निर्भीक सैन्य निष्ठा को नमन !

By: Jan 15th, 2018 12:05 am

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक, घुमारवीं, बिलासपुर से हैं

किसी देश की ताकत उसकी सेना होती है। सेना मजबूत होगी, तो दुश्मन भी उस देश की तरफ आंख उठाने से पहले सौ बार सोचेगा। हमारा देश तो 15 अगस्त, 1947 को आजाद हो गया, पर हमारी सेना को असल स्वतंत्रता मिली 15 जनवरी, 1949 को। सेना दिवस यानी भारतीय सेना की आजादी का जश्न। यूं तो भारतीय सेना की स्थापना 1776 ई. को ईस्ट कंपनी द्वारा की गई थी, मगर आजादी के बाद 15 जनवरी, 1949 को जनरल केएम करियप्पा को देश का पहला सेना प्रमुख नियुक्त किया गया था। इससे पहले ब्रिटिश मूल के सर रॉबर्ट बूचर इस पद पर आसीन थे। इसी दिन भारतीय सेना ब्रिटिश सेना से पूरी तरह मुक्त हुई थी और भारतीयों का पूर्ण रूप से भारतीय सेना पर वर्चस्व बन गया था। इस दिवस पर जहां देश की रक्षा में अहम किरदार निभाकर बलिदान देने वाले सैनिकों को याद करके श्रद्धांजलि दी जाती है, वहीं वीरतापूर्वक काम करने वाले सैनिकों को सम्मानित भी किया जाता है। वर्तमान में जनरल बिपिन रावत भारतीय सेना के 27वें सेनाध्यक्ष हैं। जनरल केएम करियप्पा का नाम कुछ ही दिन पहले चर्चा का विषय तब बना था, जब हमारे सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत कोडगू जिला में गए थे। उस समारोह के मौके पर उन्होंने जनरल करियप्पा को ‘भारत रत्न’ देने की बात कही थी, जिसका देश के कई बुद्धिजीवियों और कुछ राजनीति से जुड़े लोगों ने विरोध किया था। अब यहां प्रश्न यह उठता है कि जिन सैनिकों के पास देश के लिए युद्धों का या रक्षा क्षेत्र का दशकों का अनुभव हो या जो सैनिक देश की रक्षा में अपना अहम किरदार अदा कर चुके हों, क्या वे भारत रत्न के योग्य नहीं हो सकते? क्या सैनिक तपते मरुस्थल से लेकर बर्फीले तूफान की चपेट में आकर शहीद होने के लिए होते हैं या बिना वजह सरहदों पर देश की रक्षा के लिए दुश्मनों की गोलियों का शिकार होने के लिए होते हैं? कड़ा परिश्रम करके भारतीय सेना की स्पेशल फोर्सेज का हिस्सा बनकर हमारे जांबाज क्या नेताओं की वीआईपी सुरक्षा के लिए होते हैं? इनमें वे अलगाववादी नेता भी शामिल हैं, जो भारतीय सुरक्षाबलों पर पत्थरबाजी करने वालों को उनके हक की लड़ाई बताते हैं और आए दिन भारतीय सेना के विरुद्ध और भारत विरोधी बयानबाजी से भी गुरेज नहीं करते। सेना पर सवाल उठाने वालों को शायद यह पता नहीं कि सेना के सामने जब परिस्थितियां विकट हों, तो देश की सुरक्षा व्यवस्था को सही करने के लिए कठोर कदम उठाने पड़ते हैं। जहां सेना पर देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी है, वहीं देश की मान-मर्यादा की हिफाजत की जिम्मेदारी भी होती है। जो लोग सैनिक जीवन के बारे में नहीं जानते, उनके लिए ये सब बातें कल्पना मात्र हैं। भारतीय सेना की अपनी एक अलग परंपरा, अपना अलग इतिहास और अपना अलग अनुशासन रहा है। ऐसा अनुशासन शायद ही दूसरे देशों की सेना में हो। इसी अनुशासन का