मौनपालन करियर की मिठास

By: Jan 24th, 2018 12:08 am

आयुर्वेद में शहद के बिना कोई दवाई नहीं ली जाती। शहद की गिनती पंचामृत में होती है। शहद उत्पादन के साथ जुड़कर एक पवित्र कार्य के साथ-साथ बेहतर करियर भी बनाया जा सकता है। मधुमक्खी पालन उद्योग मुख्यतः देश के पर्वतीय क्षेत्रों में विकसित हुआ है। अब कुछ मैदानी प्रदेशों में भी इस उद्योग ने अपने पांव पसार लिए हैं…

प्रकृति ने मनुष्य के लिए कई अनमोल चाजें दी हैं। इन चीजों का उपयोग कर के मनुष्य अपने जीवन में निरोग रह सकता है। कई जड़ी-बूटियां, औषधियां और कई आयुर्वेदिक उत्पाद ऐसे हैं, जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद हैं। शहद भी इनमें से एक है। आयुर्वेद में शहद के बिना कोई दवाई नहीं ली जाती। शहद की गिनती पंचामृत में होती है। शहद उत्पादन के साथ जुड़कर एक पवित्र कार्य के साथ-साथ बेहतर करियर भी बनाया जा सकता है। मधुमक्खी पालन उद्योग मुख्यतः देश के पर्वतीय क्षेत्रों में विकसित हुआ है। अब कुछ मैदानी प्रदेशों में भी इस उद्योग ने अपने पांव पसार लिए हैं। उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, दक्षिणी राजस्थान, महाराष्ट्र, पंजाब तथा तमिलनाडु में इसको बड़े पैमाने पर संचालित किया जाता है। लोग लाखों रुपए प्रति वर्ष इस उद्योग से कमा रहे हैं।

इतिहास

भारत में मधुमक्खी पालन का पुराना इतिहास रहा है। शायद पहाड़ की गुफाओं तथा वनों में निवास करने वाले हमारे पूर्वजों द्वारा चखा गया प्रथम मीठा भोजन शहद ही था। उन्होंने इस दैवीय उपहार हेतु मधुमक्खियों के छत्ते की खोज की। भारत के प्रागैतिहासिक मानव द्वारा कंदराओं में चित्रकला के रूप में मधुमक्खी पालन का प्राचीनतम अभिलेख  मिलता है।

परंपरागत मधुमक्खी पालन

भारत में सैकड़ों वर्ष पहले से मधुमक्खी पालन किया जाता रहा है। पुराने ढंग से मिट्टी के घड़ों में, लकड़ी के संदूकों में, पेड़ के तनों के खोखरों में या दीवार की दरारों में हम आज भी मधुमक्खियों को पालते हैं। मधु से भरे छत्तों से शहद प्राप्त करने के लिए छत्तों को काटकर या तो निचोड़ दिया जाता है या आग पर रखकर उबाल दिया जाता है। फिर इस शहद को कपड़े से छान लेते हैं। इस विधि से मैला एवं अशुद्ध शहद ही मिल सकता है, जो कम कीमत में बिकता है। इस प्रकार प्राचीन ढंग से मधुमक्खियों से शहद निकालने में कई दोष हैं।

वैज्ञानिक ढंग से मधुमक्खी पालन

वैज्ञानिक ढंग से मधुमक्खी पालन का कार्य भारत में कई वर्ष पहले शुरू हो चुका है। संसार के कई देशों में मधुमक्खियों को आधुनिक ढंग से लकड़ी के बने हुए संदूकों में, जिसे आधुनिक मधुमक्षिकागृह कहते हैं, में पाला जाता है। इस प्रकार से मधुमक्खियों को पालने से अंडे एवं बच्चे वाले छत्तों को हानि नहीं पहुंचती। शहद अलग छत्तों में भरा जाता है और इस शहद को बिना छत्तों को काटे मशीन द्वारा निकाल लिया जाता है। इन खाली छत्तों को वापस मधुमक्षिकागृह में रख दिया जाता है, ताकि मधुमक्खियां इन पर बैठकर फिर से मधु इकट्ठा करना शुरू कर दें।

कार्य अनुसार मधुमक्खियों के प्रकार

रानी मधुमक्खी- अंडे देने का काम रानी मधुमक्खी ही करती है। इन अंडों की रखवाली का काम अन्य मधुमक्खियां करती हैं।

श्रमिक मधुमक्खियां- श्रमिक मधुमक्खियां छत्ते में सबसे अधिक संख्या में होती हैं। इनके पेट पर कई समांनांतर धारियां होती हैं। डंक मारने वाली यही मधुमक्खी होती है। इन मधुमक्खियों की अधिकता पर ही शहद जमा करने की मात्रा भी निर्भर करती है।

