बेसर (नथ) से निखरता है सुहागिन का रूप

By: Jan 21st, 2018 12:05 am

हिमाचल प्रदेश के हर क्षेत्र के रीति-रिवाज देवभूमि की समृद्ध संस्कृति की पहचान को दर्शाते हैं। देवभूमि की औरतों के शृंगार में अनेक गहने उनकी खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं। इनमें पायल, कानों के झुमके, नाक का कोका, नथ के बावजूद, चक, मांग टिक्का, मंगलसूत्र गले का हार आदि गहने महिलाओं के शृंगार का दर्पण कहलाते हैं। इन सब में एक है नथ। नथ का प्रचलन सदियों से चला आ रहा है और आज भी बरकरार है। हिमाचल प्रदेश के अधिकतर क्षेत्रों में आज शादी के समय दुल्हन को माथे का टिक्का, बिछुए, कानों में मोटी-मोटी बालियां, सिर पर चक हाथों में लटके चांदीनुमा कलीरे, चमचमाता सुहाग चूड़ा व नाक में सुसज्जित नथ आदि पहनाकर विदा किया जाता है। इन्हें पहनकर सुहागिनें किसी अप्सरा सी नजर आती हैं। प्रदेश में सुहागिनों द्वारा नथ पहनना एक अलग ही महत्त्व रखता है। सोने में तराशी गई बेसर यानी नथ गोलाकार रूप में आती है परिवार वाले अपनी बहू-बेटी के लिए अपनी सामर्थ्य अनुसार बेसर बनवाते हैं। शादी-विवाह व अन्य समारोहों में जब कोई स्त्री नथ पहनी देखी जाती है। जब किसी परिवार में उत्सव आता है  तो अधिकतर महिलाएं नथ पहनती हैं। जिससे हम समझ जाते हैं कि जिस घर में उत्सव लगा हुआ है, वह इस घर की अहम हिस्सा हैं।  इस बेसर में भारतीय परंपरा व सभ्यता की झलक नजर आती है। नथ को बनाने व तराशने के लिए सुनार अपनी कारीगरी द्वारा तरह-तरह का रूप देता है, ताकि पहनने वाली सुहागिन की चमक-दमक बनी रहे। बेसर एक अत्यंत सुंदर सौभाग्य की परंपरा है जिसे जवान से लेकर वृद्ध सुहागिनें बड़े शौक से पहनती हैं और इससे उनके चेहरों पर जो सौम्यता व संतुष्टि दिखती है, वही हिमाचली सुहागिनों की पहचान है। यह सहसा सभी को आकृष्ट कर देती है।  हिमाचल कि सुहागिनों को आधुनिकता व पाश्चात्य संस्कृति के इस दौर के चलते आज भी अपनी पारंपरिक सुहाग के इस जेवरात यानी नथ को बनाए रखने की आवश्यकता है।

— तुलसी राम डोगरा, पालमपुर


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