मेडल को आंचल में समेटती आंचल ठाकुर

By: Jan 28th, 2018 12:12 am

शिखर पर

महज छह साल की आयु से ही सोलंग की ढलानों में पिता रोशन लाल ठाकुर के साथ स्की सीखने वाली आंचल ठाकुर अपने भारत को भी स्की के क्षेत्र में सम्मान दिलाएंगी। ऐसा शायद आंचल ने भी भले कभी सोचा न होगा, लेकिन जब विदेशों में होने वाली प्रतियोगिता का आंचल हिस्सा बनने लगीं तो मन में उसी दिन से आंचल ने ठान लिया था कि वह भी अपने देश के लिए जरूर मेडल लाएंगी। बस तभी से आंचल का सफर यूं ही बढ़ता चला गया। वरूआ गांव में पिता रोशन लाल ठाकुर व माता रामदेई के घर जन्मीं आंचल कहती हैं कि पिता के साथ सोलंगनाला में छह साल की आयु से वह स्की सीखती आई है। इस दौरान कई प्रतियोगिताओं में भाग लेती थी। साहसिक खेलों से जुड़े होने के चलते पिता ने दोनों भाई-बहन को कभी भी किसी तरह की कोई कमी आगे बढ़ने के लिए नहीं होने दी।  पिता ने भाई हिंमाशु ठाकुर की तरह उन्हें भी बेटे की तरह आगे बढ़ने को लेकर प्रेरित किया। यही नहीं, बड़े भाई ने भी हमेशा बहन का हर जगह साथ दिया और आगे बढ़ने को लेकर प्रेरित किया। पिता को दोनों भाई -बहन को विदेशों में भेजने के लिए चाहे आर्थिक परेशानी भी झेलनी पड़ी हो, लेकिन उन्होंने फिर भी अपने बच्चों को कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि उनको किसी तरह की दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। सोलंगनाला में जब भी बर्फ पड़ती वह पिता के साथ मीलों पैदल चलकर स्की सीखने के लिए जाते। फिर चाहे ठंड अधिक हो या न हो। शायद उसी मेहनत का नतीजा है कि वह अपने भारत के लिए आज कुछ कर पाई हैं। आंचल ठाकुर की मानें तो उन्होंने कभी भी अपने अभ्यास को तोड़ा नहीं है। हमेशा स्की में अभ्यास करती रही हैं। पहली बार पिता ने उन्हें वर्ष 2009 -10 में यूरोप चिल्ड्रन प्रतियोगिता के लिए भेजा, जहां पर प्रशिक्षण लेने के साथ-साथ आंचल प्रतियोगिता का भी हिस्सा बनी हैं। इसके बाद आंचल का सफर विदेशों के लिए क्यों कि तय होता रहा, तो वर्ष 2012 में यूथ ओलपिंक में भी आंचल ने आस्ट्रेलिया में भाग लिया, जहां पर वह भारत से एकमात्र खिलाड़ी थीं। इसके बाद वर्ष 2013 में विश्व चैंपियनशिप प्रतियोगता में भी आंचल ने भाग लिया, जहां पर फाइनल तक आंचल ने अपनी जगह बनाई।  इसके बाद 2015 में अमरीका में हुई विश्व चैंपियनशिप प्रतियोगिता में भी आंचल ने भाग लिया। इसी के साथ रशिया में हुए ‘यूनिर विश्व चैंपियनशिप’ भी आंचल ने खेला। इसी के साथ वर्ष 2017 में आंचल स्विट्जरलैंड भी खेलने के लिए गईं। वर्ष 2017 में एशियन विंटर गेम जापान में भी उन्होंने भाग लिया है, जहां पर वर्ष 2018 में नए साल में आंचल तुर्की में हुई स्की प्रतियोगिता का हिस्सा बनीं, तो इस बार आंचल ने अपने व पिता के सपने को साकार करते हुए भारत के लिए मेडल हासिल किया। आंचल कहती हैं कि मनाली के युवाओं में सबसे अधिक शौक स्की व अन्य साहसिक खेलों के प्रति है। ऐसे में युवाओं को आगे बढ़ने का मौका मिले। इसे लेकर वह केंद्र व प्रदेश सरकार से यह उम्मीद करती हैं कि साहसिक खेलों को बढ़ावा अधिक से अधिक मिले। इसे लेकर जरूर प्रोत्साहित करेंगे। आंचल  की मानें तो सोलंग की ढलानों को भी अंतरराष्ट्रीय मंच मिल सकता है, अगर इसे और अधिक विकसित किया जा सके। इसके लिए सरकार को पहल करनी होगी। परिवार को हर क्षेत्र में आगे बढ़ने में सहयोग देने के लिए आंचल अपने पिता का अपना सबसे बड़ा प्ररेणा स्रोत मानती हैं, जिन्होंने बेटे और बेटी में कभी कोई भेदभाव नहीं किया, बल्कि बेटे को जहां पर भी स्की के क्षेत्र में भेजा जाता, तो पिता हमेशा अपनी बेटी को भी साथ भेजते। अब  आंचल का एक ही सपना है कि वह ओलंपिक का हिस्सा बने और फिर से अपने भारत के लिए गोल्ड मेडल हासिल करे। ताकि एक बार फिर कुल्लू-मनाली का नाम देश व विदेश में रोशन हो सके।     -शालिनी राय, कुल्लू

मुलाकात

सरकारी सहयोग मिले, तो खिलाड़ी का हौसला बढ़ता है…

आपकी जिंदगी में साहस का मतलव क्या है और आपके लिए जोखिम उठाना किस तरह आसान हो जाता है?

