पालमपुर की मिट्टी से निकलीं छह सौ किताबें

By: Jan 31st, 2018 12:06 am

हिमाचली पुरुषार्थ

सुदर्शन भाटिया ने अपनी सर्विस के दौरान ही इतनी क्वालिफिकेशन हासिल कर ली थी कि स्वतः ही उनमें पठन-पाठन का ऐसा जज्बा जागा कि आज वह 650 के लगभग किताबें लिख चुके हैं…

इसे जुनून कहें या जुस्तजू कि एक इंजीनियर ने कलम को ही अपना डिजाइन बना लिया। कलम ने इस इंजीनियर को अपना ऐसा कायल बनाया कि अब तक 650 के लगभग किताबें लिख डालीं। सुदर्शन भाटिया किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। अभी हाल में वह राष्ट्रपति कोविंद पर सबसे पहले किताब लिखकर काफी चर्चा में रहे हैं। सुदर्शन भाटिया का जन्म अविभाजित भारत में सरगोदा (जो अब पाकिस्तान में है) के पास लालियां गांव में 5 जून, 1940 को पिता स्वर्गीय अविनाशी लाल और माता स्वर्गीय सीता देवी के घर हुआ। आजादी के बाद जब भारत-पाकिस्तान का विभाजन हुआ, तो सुदर्शन भाटिया का परिवार हरियाणा राज्य के रोहतक में गोहाना नामक स्थान पर आकर बस गया।

गोहाना में चार भाइयों सहित सुदर्शन भाटिया आकर रहने लगे, तब इनकी उम्र महज सात साल की थी। गोहाना में इनके पिता शाहजी के नाम से मशहूर हुए। सुदर्शन भाटिया की प्राइमरी शिक्षा हरियाणा के एक पब्लिक स्कूल में और हाई स्कूल तक शिक्षा गोहना के एक सरकारी स्कूल से हुई। मैट्रिक की परीक्षा में सुदर्शन भाटिया अपनी तहसील में प्रथम स्थान पर रहे। इसके बाद इन्होंने नीलोखेड़ी से तीन साल का इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया।

1958 से लेकर 1961 में डिप्लोमा करने के दौरान ही उन्होंने रतन, भूषण, प्रभाकर और पंजाबी में मैट्रिक और एफए इंग्लिश प्राइवेट ही कर ली। अक्तूबर, 1961 में उन्हें हिमाचल इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में नौकरी मिली और उनकी पोस्टिंग डलहौजी में हो गई। उसके बाद मंडी, बिलासपुर और कई जगहों पर सेवाएं देते हुए 38 वर्ष की सेवाओं के बाद वह 1998 में सेवानिवृत्त हो गए। अपनी सरकारी सेवा के दौरान ही उन्होंने प्राइवेट तौर पर इंग्लिश में बीए, बीए पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन से की। इन्हें असिस्टेंट ट्रेजरी आफिसर की पोस्ट का ऑफर मिला, पर इन्होंने ज्वाइन नहीं किया।

उन्होंने जॉब के दौरान ही एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन की और इन्हें बंगलूर में ग्राउंड इंजीनियरिंग में जॉब की ऑफर आई, पर इन्होंने वहां भी ज्वाइन नहीं किया। वजह यह थी कि इनकी पत्नी भी टीजीटी अध्यापक थीं और इसी वजह से उनका घर से दूर जाना संभव नहीं हो सका। सुदर्शन भाटिया ने अपनी सर्विस के दौरान ही इतनी क्वालिफिकेशन हासिल कर ली थी कि स्वतः ही उनमें पठन-पाठन का ऐसा जज्बा जागा कि आज वह 650 के लगभग किताबे लिख चुके हैं।

छठी कक्षा से ही लिखने लगे ः जब सुदर्शन भाटिया छठी कक्षा में पढ़ते थे, तो उन्होंने उस समय के बड़े समाचार पत्र नवभारत में अपनी कविताएं भेजनी शुरू कीं, पर उनकी कविताओं को छापा नहीं जाता था। एक बार उन्होंने उस समाचार पत्र के संपादक को धमकी भरा पत्र लिखा, जिसमें लाइनें कुछ इस प्रकार थीं…

‘यदि अब भी मेरी कविता नहीं छापी, तो श्राप दे दूंगा।

दूंगा ऐसा श्राप बदला शीघ्र ले लूंगा।।

बनोगे राम जा त्रेता में रावण को पछाड़ोगे।

बनोगे कृष्ण या द्वापर में कंस को संहारोगे।

बनोगे गांधी कलियुग में समाज को सुधारोगे।।

बस फिर क्या था, उसी हफ्ते सुदर्शन की कविता बॉक्स में छाप दी गई। बस यहीं से उनका लेखन का सिलसिला शुरू हो गया। उसके बाद इन्होंने अलग-अलग टॉपिक पर उसी समाचार पत्र में लिखना शुरू किया, जिसमें एक विषय था ‘प्रेम विवाह’। प्रेम विवाह को सुदर्शन जी ठीक नहीं मानते थे, पर संयोग देखो कि वह स्वयं ही प्रेम विवाह कर बैठे। फरवरी, 1966 तक उनका उपन्यास (खिलते फूल, महकती कलियां), 15 कहानियां और अनेक व्यंग्य लेख वीर प्रताप समाचार पत्र में छप चुके थे।

