जैविक उत्पाद तो तैयार, पर मार्केट नहीं

By: Jan 22nd, 2018 12:01 am

किसानों को नहीं मिल रहा बाजार, अपनी सोसायटी बनाकर छोटे स्तर पर बेच रहे उत्पाद

शिमला  – प्रदेश में जैविक खेती का दायरा साल दर साल बढ़ रहा है। प्रदेश में अब तक करीब 40 हजार कृषक जैविक खेती के लिए पंजीकृत हो चुके हैं और 21 हजार हेक्टेयर क्षेत्र पर जैविक खेती की जा रही है। प्रदेश सरकार और कृषि विभाग किसानों को जैविक खेती करने के लिए प्रोत्साहित तो कर रहे हैं, लेकिन किसानों की सबसे बड़ी अड़चन जो जैविक खेती में आ रही है, उसका समाधान अभी तक नहीं किया गया है। जैविक खेती कर रहे किसानों को उनके उत्पाद बेचने के लिए बाजार सरकार और विभाग की ओर से मुहैया नहीं करवाए जा रहे हैं। किसान अपने दम पर ही अपने उत्पाद बेचने के लिए बाजार ढूंढने के लिए मजबूर हो रहे हैं। प्रदेश में हालात ये हैं कि जिन-जिन क्षेत्रों में बड़े स्तर पर जैविक खेती किसान कर रहे हैं, वहां अपनी सोसायटियां बनाकर उत्पाद बाजारों में पहुंचा रहे हैं। जैविक खेती में किसान तो रुचि दिखा भी रहे हैं, लेकिन मार्केटिंग सबसे बड़ी अड़चन है, जो इस समय किसानों के समक्ष आ रही है। मार्केटिंग के लिए और अपने द्वारा उगाए जाने वाले जैविक उत्पाद बेचने के लिए बाजार उपलब्ध न होने की वजह यही है कि प्रदेश के छोटे किसान जैविक खेती से दूरी बनाए हुए हैं। प्रदेश के जिलों में सब्जी मंडी तो बनाई गई है, लेकिन उन तक भी जैविक उत्पाद नहीं पहुंच पा रहे हैं। बाहर की कंपनियां बल्क में जैविक उत्पादों की खरीद करती है, लेकिन प्रदेश में इतनी अधिक लागत में प्रोडक्ट न मिलने से कंपनियां यहां मार्केटिंग के लिए आगे आने में रुचि नहीं दिखा रही हैं। वहीं विभाग की ओर से मंडी और सोलन जिला में जैविक उत्पादों के लिए मार्केटिंग यार्ड बनाए गए थे, उनमें भी किसान अपने जैविक उत्पाद लेकर नहीं आए और मजबूरन  विभाग को उन्हें बंद करना पड़ा। अब प्रदेश में कुछ एक सोसायटी, जिनमें फार्मर सोसायटी नारकंडा, कांगड़ा सर्वेश्वर सोसायटी, सोलन की सोसायटी बिग बास्केट या अन्य बाजारों तक किसानों के जैविक उत्पाद पहुंचा कर उन्हें इसका कुछ लाभ दिलवा रही है। प्रदेश में शिमला, सोलन और सिरमौर तीन ऐसे जिला हैं, जहां सबसे अधिक जैविक उत्पाद किसान तैयार कर रहे हैं। इन जिला में फलों और सब्जियों की जैविक खेती किसानों द्वारा की जा रही है।


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