मेरी जिंदगी में साहस का मतलब यह कि साहस से ही मैं शायद मुकाम हासिल कर रही हूं। अब तक जब भी मैं स्कीईंग प्रतियोगिता में गई, तो मुझे ऐसा लगा कि यह बिलकुल आसान है। मुझे अभी तक कोई जोखिम उठाना नहीं पड़ा है।

पहली बार जब आप बर्फ के ऊपर चलने को खेल मान बैठी या जब फिसलने की कला में खुद को एक खिलाड़ी बनाया?

सबसे पहले मैंने अपनी मनाली की स्की ढलानों पर पांच से छह फुट बर्फ में स्की प्रतियोगिता में भाग लिया हालांकि मुझे शुरू में थोड़ी दिक्कत फिसलन की आई थी, लेकिन धीरे-धीरे मैंने बैलेंस बनाना सीख लिया।

 ऐसा क्या है, जो आंचल अपने साथ हमेशा रखती है और जिसे छूना भी पसंद नहीं करती?

ऐसी कोई भी चीज नहीं है, जिसे मैं छूती नहीं हूं। मैं खेलों की बात करूं तो हर खेल में भाग लेना चाहती हूं।

मौसम के किस अंदाज पर फिदा रहती हैं या जो मौसम आपको परेशान करता है?

स्कीईंग के लिए मौसम साफ रहना जरूरी है। वहीं स्कीईंग के लिए थोड़ी सी धूप खिली हो तो यह आसानी से होती है।

बर्फ के खेल में आपकी शक्ति और तैयारी के बीच मकसद का संचालन कैसे होता है?

जब मैं बर्फ में स्कीईंग के लिए कूद जाती हूं तो मुझे अपने आप में ऐसा लगता है कि मुझमें कोई शक्ति आई है और मैं अच्छी तरह से स्कीईंग कर पाती हूं।

कभी कोई ऐसा मोड़ आया कि नन्ही आंचल प्रैक्टिस करने  के बजाय कहीं और जाने का विचार करने लगी?

मुझे स्कीईंग करना अच्छा लगता है, हालांकि मेरे कई दोस्त अन्य खेलों में रुचि रखते हैं। ऐसे में कई बार मुझे लगता है कि मैं अन्य खेलों में क्यों भाग नहीं ले सकी।

सोलंग की ढलानों पर बर्फ न होती, तो आप अन्य किस खेल को तरजीह देतीं?

अभी ऐसा समय कभी नहीं आया कि सोलंग की ढलानों पर बर्फ न होती हो। जबसे लेकर मैं स्कीईंग में आई हूं, तब से लेकर मैं ढलान पर बर्फ देख रही हूं।

कोई ऐसी प्रतियोगिता जिसमें हार कर आप जीत गईं या जीतने के लिए आपका सिद्धांत क्या रहता है?

ऐसा कभी नहीं हुआ है जब प्रतियोगिता में जीत हासिल की तो मैंने जीत मान ली। जब हारी तो हार भी नहीं मानी और मैंने हार के साथ अपनी प्रतिभा को और बढ़ाया।

भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय मेडल जीतना किस वजह से संभव हुआ। इस सफर में गुरु, संरक्षक व प्रेरणा स्रोत कौन रहे?

मैंने अंतरराष्ट्रीय मेडल अपने पिता द्वारा सिखाए गए स्कीईंग के गुर से जीता है। मैं इसका श्रेय अपने पिता को ही देती हूं और वही मेरी प्रेरणा के स्रोत रहे हैं तथा आगे भी रहेंगे।

पदक के बाद आपके लिए सबसे आसान खुशी क्या रही और कठिन लक्ष्य क्या बना?

मैंने ठान लिया था कि मैं इस बार अंतरराष्ट्रीय पदक हासिल करूंगी और मेरी मेहनत रंग लाई।

हिमाचल में बर्फ खेलों की वर्तमान व्यवस्था से कितना संतुष्ट होना चाहिए?

हिमाचल में स्कीईंग प्रतियोगिताओं को बढ़ावा दिया जा रहा है। मनाली से संबंध रखने वाले प्रदेश सरकार के परिवहन, वन और खेल मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर ने भी इस खेल को बढ़ावा देने का दावा किया है।

सोलंग और नारकंडा की ढलानों को किस स्तर पर देखती हैं। इसके अलावा हिमाचल में कहां-कहां संभावनाएं बन सकती हैं?

सोलंग और नारकंडा की ढलानों में काफी फर्क है। सोलंग की ढलानों पर प्रतिभागी आसानी से मुकाबले में आता है, वहीं नारकंडा की ढलानों में थोड़ी दिक्कत रहती है।

भारतीय परिदृश्य में आप जैसे खिलाड़ी के लिए उम्मीदें चुनना क्यों कठिन हो जाता है। अगर भारत के खेल मंत्री को कोई तीन सुझाव देने हों, तो वे क्या होंगे?

खिलाड़ी में जोश और जज्बा होना बेहद जरूरी है। वहीं अगर सरकार का सहयोग भी खिलाड़ी को मिल जाए तो खिलाड़ी के हौसले बढ़ जाते हैं। भारत के खेल मंत्री को इस खेल को बढ़ावा देने के लिए प्रयास करने चाहिए तथा खिलाड़ी को बेहतरीन सुविधा मिलनी चाहिए।

आंचल को कुल्लवी संस्कृति से जो मिला?

कुल्लवी संस्कृति मेरे लिए हर प्रतिस्पर्धा में जरूरी है।

कोई पसंदीदा कुल्लवी गीत….?

मैं अपनी संस्कृति को कभी भी भूल नहीं पाऊंगी। जिला कुल्लू में छोटे-बड़े कई कलाकार हैं, उन सब के गीतों को पसंद करती हूं।


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