अब तक वह सभी राष्ट्रपतियों पर किताबें लिख चुके हैं। वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की घोषणा 19 जनू, 2017 को हुई और उसी रात इन्होंने उनकी किताब के पांच-छह पन्ने लिख डाले और जब उन्होंने 25 जुलाई, 2017 को शपथ ग्रहण की, तब तक सुदर्शन भाटिया अपनी किताब पूरी कर चुके थे। 10 दिन बाद ही उन्होंने राष्ट्रपति कोविंद पर दूसरी किताब पूरी कर ली। ‘दिव्य हिमाचल’ में एडिटोरियल में छपे ‘रायसीना हिल्स में राम राज’ से उन्हें इस किताब के लिए काफी कुछ अपनी किताब के लिए मिल गया। राष्ट्रपति कोविंद पर सबसे पहले उनकी ही किताब है।

क्यों अलग हैं सुदर्शन भाटिया

  1. 2011 में दिल्ली पुस्तक मेले में उनकी पुस्तक ‘क्रांतिदूत अन्ना हजारे’ नामक किताब की 25000 प्रतियां बिकीं, जो एक विश्व रिकार्ड ही माना जाएगा और सभी अंग्रेजी अखबारों ने इसे प्रमुखता से छापा था।
  2. 22 साल में 650 हिंदी पुस्तकें लिखने वाले वह अकेले ऐसे शख्स हैं।
  3. पुराणों से लेकर विज्ञान, अध्यात्म, राजनीति, अर्थशास्त्र आदि हर विषय की किताबे इन्होंने लिखी हैं। 100 से अधिक प्रश्नोत्तरी पुस्तकें भी इनकी हैं।
  4. इनके 36 लुघकथा संग्रह छप चुके हैं। देश भर की 585 पत्र-पत्रिकाओं में इनकी रचनाएं 13000 बार प्रकाशित हो चुकी हैं।
  5. अब भी हर महीने इनकी 45 रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में छप रही हैं।
  6. इनके लेखन पर 5 छात्र एमफिल और एक पीएचडी छात्र शोध कर रहा है।

जब रू-ब-रू हुए…

लेखन में भी चलती का नाम गाड़ी है…

आपके लिए लेखन क्या है?

लेख या लेखन मेरे लिए ऑक्सीजन का काम करता है। जिस प्रकार प्राणी बिना ऑक्सीजन जीवित नहीं रह सकता, मैं लेखन के बिना मृतप्राय सा अनुभव करने लगता हूं। जी चाहता है कि जितना भी मैं जानता हूं, उसे कलम द्वारा कागज पर उकेरता चला जाऊं।  कलम चलाने तथा लेखन करने सेकभी थकता नहीं ।

यह कैसे संभव है कि आप सभी विषयों पर पुस्तक लिख सकते हैं?

मुझे इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं लगती। जब मैं किसी विषय पर लिखने बैठता हूं, तो कलम रुकती नहीं। यह  मेरा अपना प्रताप नहीं प्रभु कृपा तथा मां सरस्वती का आशीवार्द है।

अब तक की सबसे कम समय में लिखी किताब?

महामहिम प्रणब मुखर्जी द्वारा शपथ लेने के मात्र सात दिनों में उनके व्यक्तित्व तथा कृतित्व पर पौने तीन सौ पृष्ठ लिखे, जिसे डायमंड बुक्स द्वारा प्रकाशित किया।

और जिस पर बहुत पसीना बहाया?

यकीनन प्रणब मुखर्जी पर सात दिनों में इतनी बड़ी किताब लिखना श्रमसाध्य रहा। हां, अन्ना हजारे के आंदोलनों पर आई दोनों पुस्तकें भी 10 दिनों में पूरी की थी। दस दिसंबर 2012 को हुए गैंगरेप पर सर्वप्रथम एक बड़े आकार की किताब मैंने लिखी- नाम था ‘असुरक्षित नारी की वेदना’ इस घटना में मुझे लिखते मेरा पसीना भी निकला और अश्रु भी । इस में जरा भी अतिशयोक्ति नहीं।

रोजाना कितना समय लेखन पर निर्धारित है और इसके लिए अध्ययन या खोज के लिए क्या रास्ता चुनते हैं?

10 से 12 घंटे-टुकड़ों में लेखन को देता हूं। मेरी पत्नी की बीमारी- उनकी तामीरदारी, छह सामाजिक तथा साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ा होने के कारण प्रेजिडेंट, वाइस प्रेजिडेंट और सचिव आदि के दायित्व से जो भी पल बचते हैं, वे सब  लेखन को समर्पित करता हैं।

क्या लेखक समुदाय आपको शक की निगाहों से नहीं देखता। अब तक की सबसे खतरनाक आलोचना और सबसे मीठी प्रशंसा?

