भारत का इतिहास

By: Jan 3rd, 2018 12:05 am

भारतीय संविधि आयोग की स्थापना

गतांक से आगे… वर्तमान कमियों को दूर करने की दृष्टि से आवश्यक सांविधानिक सुधार सुझाने के लिए एलेक्जैंडर मुडीमेन की अध्यक्षता में एक समिति की नियुक्ति की। समिति ने अपनी रिपोर्ट 3 दिसंबर, 1924 को गवर्नर जनरल को प्रस्तुत कर दी। समिति के बहुमत के अनुसार वर्तमान संविधान संतोषजनक ढंग से चल रहा था। अतः समिति ने प्रशासन में केवल कुछ मामूली परिवर्तन ही सुझाए। किंतु समिति के कुछ सदस्यों के अनुसार जिनमें तेज बहादुर सप्रू और मोहम्मद अली जिन्ना भी थे, व्यवस्था में मूलभूत कमियां थीं और संविधान में आमूल परिवर्तन  किए बिना कुछ सुधार संभव नहीं था। जब समिति की रिपोर्ट पर बहस हुई, तो 8 सितंबर, 1925 को विधानसभा ने एक  संशोधन प्रस्ताव पास किया, जिसमें पिछले साल की  राष्ट्रीय मांग को अधिक विस्तृत रूप में दोहराया गया था। राष्ट्रीय मांग संबंधी प्रस्तावों का ऐतिहासिक महत्त्व है, क्योंकि उनके द्वारा पहली बार केंद्रीय सभा ने इस मांग का समर्थन किया कि भारत का भावी संविधान स्वयं भारतीयों द्वारा बनाए जाए।

ब्रिटिश सरकार ने नवंबर 1927 में सर जान साइमन की अध्यक्षता में एक भारतीय संविधि आयोग की स्थापना  की और उसे यह  पता लगाने का काम सौंपा कि क्या भारतीय उत्तरदायी शासन की  दिशा में और  अधिक प्रगति करने योग्य हो गए हैं। साइमन आयोग के सातों के सातों सदस्य अंग्रेज थे। आयोग में एक भी भारतीय सदस्य न होने से देश में कड़ी प्रक्रिया हुई और  इस बात पर भारी क्षोभ प्रकट किया गया  कि अपने ही देश का संविधान बनाने के काम में भारतीयों को भाग नहीं लेने दिया जा रहा है। 1927 में  कांग्रेस के मुंबई और मद्रास अधिवेशनों में एक प्रस्ताव के द्वारा कांग्रेस कार्यकारिणी समिति से केंद्रीय  तथा प्रांतीय विधान-मंडलों के निर्वाचित सदस्यों तथा विभिन्न दलों के नेताओं के सहयोग से एक स्वराज्य संविधान बनाने के लिए कहा गया । भारत सचिव का कहना  था कि भारतीय स्वयं अपने लिए संविधान बनाने में सर्वथा असमर्थ थे, क्योंकि सांप्रदायकि मतभेदों के कारण वे कोई सर्वमान्य संविधान बना ही नहीं सकते थे। इसी चुनौती के उत्तर में तथा कांग्रेस के मुंबई और मद्रास  अधिवेश्नों में पारित प्रस्तावों के संदर्भ में फरवरी 1928 में दिल्ली में एक  सर्वदल सम्मेलन हुआ। बाद में मई 1928 में मुंबई में हुई एक  बैठक में सम्मेलन में पंडित मोतीलाल की अध्यक्षता में भारत के संविधान के सिद्धांतों का निर्धारण करने के लिए एक समिति नियुक्त की गई। समिति की रिपोर्ट नेहरू रिपोर्ट के नाम से विख्यात हुई। यह भारतीयों  द्वारा अपने देश के संविधान निर्माण की पहली चेष्टा थी। कुछ संशोधनों के साथ नेहरू समिति द्वारा प्रस्तुत सांविधानिक व्यवस्था डोमिनियन स्टेटस तथा संसदीय पद्धति पर उत्तरदायी सरकार के सिद्धांतों पर आधारित थी।


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