ट्रंप के पाक को अशुभ संकेत

By: Jan 8th, 2018 12:10 am

कुलदीप नैयर

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं

अपेक्षा की जा रही थी कि आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान को ट्रंप के संदेश का भारत स्वागत करेगा। प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि अमरीका ने भारत के उस दृष्टिकोण का समर्थन किया है, जिसके अनुसार कोई भी आतंकवादी, आतंकवादी ही होता है। इससे कोई राष्ट्र व कोई धर्म नहीं बच सकता। यह स्पष्ट है कि ट्रंप एक नई अमरीकी नीति लेकर आगे आए हैं। यह नीति बिल क्लिंटन की वामपंथी नीति की अपेक्षा ज्यादा दक्षिणपंथी लगती है। पुराने मू्ल्य अब प्रासंगिक नहीं रहे…

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इस वक्तव्य में सच्चाई का अंश हो सकता है कि उनके देश ने पिछले 15 वर्षों में पाकिस्तान को सहायता के रूप में 33 बिलियन डालर देकर मूर्खता ही की है। लेकिन वह उस समय गलत हैं, जब वह कहते हैं कि बदले में अमरीका को कुछ नहीं मिला। यह बात समझ आने योग्य है कि पाकिस्तान डालर के रूप में कुछ नहीं लौटा पाया। न ही वाशिंगटन ने उसे स्वीकार किया। लेकिन पाकिस्तान ने अपने देश में अमरीका को सैन्य कार्रवाई के लिए अड्डे उपलब्ध करवाए। राष्ट्रपति ट्रंप अनावश्यक रूप से उस समय कठोर हो जाते हैं, जब वह कहते हैं कि बदले में उनके देश को झूठ और धोखे के सिवाय कुछ नहीं मिला। उन्होंने पहले के अमरीकी नेताओं को मूर्ख तक कहा। शीत युद्ध के दौरान जब पूरा विश्व दो खेमों में बंट गया था, पाकिस्तान उस समय अमरीका के पक्ष में खड़ा रहा। रावलपिंडी सेंट्रल ट्रीटी आर्गेनाइजेशन (सेंटो) का सदस्य था। यह संगठन 1955 में ईरान, इराक, पाकिस्तान, तुर्की व ब्रिटेन को साथ लेकर बनाया गया था। सेंटो का उद्देश्य वही था जो इससे ज्यादा ख्यात संगठन नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाइजेशन (नाटो) का था। नाटो का लक्ष्य मध्य पूर्व में सोवियत यूनियन तथा इसके विस्तार को रोकना था।

संगठन के सदस्यों में पारस्परिक सहयोग व सुरक्षा को लेकर सहमति थी। लेकिन, शायद सबसे रुचिकर बात यह है कि तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार इन सभी देशों को इस बात पर भी सहमति देनी पड़ी कि वे एक-दूसरे के आंतरिक मसलों में दखल नहीं देंगे। इस संगठन को बगदाद पैक्ट के नाम से भी जाना जाता है, जो इसका मूल नाम था तथा इसका मुख्यालय बगदाद में ही था। हालांकि 1958 में इराकी सैन्य कार्रवाई के कारण इराक इस संगठन से अलग हो गया। इसके बाद इसका नाम सेंटो रखा गया तथा अपेक्षाकृत कम कट्टरवादी देश तुर्की की राजधानी अंकारा में इसका मुख्यालय बनाया गया। सेंटो ने 1965 व 1971 में हुई भारत-पाकिस्तान लड़ाई में भी दखलअंदाजी नहीं की। उस वक्त कहा गया कि यह एंटी सोवियत पैक्ट था, न कि एंटी इंडिया पैक्ट। 1974 में साइप्रस पर तुर्की का हमला रोकने में नाकामी तथा ईरानी इस्लामिक क्रांति के बाद 1979 में इस संगठन को भंग कर दिया गया। न्यायपूर्ण ढंग से पाकिस्तान ट्रंप के ट्वीट को प्राप्त नहीं कर सका, इसने तुरंत प्रतिक्रिया दी जब विदेश मंत्री ख्वाजा एम. आसिफ ने ट्वीट किया कि इंशाअल्ला हम ट्रंप के ट्वीट में जल्द प्रतिक्रिया देंगे… हम दुनिया को वास्तविकता व कल्पना में अंतर के बारे में बताएंगे। इसके शीघ्र बाद ही पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने एक वक्तव्य जारी किया जिसमें अमरीका के आरोपों को नकारा गया। उसने यह आरोप नकार दिया कि पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सहयोग नहीं किया। उसने क्षेत्र में शांति व स्थिरता को प्रोत्साहन देने के लिए अतुलनीय त्याग का उल्लेख किया।