मुझे किसी ने शक की नजर से देखा। देखा भी हो तो मैं जानता  नहीं। इतना जरूर है कि कलाकार ईर्ष्या जरूर करते हैं। ऐसा होना स्वाभाविक भी है। पीठ थपथपाने वाले कम मिलते हैं, टांगें खींचने वाले अधिक ।

 कितने प्रकाशक आपकी मुट्ठी में हैं। प्रकाशकों-संपादकों के सान्निध्य में आपके कड़वे अनुभव?

प्रकाशक तो बहुत बड़ी चीज है। लेखक तो कुछ भी नहीं। प्रकाशन न हो पाए, तो लिखा धरा-धराया रह जाता है। हां, इतना तो कह सकता हूं कि दिल्ली, आगरा, रोहतक, चडीगढ़, पंचकूला आदि के 45 प्रकाशकों के साथ घनिष्ठता से जुड़ा हूं। वहां मैं खूब छपा हूं।

साढ़े छह सौ किताबों में से कितनी विमोचित हुईं या बिना समीक्षा के ही काम चल जाता है?

अब तक तीन राज्यपाल, तीन मुख्यमंत्री, तीन केंद्रीय मंत्री तथा अनेक काबिना मंत्री, शिक्षाविद और प्रशासन के उच्च अधिकारी मेरी 415 किताबों का विमोचन कर चुके हैं। किताबों पर समीक्षाएं छप चुकी हैं। बिना विमोचन या समीक्षा का काम जरूर चल जाता है।

 ऐसे कौन से विषय रह गए, जिन के ऊपर सुदर्शन भाटिया के हस्ताक्षर नहीं हुए?

मैंने कहानी, उपन्यास, व्यंग्य, देश भक्ति, राष्ट्र निष्ठा, राष्ट्रीय गौरव, इतिहास, धर्म एवं संस्कृति, महापुरुषों की जीवनी एवं ज्ञान, संस्कृति उत्थान, बाल साहित्य, शिशु पालन, स्त्री शिक्षा, योग, बागबानी, आधुनिक  साहित्य, व्यक्तित्व, प्राकृतिक चिकित्सा,स्वास्थ्य, प्रश्नोत्तरी, कोश, व्यावहारिक विज्ञान, सच्ची प्रेरक घटनाएं, पर्यावरण आदि पर बहुत लिखा है। मेरे हिसाब से विषय तो कोई नहीं छूटा।

आपके अनुसार क्या लेखक होने और छपने के लिए अलग-अलग विशेषताएं हैं?

पुस्तक महल, किताब घर, डायमंड, आत्मराम एंड संस जैसे लगभग 45 प्रकाशक मेरे लेखन को अधिमान देकर मुझे उत्साहित कर रहे हैं। सच कहूं तो मैंने भी छपने के लिए बहुत संघर्ष किया। अब मेरे लिए लिखना और छपना कोई अलग-अलग मायने नहीं रखता।

पुस्तकों के अंबार में लेखन का भविष्य कैसे देखते हैं?

मेरा मानना है कि  चलती का नाम गाड़ी है। कुछ हद तक जहां चाह वहां राह भी ठीक मानता हूं। खुशवंत सिंह, कुलदीप नैय्यर पर बड़े-बड़े उपन्यासकार, कहानीकार व्यंग्य लेखक तो लिखते रहे हैं, छपते रहे हैं। कोई नहीं पूछता कि कैसा लिखा है। चुनौतियां भी बहुत हैं लेखन के क्षेत्र में। प्रकाशक  की ही चलती है।

 आप खुद को कैसा संबोधित होना पसंद करते हैं। क्या बतौर लेखक आपका सामाजिक परिचय बढ़ गया या प्रकाशक समूह कहीं अधिक जानने लगा?

मैं पेशे से इंजीनियर हूं। शौक या आत्मतुष्टि के लिए कलम चलाता हूं। न तो इंजीनियरों की कमी है न लेखकों की। हां मुझे लेखन ने सामाजिक पहचान दी है।

अपने लेखन से आपका कोई वादा रहता है। यह महज एक निष्ठा, लिखने की कवायद या प्रकाशन की शुमारी में नया कीर्तिमान स्थापित करने की ललक?

काम ही पूजा है। मुझे गर्व है कि यह काम मुझे मां सरस्वती ने सौंपा है। नहीं करूंगा, तो वह रूष्ट हो जाएगी इसलिए किए जा रहा हूं। कीर्तिमान बनाना कभी लक्ष्य नहीं था, किंतु 8-10 वर्षों से ऐसा भी  है और कीर्तिमान बना चुका हूं।

 खुद को कैसे परिभाषित करेंगे या जो लिखा, उसे क्या कहेंगे?

मैं एक संघर्षरत लेखक हूं। जो लिखा है वह समाज की देन है। संघर्ष ने ही मुझे यहां तक पहुंचाया है।


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