‘दृष्टि’ के माध्यम से लघुकथाओं की सरिता

By: Jan 28th, 2018 12:05 am

पुस्तक समीक्षा

* पत्रिका का नाम : दृष्टि

* संपादक : अशोक जैन

* कुल लघुकथाएं : 90

* मूल्य : 500 रुपए (छह अंकों के लिए)

लघुकथा को पूर्णतया समर्पित अर्द्धवार्षिक पत्रिका ‘दृष्टि’ का अंक नंबर तीन (जुलाई-दिसंबर, 2017) साहित्यिक बाजार में आ गया है। यह पत्रिका दो वर्षों से छप रही है तथा इसका संपादकीय कार्यालय गुरुग्राम में है।संपादक अशोक जैन के नेतृत्व में पत्रिका लघुकथा के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दे रही है। 148 पृष्ठों पर आधारित नया अंक आकर्षक है तथा इसमें 90 लघुकथाएं संकलित की गई हैं जो विभिन्न लेखकों ने लिखी हैं। लघुकथाओं के अलावा इसमें समकालीन हिंदी लघुकथा पर एक साक्षात्कार भी प्रकाशित हुआ है। साहित्य विशेषज्ञ डा. बलराम अग्रवाल जब डा. लता अग्रवाल से रूबरू होते हैं तो लघुकथा से जुड़े कई सवाल परत-दर-परत उसकी चरित्रगत विशेषताओं का खुलासा करते हैं। लघुकथा का अध्ययन कर रहे छात्रों के लिए यह साक्षात्कार महत्त्वपूर्ण है। इसे पढ़कर कोई भी व्यक्ति लघुकथा से अनभिज्ञ नहीं रह सकता। संपादक की ओर से लिखा गया संपादकीय भी ज्ञानशील है। डा. अशोक भाटिया व माधव नागदा के लघुकथा पर आलेख भी रोचक हैं। इसके अलावा अनिल शूर व संदीप तोमर ने कुछ साहित्यिक गतिविधियों से भी पाठकों को अवगत कराया है। रामकुमार आत्रेय की लघुकथा आखिरी इच्छा, वह लघुकथा है जो संवेदना की दृष्टि से अधिसंख्य पाठकों के मन में गहराई तक उतर जाने तथा उनकी संवेदना जगाने में सफल रही है। मां की परिभाषा को संपुष्ट करती यह लघुकथा न केवल महिलाओं को पसंद आएगी, बल्कि पुरुष समाज के भीतर भी संवेदनात्मक हलचल पैदा करने में सक्षम है। इस अंक के विशिष्ट लघुकथाकार भगीरथ परिहार हैं जो पाली, राजस्थान के रहने वाले हैं। भाग शिल्पा भाग एक ऐसी लघुकथा है जो बेटे को ही जन्म देने की चाहत में महिलाओं के बार-बार गर्भपात से होने वाले नुकसान को इंगित करती है। इसमें महिला की करुणाजनक स्थिति उभर कर सामने आई है। बार-बार गर्भपात से पीडि़त लघुकथा की नायिका अंततः हार जाती है। औरत, मुक्ति, चूर हुए सपने व सुनहरे भविष्य का बीमा नामक लघुकथाएं भी रोचकता लिए हुए हैं। अंजू निगम की मैं जीना चाहती हूं व अरुण नैथानी की गुरु-लघु शिष्टाचार कथाएं भी रोचक हैं। अर्चना मिश्र की मुखौटा व अर्विना गहलोत की जीने की वजह ऐसी कथाएं हैं जो समाज को सीख देती हैं। कुणाल शर्मा की अपने-अपने लघुकथा संयुक्त परिवारों में कम होते प्यार की ओर इशारा करती है। कोमल वाधवानी की बंदर और इनसान कथा इनसान का विकृत चेहरा दिखलाती है। गोविंद शर्मा की हितैषी व वापसी का टिकट क्रमशः बच्चियों को पढ़ाने में आ रही दिक्कतों तथा घर के बुजुर्गों की घरों में कम होती अहमियत की ओर इशारा करती हैं। चंद्रेश छतलानी मां पूतना के माध्यम से एक पागल महिला की कहानी सुनाते हैं और उसके प्रति संवेदना