जमीनी भ्रष्टाचार पर प्रहार जरूरी

By: Jan 16th, 2018 12:07 am

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

कौटिल्य ने कहा था कि सरकारी कर्मियों द्वारा राज्य के राजस्व की चोरी का पता लगाना उतना ही कठिन है, जितना इस बात का पता लगाना कि तालाब की मछली द्वारा कितना पानी पिया गया। उन्होंने कहा था कि सरकारी कर्मियों के भ्रष्टाचार पर नजर रखने के लिए जासूस व्यवस्था अपनाई जाए और इस जासूस व्यवस्था के भ्रष्टाचार पर नजर रखने के लिए एक और जासूस व्यवस्था बनाई जाए। इस सुझाव को लागू करना चाहिए…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के अपने कार्यकाल में आम आदमी को भ्रष्टाचार मुक्त शासन उपलब्ध कराया था। उस समय अहमदाबाद जाने का अवसर मिला था। टैक्सी ड्राइवर ने प्रसन्नतापूर्वक बताया कि अब ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए घूस नहीं देनी पड़ती है। बड़े-छोटे सभी एक लाइन में खड़े होकर लाइसेंस बनवाते हैं। मैं प्रभावित हुआ। इस उपलब्धि को हासिल करने की मोदी की पॉलिसी के दो अंग थे। एक यह कि जनता के संपर्क में आने वाली सरकारी सुविधाओं को ऑनलाइन कर दिया। दूसरा यह कि जन संपर्क में आने वाले विभागों पर कर्मठ एवं ईमानदार अधिकारियों को बिठाया। यही गुजरात का प्रशासनिक मॉडल कहा जा सकता है।

इसी मॉडल को संभवतः मोदी राष्ट्रीय स्तर पर लागू करना चाह रहे हैं, जैसे तमाम सबसिडी को ऑनलाइन ट्रांसफर किया जा रहा है। मुझे स्वयं एलपीजी तथा क्रेडिट कार्ड से किए गए पेट्रोल के भुगतान पर सबसिडी सीधे खाते में मिल रही है। यह भी सत्य दिखता है कि मोदी ने ईमानदार अधिकारियों को प्रमुख पदों पर बिठाया है, परंतु इस पॉलिसी के राष्ट्रीय स्तर पर सफल होने में संशय है। पहला कारण है कि सेवाओं को ऑनलाइन उपलब्ध कराने की सीमा है। जैसे जीएसटी के अंतर्गत लागू होने वाले ई-वे बिल की उपयोगिता इस बात पर टिकी हुई है कि टैक्स अधिकारियों द्वारा नंबर दो का माल पकड़े जाने पर घूस लेकर उन्हें छोड़ा नहीं जाएगा। टैक्स अधिकारी यदि घूस लेकर ट्रक को छोड़ दें तो भ्रष्टाचार को रोकने में ऑनलाइन कार्यप्रणाली असफल हो जाती है। यह भी ध्यान देना चाहिए कि मोदी के कार्यकाल में सूरत तथा राजकोट में नंबर दो का धंधा और टैक्स की चोरी बड़े पैमाने पर होती रही थी और आज भी हो रही है। अर्थ हुआ कि मोदी का प्रयास उन विशेष सरकारी कार्यों पर था, जहां जनता बार-बार संपर्क में आ रही थी। गुजरात की मूल सरकारी व्यवस्था भ्रष्ट बनी रही थी।

अब मोदी गुजरात के उसी प्रशासनिक मॉडल को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने का साहसिक प्रयास कर रहे हैं। यहां तीन और समस्याएं हैं। एक यह कि तमाम प्रशासनिक कार्य जैसे ई-वे बिल की जांच राज्य सरकार के अधिकारियों के हाथ में है, जिन पर मोदी का सीधा नियंत्रण नहीं है। दूसरी समस्या है कि गुजरात में मोदी का जनता से सीधा संपर्क था और उनके लिए भ्रष्ट अधिकारियों के दुराचार की पहचान करना संभव था। राष्ट्रीय स्तर पर मोदी को इस सूचना के लिए दूसरे अधिकारियों पर निर्भर रहना पड़ता है। सही जानकारी उन तक पहुंच जाएगी, इसमें संदेह बना रहता है। तीसरी समस्या है कि गुजरात के हर जिले से मोदी स्वयं फीडबैक ले सकते थे। राष्ट्रीय स्तर पर फीडबैक लेना उनके लिए संभव नहीं है। इसलिए गुजरात में ही मूल प्रशासन में स्वच्छता हासिल करने में फेल हुए गुजरात मॉडल का राष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा गहराई से फेल होना निश्चित है। नरेंद्र मोदी को चाहिए कि सरकारी तंत्र से भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए अपने व्यक्तिगत प्रभाव का सहारा लेने के स्थान पर प्रशासन में ढांचागत सुधार करें, जैसे एक कुशल गृहिणी लकड़ी पर दाल पका ले, तो हर गृहिणी को लकड़ी पर दाल पकाने को नहीं कहा जा सकता है। एलपीजी सिलेंडर के ढांचागत सुधार से सभी गृहिणियों की स्थिति सहज ही सुधर जाती है। प्रशासन में ऐसे ढांचागत सुधारों हेतु मोदी निम्न बिंदुओं पर विचार कर सकते हैं।