उदाहरण है कि सेवानिवृत्ति के बाद भी पूर्व सैनिकों द्वारा ‘वन रैंक, वन पेंशन’ के लिए दशकों से चला रहा आंदोलन भी अनुशासित ही रहा है, क्योंकि भारतीय सैनिक इस लोकतंत्र की व्यवस्था में अपने स्थान को जानते हैं और उसका सम्मान करते हैं। दुख की बात है कि हमारे नीतिकारों ने सैनिकों के इन विषयों पर गंभीरता से कभी विचार करके सैनिकों की पीड़ा को समझने की कोशिश ही नहीं की, जिसे व्यवस्था की कमी ही कहा जाएगा। भारतीय सेना देश की सबसे सम्मानीय संस्था है, जो कि राजनीति से कोसों दूर है और देश के युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है। एक सैनिक के रूप में देश के लिए अपनी सेवाएं देना किसी नौजवान के लिए गर्व की बात है। यदि सेना प्रमुख सेना का पक्ष रखते हैं तो यह उनका फर्ज है, जिससे जवानों का मनोबल बढ़ता है और सेना को प्रोत्साहन मिलता है। इसी अराजनीतिक रुख और देश के प्रति निर्भिक निष्ठा और प्रतिबद्धता से ही सेना की पहचान है। भारतीय सेना के इतिहास पर यदि नजर डालें तो यह आजादी के तुरंत बाद 1947 में कश्मीर पर पाकिस्तान द्वारा परोक्ष रूप से किए जाने वाले कबायली हमले से बचाने से शुरू हुआ था। तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने सेना की मदद से अनगिनत रियासतों का भारत में विलय किया था, जिनमें हैदराबाद को मुक्त करवाना भी शामिल है। इसके बाद 1962 चीन युद्ध, 1965 पाक युद्ध और 1971 में पाक युद्ध में पाकिस्तानी सेना का आत्मसमर्पण दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा आत्मसमर्पण था। 1999 में कारगिल जैसे दुर्गम क्षेत्र में युद्ध जीत कर भारतीय सेना ने यह दिखा दिया कि भारतीय सेना का जमीनी युद्ध में दुनिया में कोई मुकाबला नहीं है। यही कारण है कि आज भारतीय सेना की गिनती विश्व की सर्वोत्तम सेनाओं में होती है। बीते साल की यदि बात की जाए, तो पाकिस्तान ने 885 बार सीजफायर का उल्लंघन किया और हमारी सेना ने 210 के करीब आतंकियों को मार गिराया। इस सबके बावजूद यदि हमारी सरहदें सुरक्षित हैं, तो मतलब साफ है कि हमारी सेना चौबीसों घंटे चौकस है और देश रक्षा का हर सैनिक ने प्रण लिया है। सियासत किसी भी दिशा में जाए, तुष्टीकरण की नीति जो भी हो, मगर यह सच है कि भारतीय सेना चौकस है, तभी देश के नागरिक सुरक्षित हैं। सेना के बिना किसी भी देश का अस्तित्व ही नहीं हो सकता। सैनिकों के बलिदान के कारण ही हमारे नेता और बुद्धिजीवी अपने होने का दंभ पालते हैं। मगर इस वोट बैंक की राजनीति के चलते सरकारें भी सैनिकों के प्रति अपने कार्यों से विमुख होने लगी हैं, नहीं तो बिना सैन्य नियमावली या तथ्यों को जाने, सैन्य कार्रवाइयों पर सवाल उठाने या उन्हें फर्जी बताने की किसी की हिम्मत न होती। सेना के नायकों ने देश की रक्षा में अहम किरदार निभाने के लिए ‘विजय या वीरगति’ देश के नाम की है, उन रणबांकुरों पर हर भारतीय को नाज होना चाहिए। ऐसे शूरवीरों को हमारा कोटी-कोटी नमन!


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