के नियमों में फटाफट ढील देनी शुरू की, व्यापारियों को विश्वास में लेने की कोशिश की और युवाओं को यह समझाने का प्रयास किया कि बेरोजगारी दूर करने के लिए वे शीघ्र ही समुचित कदम उठाएंगे। स्थिति ऐसी थी कि गुजरात में कांग्रेस के पास जमीनी स्तर पर न तो मजबूत संगठन था और न ही कोई स्थानीय नेता जिसे वह मुख्यमंत्री के रूप में पेश कर पाती। भाजपा को इसी का लाभ मिला और वह सत्ता में बनी रहने में कामयाब रही।

जिन राज्यों में चुनाव होने वाले हैं, वहां के स्थानीय नेताओं को केंद्रीय नेता बार-बार संदेश दे रहे हैं कि गुजरात से सबक लो, हार भी सकते हो, चुनाव के नजदीक आने का इंतजार मत करो, अभी से प्रचार में जुट जाओ इत्यादि। इसी से समझा जा सकता है कि भाजपा अंदर से किस कदर डरी हुई है। हमें कुछ महत्त्वपूर्ण मुद्दों की ओर ध्यान देने की जरूरत है। संसद के शीतकालीन सत्र में राज्यसभा में सिर्फ 41 घंटों में नौ बिल पास कर दिए गए और लोकसभा में बासठ घंटों से भी कम समय में बारह बिल पास हो गए। यानी राज्यसभा में हर बिल पर औसतन लगभग साढ़े चार घंटे ही चर्चा हुई और लोकसभा में हर बिल पर औसतन लगभग पांच घंटे चर्चा हुई। इतने कम समय में किसी बिल के प्रावधानों पर समग्र चर्चा संभव ही नहीं है और यह परंपरा जनहित के पक्ष में नहीं है। जीएसटी लागू होने के समय सूरत के व्यापारियों ने मोदी सरकार से मान-मनुव्वल करके इसके नियमों में संशोधन की बहुत कोशिशें कीं, लेकिन मोदी अपने अहंकार से छुटकारा पाते तो उनकी बात सुनते। इन व्यापारियों की सुनवाई तब हुई, जब वहां चुनाव हुए और वह भी इसलिए क्योंकि व्यापारी वर्ग एकजुट था और वह मोदी के विरोध में मत देने का मन बनाए हुए था, वरना अब भी जीएसटी के नियमों में कोई सार्थक बदलाव न हुआ होता। इस समय मीडिया में यह खबरें छाई हुई हैं कि फरवरी में शुरू होने वाले बजट सत्र में भाजपा बेरोजगार युवकों को रोजगार देने के लिए किसी मास्टरस्ट्रोक की तैयारी में है। बेरोजगारी दूर हो, यह तो अच्छी बात है लेकिन बेरोजगारी दूर करने का प्रयास सिर्फ इसलिए किया जाए कि यह सत्र मोदी सरकार के वर्तमान शासनकाल का अंतिम बजट सत्र होगा और मोदी के पास स्वयं को जनहितकारी सिद्ध करने का यह आखिरी मौका है, तो यह जनहितकारी होने के बावजूद ओछी राजनीति है।

बेरोजगारी के बारे में एक और महत्त्वपूर्ण नुक्ता यह है कि सरकारी नौकरियां बेरोजगारी दूर करने का सबसे घटिया साधन है और अंततः यह जनता पर बोझ है। यदि आवश्यकता न होने पर भी सरकारी पदों की संख्या बढ़ा दी जाए और नए लोग भर्ती कर लिए जाएं, तो नए लोगों का वेतन, भत्ता और अन्य सुविधाएं अंततः जनता की जेब का बोझ ही बढ़ाएंगी। इसके बजाय सरकार को ऐसे नियम बनाने चाहिएं कि ज्यादा से ज्यादा नौजवान या तो उद्यमी बन सकें या अन्य निजी कंपनियों के लिए व्यवसाय चलाना आसान और लाभप्रद हो, ताकि वे ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार दे सकें। राजनीति की यह बीमारी किसी एक सरकार पर लगा कलंक नहीं है, बल्कि भाजपा की पूर्ववर्ती सरकारें भी इस दोष की भागी हैं। इसलिए व्यक्ति या दल बदलने के बजाय नीतियां बदलना आवश्यक है, ताकि जनहित में होने वाले काम सचमुच जनहित के लिए हों, राजनीतिक लाभ के लिए नहीं।

ई-मेल : features@indiatotal.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App