जगाते हैं। जगदीश राय अपना-अपना मोह के माध्यम से बूढ़ी मां से पीछा छुड़ाते बेटे-बहू की करतूत का खुलासा करते हैं। नरेंद्र कुमार गौड़ की शंखनाद अत्याचार के खिलाफ एक बूढ़ी औरत के संघर्ष को दर्शाती है। फरेब, खुदमुख्त्यार, बेटी होती तो, तीन पत्ती भी रोचक कथाएं हैं। पुष्पा जमुआर की अश्वत्थामा, प्रताप सिंह सोढी की जलन, प्रभात दुबे की बदलते सुर अलग-अलग संदेश देती हैं। प्रेरणा गुप्ता की पुरुषों का संसार सृष्टि में कम होती महिला संख्या की ओर इशारा करती है। बलराम अग्रवाल की नदी को बचाना है नामक लघुकथा पर्यावरण का संदेश देती है। बीना राघव की बदलाव कहानी सयाने सेठ-सेठानी के नजरिए को दर्शाती है। अपने-अपने स्वार्थ मंजु शर्मा की वह लघुकथा है जो एक घरेलू नौकरानी के मनोरथ को बताती है। मधु जैन की शगुन किन्नरों के नरम दिल का बखान करती है। मधुकांत की असली घर में एक मां की ममता और उसकी पीड़ा को अभिव्यक्ति मिली है। मधुदीप अपनी हेकड़ लघुकथा में एक हेकड़ व्यक्ति की कहानी बताते हैं। माणक तुलसीराम की इलजाम वह लघुकथा है जिसमें एक बूढ़ी औरत अपने पति के प्रति नरम दिल के कारण अनपेक्षित आरोप का सामना करती है। माधव नागदा की हम हैं न नामक लघुकथा भू्रण हत्या का वीभत्स नजारा पेश करती है। मुर्गा, मूढ़े, रिश्ते की महक, गांधी का चौथा बंदर, द्वंद्व, अभाव, अपना घर, टेम-बे-टेम, पैंतालीस, उसके साथ ही, रेनोवेशन, गरीब का लंच बाक्स, क्या करूं, उत्तर कार्य, अनुत्तरित, पहली बारिश, पत्थर दिल, खेती, स्टेटस सिंबल, रक्तचरित्र, कुपात्र, अवतार, गुठली, डंक वाली मधुमक्खी, बाल मजदूरिन, होमवर्क, गऊ हत्या, निष्कर्ष, असली बात, साड़ी और पोटली, मुखर होती सिहरन, उलझन, रामभजन, नजदीक की दूरी, चूक, उपहार, सच न बताना, सरप्राइज गिफ्ट, परिवेश, पंजाबी पुत्तर, हद हो गई, गंवार, रोटी, पुराना जूता, हैरत, अपनी-अपनी रचना, पत्थरबाज, जिंदा का बोझ, डर व जोरू का गुलाम ऐसी लघुकथाएं हैं जो भिन्न विषयों पर लिखी गई हैं। रोचकता से पिरोई गई ये कथाएं अलग-अलग सामाजिक संदेश देती हैं तथा मानव संवेदना को जगाती हैं। इनके अलावा अशोक जैन, अशोक दर्द, अशोक भाटिया, आकांक्षा यादव, आभा सिंह, उपमा शर्मा, ऊषा यादव, ऊषा लाल, ऊषा भदौरिया, कंवल नयन, कपिल शास्त्री, कमल कपूर, कमल चोपड़ा, कमलेश भारतीय, कल्पना भट्ट, कविता वर्मा, कांता रॉय, कीर्ति श्रीवास्तव, कृष्णलता यादव, कुसुम जोशी, ज्योति जैन, त्रिलोक सिंह ठकुरेला व दुलीचंद रमन ने भी अपनी-अपनी लघुकथाओं से पाठकों को प्रभावित किया है। कुल मिलाकर पत्रिका में संकलित की गई लघुकथाएं सरपट अपनी मंजिल की ओर दौड़ती हुई विभिन्न संदेशों के माध्यम से गहरा प्रभाव छोड़ जाती हैं।

                                                                                                                                                          -फीचर डेस्क

 


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