नए संकल्प का प्रशासन

By: Jan 22nd, 2018 12:05 am

सरकार का हर पद एक सपना हो सकता है और यही साबित करते हुए दो बड़े जिलों यानी कांगड़ा-मंडी के उपायुक्तों ने अपने संकल्प का इजहार किया है। मंडी के उपायुक्त ऋग्वेद ठाकुर जनता के साथ मिलकर जिला के लिए ड्रीम मंडी प्रोजेक्ट चलाएंगे, जबकि कांगड़ा के डीसी संदीप कुमार एक खाके के तहत जनता के सपनों को हकीकत में बदलेंगे। जाहिर है प्रशासन अगर अपने लिए इस तरह के लक्ष्य निर्धारित करेगा, तो सरकारी कामकाज का तरीका भी बदलेगा, लेकिन इससे पूर्व यह भी समझना होगा कि पूर्व में रहे प्रशासनिक नेतृत्व के किन फैसलों का विस्तार जारी रखना होगा। कुछ साल पहले मंडी के प्रशासन ने सब्जी और फलों के दाम सब्जी मंडी से परचून खरीद तक तय करके पूरे प्रदेश को राह दिखाई। उस दौर में यह मॉडल पूरे प्रदेश का आदर्श बना, क्योंकि इसके पीछे उपभोक्ताओं को पारदर्शी ढंग से दैनिक खरीद का तरीका मिला, लेकिन अधिकारी बदलते ही सारी पद्धति डूब गई। इसी तरह हमीरपुर व कांगड़ा जिलों के उपायुक्तों ने ट्रैफिक फ्री जोन बनाने के प्रयास किए, लेकिन उच्चाधिकारियों के तबादले होते ही पूरी व्यवस्था बदल जाती है। उम्मीद करनी चाहिए कि जयराम सरकार के दौर में समस्त अधिकारी अपने विजन की हुकूमत में पूर्ववर्ती अधिकारियों की दक्षता को समाहित करेंगे। मंडी के विकास का मील पत्थर इंदिरा मार्केट है और इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ-साथ तत्कालीन अधिकारियों का श्रम दिखाई देता है। क्यों न ऐसी परियोजनाओं का उल्लेख स्थायी रूप से प्रदर्शित हो। वर्षों से हम सुनते आ रहे हैं कि शहरों का टै्रफिक प्लान बदलेगा, मगर होता इसके विपरीत है। जब कहीं कोई पुलिस अधिकारी सख्ती से हेल्मेट पहनाने, गलत पार्किंग हटाने या बाजारों से अतिक्रमण हटाने की कोशिश करता है, उसे ही हटा दिया जाता है। ऐसे में अगर मंडी-कांगड़ा की तर्ज पर समस्त जिलाधीश अपनी योजनाओं को कार्यान्वित करना चाहें, तो सियासत का समर्थन चाहिए, अन्यथा कर्मठ अधिकारी भी केवल वक्त गुजार कर चले जाते हैं। यहां नागरिक संदर्भों में विकास की परिपाटी बदलने के लिए मंडी प्रशासन अगर सफल रहता है, तो प्रशासनिक सफलता के बीच सभी जिलों में प्रतिस्पर्धा शुरू होगी। जिस नक्शे पर कांगड़ा के उपायुक्त ने अपने विजन को पेश किया है, उसका अनुसरण पूरे हिमाचल में हो सकता है। उपायुक्त संदीप कुमार ने पर्यटन और पर्यटन से जुड़े रास्तों पर अपनी निगाह डालते हुए, जो संकल्प लिया है, उसे पूरा करना कठिन नहीं होगा। बैजनाथ के पास महाकाल में अब तक का विकास भी इसे महाराष्ट्र के शनि शिगणांपुर का दर्जा देता है और अगर आधारभूत सुविधाएं तथा भविष्य की रूपरेखा में आगे बढ़ें, तो यह धार्मिक पर्यटन की अनूठी मिसाल होगी। इसी तरह