नर मधुमक्खी- नर मधुमक्खी का काम रानी का गर्भाधान करना होता है। इसे और कोई भी काम नहीं करना पड़ता। नर मधुमक्खी छत्तों में जमा किया मधु खाता रहता है। यह श्रमिक मधुमक्खी से कुछ बड़ा और रानी मक्खी से छोटा होता है।

मधुमक्खियों की किस्में

भारत में चार प्रकार की मधुमक्खियां पाई जाती हैं…

* सबसे पहली मधुमक्खी को भंवर या डिंगारा कहते हैं। यह ऊंचे पेड़ों या इमारतों पर खुले में केवल एक ही छत्ता लगाती  है। मधु जमा करने में दूसरी किस्में इसकी बराबरी नहीं कर सकतीं। अंग्रेजी में इसे एपिस डॉरसेटा कहते हैं।

* दूसरी प्रकार की मधुमक्खी को अंग्रेजी में  एपिस फ्लोरिया कहते हैं। केवल इसी जाति को लोग पालते हैं। यह प्राकृतिक हालत में पाई जाती है। पुराने ढंग से लोग इसे मिट्टी के घड़ों, लकड़ी के संदूकों, तने के खोखरों एवं दीवार की दरारों में पालते थे।

* तीसरी प्रकार की मधुमक्खी एपिस सिराना का भी एक छोटा सा छत्ता होता है। यह झाड़ी या मकान की छतों पर रखी लकडि़यों आदि में अपना छत्ता लगाती है। इसके छत्ते में एक बार से अधिक दो-तीन पाउंड तक शहद निकल आता है। इसका डंक छोटा एवं कम विषैला होता है।

* चौथी प्रकार की मधुमक्खी को अंग्रेजी में मैलीपोना या डैमर कहते हैं। यह मधुमक्खी अमरीका में अधिक पाई जाती है। इसके छत्तों में मधु बहुत ही कम मात्रा में प्राप्त होता है। इसका मधु आंख में लगाने के लिए अच्छा माना जाता है।

कैसे बनती है मोम

शहद के बाद दूसरा मूल्यवान तथा उपयोगी पदार्थ, जो मधुमक्खियों से मिलता है, वह मोम है। इसी से वे अपने छत्ते बनाती हैं। मोम बनाने के लिए मधुमक्खियां पहले शहद खाती हैं, फिर उससे गर्मी पैदा कर अपनी ग्रंथियों द्वारा छोटे-छोटे मोम के टुकड़े बाहर निकालती हैं।

मधुमक्खियों के शत्रु

मोमी कीड़ा, ड्रैगन फ्लाई, मकड़ी, गिरगिट, बंदर, भालू आदि

शहद के प्रकार

* मधुमक्खी जातीय शहद

* पुष्पीय शहद

* निचोड़ शहद

* निष्कर्षित शहद

शहद के लाभ

* शहद शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है।

* शहद धमनियों और खून की सफाई करता है, गले के संक्रमण में भी लाभदायी है।

* शहद का एक चम्मच ताजे मक्खन के साथ खाने से बुखार नहीं होता।

* बच्चों को शहद देने से उनकी याददाश्त बढ़ती है।

* खांसी,जुकाम, पाचन क्रिया, नेत्र विकार,रक्तचाप, सौंदर्य प्रसाधनों में इसका प्रयोग होता है।

अन्य तथ्य

* मधुमक्खियों का 1 किलो शहद इकट्ठा करने के लिए 1 लाख, 95 हजार, 713 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है।

* 1 किलो शहद के लिए मधुमक्खियां 40 लाख, 14 हजार फूलों का रस चूसती हैं।

* रोजाना एक मक्खी 25 किलोमीटर का सफर तय करती है।

मधुमक्खियों के उत्पाद- शहद, मोम, रॉयल जेली, पराग, प्रोपलेक्सीन।

प्रशिक्षण संस्थान

* एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, पालमपुर (हिप्र)

* आदर्श कम्युनिटी कालेज सहारनपुर, उत्तर प्रदेश

* इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय, दिल्ली

* पंडित पूर्वानंद तिवारी राजकीय डिग्री कालेज हल्द्वानी, उत्तराखंड

* राजेंद्र एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी समस्तीपुर, बिहार

* उत्तराखंड ओपन यूनिवर्सिटी नैनीताल

* मधुमक्खी पालन संस्थान, महाबलेश्वर, सतारा महाराष्ट्र


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