चीन यह सब परिदृश्य देख रहा था। उसने बिना देरी किए पाकिस्तान का यह कहते हुए पक्ष लिया कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान का व्यापक योगदान रहा है। उसने इस बात का खंडन किया कि पाकिस्तान आतंकवादियों के लिए सुरक्षित शरणस्थली बना हुआ है। पाकिस्तान की प्रशंसा करते हुए चीन ने कहा कि इस्लामाबाद ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में बहुत योगदान दिया है तथा कई त्याग किए हैं। उसने आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में शानदार योगदान किया है। पाकिस्तान की ट्रंप द्वारा की गई आलोचना पर चीन से जब प्रतिक्रिया मांगी गई तो उसके एक प्रवक्ता ने कहा कि इस योगदान की प्रशंसा की जानी चाहिए। उसने यह भी कहा कि उनके देश को यह देखकर खुशी होती है कि क्षेत्र में शांति व स्थिरता के लिए योगदान करते हुए पाकिस्तान ने आतंकवाद का सामना किया है और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा दिया है। चीनी प्रवक्ता ने कहा कि चीन व पाकिस्तान हर मौसम में सहयोगी हैं। दोनों पक्षों के लाभ के लिए हम सहयोग के संबंधों को और व्यापक बनाने तथा आपसी समझदारी बढ़ाने के लिए हर समय तैयार हैं। पाकिस्तान की यह प्रशंसा अपेक्षित थी, क्योंकि वहां चीन बड़े स्तर पर निवेश कर रहा है। पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर में चीन-पाक इकोनॉमिक कोरिडोर बनाने के लिए चीन ने 50 बिलियन डालर का निवेश किया है।

दूसरी ओर भारत ने इस पर एतराज जताया है क्योंकि यह पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर से होकर निकलेगा। गत सप्ताह चीन, पाकिस्तान व अफगानिस्तान के विदेश मंत्रियों की हुई बैठक में चीन ने इस कोरिडोर को अफगानिस्तान तक विस्तार देने की बात भी कही है। उल्लेखनीय है कि अफगानिस्तान, भारत का करीबी सहयोगी है। हालांकि अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई ने ट्रंप के पाक विरुद्ध बयान का स्वागत किया है। साथ ही इस बात का स्वागत भी हुआ है जिसके तहत अमरीका पाकिस्तानी सेना पर दबाव बना रहा है कि वह न केवल अफगानिस्तान में शांति लाने के लिए प्रयास करे, बल्कि पूरे क्षेत्र का भी ध्यान रखे। अफगानिस्तान ने पाकिस्तान की इस बात के लिए आलोचना भी कि है कि वह तालिबानी आतंकवादियों को न केवल शरण दे रहा है, बल्कि संरक्षण भी दे रहा है। उल्लेखनीय है कि तालिबानी अफगानिस्तान के लिए संकट पैदा कर रहे हैं। उधर चीन ने दोनों देशों के बीच मध्यस्थता कर इस मामले को सुलझाने की कोशिश की है। वह इस दिशा में त्रिस्तरीय मशीनरी की स्थापना करना चाहता है। फिर भी विश्लेषक इस मत के हैं कि अमरीका, पाकिस्तान पर दबाव इसलिए भी बना रहा है।

अगर साझे हित की बात सोचें तो यह स्वाभाविक है कि चीन, पाकिस्तान और अब अफगानिस्तान के मध्य संचार व लेन-देन बढ़े। अंततः चीन विश्वास करता है कि पाकिस्तान व अफगानिस्तान भौगोलिक रूप से एक-दूसरे के करीब हैं। यह समझ योग्य है कि तीनों में कई मसलों पर सहमति बनी है। इनमें आतंकवाद का मसला भी शामिल है। अगर तीनों मिलकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सहयोग करते हैं तो यह क्षेत्र के लिए अच्छी बात होगी। यह अपेक्षा की जा रही थी कि आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान को ट्रंप के संदेश का भारत स्वागत करेगा। प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि अमरीका ने भारत के उस दृष्टिकोण का समर्थन किया है, जिसके अनुसार कोई भी आतंकवादी, आतंकवादी ही होता है। इससे कोई राष्ट्र व कोई धर्म नहीं बच सकता। यह स्पष्ट है कि ट्रंप एक नई अमरीकी नीति लेकर आगे आए हैं। यह नीति बिल क्लिंटन की वामपंथी नीति की अपेक्षा ज्यादा दक्षिणपंथी लगती है। पुराने मू्ल्य अब प्रासंगिक नहीं रहे। डोनाल्ड ट्रंप अमरीका को अनुदारवादी युग की ओर वापस ले जा रहे हैं। अब भारत व अमरीका की वर्तमान कूटनीति से दोनों देशों में सहयोग का नया दौर शुरू होगा। दूसरी ओर सवाल है कि क्या अमरीका की मदद के बिना पाकिस्तान आगे बढ़ पाएगा। पाक का कहना है कि वह इस बात का आकलन कर रहा है कि उसे कितनी अमरीकी मदद मिली, ताकि उसे लौटाया जा सके। लेकिन यह सब जानते हैं कि पाकिस्तान यह कर नहीं पाएगा।

 ई-मेल : kuldipnayar09@gmail.com


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