कालेश्वर और नाग-नागणी मंदिरों के विकास की आवश्यकता है, बल्कि जनसहभागिता से योजनाएं जोड़ी जाएं, तो कई पौराणिक धार्मिक स्थलों में निखार आएगा। हिमाचली प्रशासन के मायने कमोबेश हर जिला में एक समान हैं और इनमें एक बड़ा स्थान योग्य व दक्ष अधिकारियों के कारण सफलता के साथ जुड़ता है। खास तौर पर ट्रैफिक व पार्किंग व्यवस्था, सरकारी ढांचे तथा अधोसंरचना के सदुपयोग से काफी कुछ संभव है। प्रशासनिक तौर पर भविष्य की चुनौतियों को देखते हुए, भूमि इस्तेमाल पर चिंतन की जरूरत के अलावा भूमि बैंक का निर्धारण लाजिमी है। समस्त उपायुक्त अपने स्तर पर यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि हर बड़े शहर की चारों दिशाओं में बड़े मैदान स्थापित किए जाएं। मुख्य बाजारों को ट्रैफिक रहित किया जाए तथा सड़कों पर बस स्टॉप एवं चौराहों का माकूल विकास करते हुए परिवहन व्यवस्था के आदर्श स्थापित किए जाएं। हर जिला की ट्रैफिक व्यवस्था के प्लान से कहीं अधिक परिवहन नियमों को हर सूरत अमल में लाने की व्यवस्था कायम की जाए। युवा पीढ़ी के केंद्र में दोपहिया वाहनों की गति पर अंकुश तथा नशे की खेप पर जबरदस्त प्रहार की जरूरत है। कांगड़ा के जिलाधीश ने ओवरहैड ब्रिज की तरफ इशारा करते हुए वैकल्पिक परिवहन की ओर समाधान देखे हैं। हिमाचल की भौगोलिक स्थिति कुछ ऐसी है कि दो पहाडि़यों के बीच झूला पुल बनाकर पैदल भ्रमण आसान किया जा सकता है तथा रज्जु मार्गों के साथ सार्वजनिक परिवहन का नया मॉडल स्थापित हो सकता है। उदाहरण के लिए ज्वालामुखी का बस स्टैंड कुछ इस तरह बन सकता है कि वहीं से रज्जु मार्ग से श्रद्धालु मंदिर तक आसानी से पहुंच पाएगा। प्रशासनिक संवाद के जरिए नागरिक सहभागिता बढ़ाते हुए सड़कों पर पार्क किए वाहन हटाने, स्वच्छता अभियान में व्यापार मंडलों, टैक्सी यूनियनों तथा होटल-रेस्तरां को जोड़ा जा सकता है। हर शहर और हर गांव के लिए एक या दो दिन निर्धारित करके इन्हें जिला उत्सव के रूप में मनाया जाए, तो सामूहिक व्यवहार को राज्य निर्माण का प्रहरी बनाया जा सकता है। प्रदेश में उपायुक्तों की काउंसिल बनाकर योजनाओं का आदान-प्रदान तथा पूरे प्रदेश के परिप्रेक्ष्य में समरूपता लाई जा सकती है। उदाहरण के लिए धार्मिक, धरोहर या सांस्कृतिक पर्यटन के लिए सभी मंदिर स्थलों को एक सर्किट का रूप देना होगा और अगर प्रयास किए जाएं तो इनका विकास आदर्श शहरी योजना की पैरवी करेगा। कांगड़ा, हमीरपुर, बिलासपुर, ऊना, मंडी-कुल्लू तथा सिरमौर के उपायुक्त अगर मंदिर क्षमता का सही इस्तेमाल करें, तो प्रसाद, हवन-धूप, पूजा सामग्री तथा गिफ्ट वस्तुओं की उत्पादन इकाइयों के मार्फत इनका आदान-प्रदान करते हुए विशेष मार्केट विकसित की जा सकती हैं।


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