पहाड़ों में है पूर्वजों की पूजा का प्रचलन

By: Jan 17th, 2018 12:05 am

पहाड़ों में पूर्वजों की पूजा का प्रचलन भी है। कई परिवारों में परिवार के शक्तिशाली या प्रसिद्ध व्यक्तियों की या सती हो चुकी स्त्रियों की चांदी या पत्थर की मूर्तियां सुरक्षित करके रखी होती हैं। प्रत्येक नई फसल आने पर या परिवार में बीमारी आदि होने पर उन मूर्तियों  को धूप कुंगु देकर पूजा जाता है…

हिमाचल में धर्म और पूजा पद्धति

कोटेश्वर और मड़ेच्छ या डिठू की आपस में मित्रता हो गई, किंतु बाद में मड़ेच्छ भी आदमी का मांस खाने लग गया। इस पर कोटेश्वर ने उसे कैद कर लिया और मानव मांस न खाने की शपथ लेने पर ही मुक्त किया तथा अपना मंत्री बना लिया और उसे ढोलेश्वर में रहने को स्थान दे दिया। मलेंडु, शेलग, भड़योच और पौची आदि में भी मडे़च्छ मंदिर हैं।

मुल पड़ोई देवता की पूजा:  इस देवता के भी मध्य हिमाचल के स्थानों पर कई मंदिर हैं। इसकी उत्पत्ति के विषय में लोक गाथा प्रचलित है कि सिरमौर का एक देवी सिंह का नाम का राजकुमार नरोलिय देवता की मूर्ति को लेकर कहीं से आ रहा था। रास्ते में वह एक गुफा में ठहरा, उसे आवाज सुनाई दी ‘छूटूं, पंडू’। उसने उसे छोड़ने को कहा। इस पर एक मूर्ति गिरी जिसने राजकुमार को राज्य करने को कहा। जब राजकुमार ने बताया कि उसके पास कोई राज्य नहीं है, तो वह मूर्ति उसे कोटी ले गई जहां उसने अपना राज्य स्थापित किया और मूल पड़ोई नामक स्थान पर उस देवता की स्थापना की।

ऋषि पूजा: पहाड़ों में मार्कंड, ब्यास, वशिष्ठ, शुकदेव, लोमस, शृंगी, मांडव्य, जमदग्नि तथा वाल्मीकि ऋषियों की पूजा भी प्रचलित है और उनके नाम से संबंधित कई मंदिर बने हैं। जहां बिलासपुर में मार्कंड व व्यास ऋषि के, सुंदरनगर में शुकदेव के, मंडी में मांडव्य और लोमस ऋषि के, सिरमौर में जमदग्नि ऋषि के मंदिर हैं, कुल्लू में शृंगी व वशिष्ठ आदि के मंदिर हैं। इन मंदिरों में संबंधित ऋषियों की मूर्तियां कल्पनानुसार स्थापित की गई हैं। मंदिर में मेले लगते हैं और ऋषिजनों की पूजा की जाती है।

पूर्वज पूजा:  इसके अतिरिक्त पहाड़ों में पूर्वजों की पूजा का प्रचलन भी है। कई परिवारों में परिवार के शक्तिशाली या प्रसिद्ध व्यक्तियों की या सती हो चुकी स्त्रियों की चांदी या पत्थर की मूर्तियां सुरक्षित करके रखी होती हैं। प्रत्येक नई फसल आने पर या परिवार में बीमारी आदि होने पर उन मूर्तियों  को धूप कुंगु देकर पूजा जाता है। पकवान बनाकर अड़ोसियों-पड़ोसियों को खिलाया जाता है। ये पूर्वज परिवार की रक्षा करने वाले समझे जाते हैं। श्राद्ध आदि भी पूर्वज पूजा के ही उदाहरण हैं।

भगवान राम और कृष्ण पूजा: उपरोक्त सभी बातें होते हुए भी यहां राम और श्रीकृष्ण की भगवान के अवतार के रूप में पूजा की जाती है। हिमाचल प्रदेश के सभी क्षेत्रों में श्रीराम और श्रीकृष्ण के मंदिर बने हैं। यहां तक कि मंडी के राजा ने अपनी राजधानी को माधोराय यानी श्रीकृष्ण को और कुल्लू के राजा ने अपनी रियासत को रघुनाथ को समर्पित कर दिया था। कुल्लू के दशहरे में रघुनाथजी की रथ यात्रा उसी घटना का प्रतीत होती है। राम के जन्मदिन रामनवमी और कृष्ण के जन्मदिन जन्माष्टमी को व्रत रख कर कीर्तन किए जाते हैं और पकवान बनाकर खाए जाते हैं। पहाड़ी लोगों के अपने देवी-देवताओं पर व समाज में अपने कुछ विश्वास हैं। आज भले ही इन्हें अंधविश्वास कह लीजिए, पर आज के युग में भी लोग उन्हें मानते हैं।


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