पहला बिंदु है कि सरकारी नियुक्तियों एवं पदोन्नतियों से संबंधित सभी दस्तावेजों को सरकारी वेबसाइट पर डाल दिया जाए। इसके बाद 15 दिन जनता को अपने सुझाव अथवा आपत्तियों को दर्ज कराने के लिए दिया जाए। शीर्ष अधिकारी द्वारा सभी सुझावों का संज्ञान लेकर प्रत्येक सुझाव को स्वीकार अथवा अस्वीकार करने के कारण बताते हुए व सरकारी वेबसाइट पर डालते हुए ही नियुक्ति अथवा पदोन्नति के अंतिम आदेश पारित किए जाएं। जिस प्रकार फेसबुक पर मित्र के संदेश का आप जवाब दे सकते हैं, उसी प्रकार हर नियुक्ति के संबंध में आए संदेश का उत्तर देना अनिवार्य हो। दूसरा बिंदु है कि सरकारी कर्मियों के भ्रष्टाचार को रोकने के लिए अलग पुलिस स्थापित की जाए जैसे सेंट्रल इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स अथवा महिला पुलिस अथवा टै्रफिक पुलिस होती है। वर्तमान पुलिस व्यवस्था तभी क्रियाशील होती है, जब उसे किसी व्यक्ति से भ्रष्टाचार की शिकायत मिले। लगभग सभी घूस का लेन-देन आपसी सहमति से होता है। केवल यदा-कदा इस सहमति में पेंच फंसने पर व्यक्ति शिकायत करता है। मेरा अनुमान है कि भ्रष्टाचार के एक लाख मामलों में किसी एक में शिकायत की स्थिति पैदा होती है। कौटिल्य ने कहा था कि सरकारी कर्मियों द्वारा राज्य के राजस्व की चोरी का पता लगाना उतना ही कठिन है, जितना इस बात का पता लगाना कि तालाब की मछली द्वारा कितना पानी पिया गया। कौटिल्य ने कहा था कि सरकारी कर्मियों के भ्रष्टाचार पर नजर रखने के लिए जासूस व्यवस्था अपनाई जाए और इस जासूस व्यवस्था के भ्रष्टाचार पर नजर रखने के लिए एक और जासूस व्यवस्था बनाई जाए। इस सुझाव को लागू करना चाहिए।

तीसरा बिंदु है कि क्लास ‘ए’ के सरकारी अधिकारियों के कार्य का जनता द्वारा हर पांच वर्ष बाद मूल्यांकन कराया जाए। आईआईएम में अध्यापकों का छात्रों द्वारा गुप्त मूल्यांकन कराया जाता है। इसी प्रकार बिजली विभाग के जेई का गुप्त मूल्यांकन उस डिवीजन के उपभोक्ताओं द्वारा कराया जाए। डिवीजन के उपभोक्ताओं में किन्हीं 100 को गुप्त पत्र भेजकर जेई के विषय में उनके विचार पूछे जाएं। बताते हैं कि मोदी सचिवों की नियुक्ति में अपने विश्वास प्राप्त कुछ अधिकारियों द्वारा इसी प्रकार का गुप्त मूल्यांकन करा रहे हैं। इस प्रयास का स्वागत है। इसे अपनी व्यक्तिगत कार्यशैली से जोड़ने के स्थान पर सरकारी ढांचे का अंग बना देना चाहिए। चौथा बिंदु है कि सरकारी अधिकारियों के पारिवारिक इन्कम टैक्स रिटर्न तथा पूंजी की जानकारी सरकारी वेबसाइड पर डाल दी जाए। अपने देश में पारिवारिक संबंध गहरे होते हैं। भ्रष्टाचार की रकम को पति अथवा पत्नी के नाम से संग्रह करना आम बात है। वर्तमान में अधिकारी द्वारा इस व्यक्तिगत जानकारी को बंद लिफाफे में सरकार को दिया जाता है। इसे बदल कर पूरे परिवार की संपत्ति को खुले लिफाफे में ऑनलाइन डालना चाहिए।

पांचवां और अंतिम बिंदु है कि हर सरकारी विभाग के कार्य का ‘प्रभाव मूल्यांकन’ कराया जाए। जैसे जंगल विभाग द्वारा लगाए गए वृक्षों में कितने जीवित रहे इसका मूल्यांकन यदा-कदा अंकेक्षण विभाग द्वारा किया जाता है और यह फाइलों में बंद होकर रह जाता है। हर सरकारी विभाग का कोई उद्देश्य होता है जैसे पुलिस का उद्देश्य अपराध रोकने का है। हर थाने का मूल्यांकन करना चाहिए कि पांच वर्षों में अपराध की संख्या बढ़ी अथवा घटी और इस जानकारी को पांच वर्षों में रहे सभी एसएचओ, डीएसपी एवं एसपी की व्यक्तिगत फाइल में डाल देना चाहिए। मोदी इन सुझावों को लागू करें, तो जमीनी भ्रष्टाचार तो कम होगा ही, वे भविष्य की पीढि़यों को भी सुकून प्रदान करेंगे।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com


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