बूंद का अस्तित्व

By: Jan 14th, 2018 12:02 am

बूंद समुद्र के अथाह जल में घुलने लगी तो उसने कहा अपने अस्तित्व को समाप्त करना मेरे लिए संभव न होगा। मैं अपनी सत्ता खोना नहीं चाहती। समुद्र ने उसे समझाया तुम्हारी जैसी असंख्य बूंदों का समन्वय मात्र ही तो मैं हूं। तुम अपने भाई बहनों के साथ ही तो घुल-मिल रही हो। उसमें तुम्हारी सत्ता कम कहां हुई। वह तो और अधिक बढ़ गई। बूंद को संतोष न हुआ। वह अपनी पृथक सत्ता बनाए रहने का ही आग्रह करती रही।

समुद्र ने सूर्य किरणों के सहारे उसे भाप बना कर बादलों में पहुंचा दिया और वह बरस कर फिर बूंद बन गई। बहती हुई फिर समुद्र के दरवाजे पर पहुंची तो उसने हंसते हुए कहा-बच्ची पृथक सत्ता बनाए  रह कर भी तुम अपने स्वतंत्र अस्तित्व की रक्षा कहां कर सकी। अपने उद्गम को समझो, तुम समष्टि से उत्पन्न हुई थीं और उसी की गोद में तुम्हें चैन मिलेगा।


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