वसंत पंचमी पूजन विधि

By: Jan 20th, 2018 12:05 am

भगवती सरस्वती के उपासक को माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को प्रातःकाल में भगवती सरस्वती की पूजा करनी चाहिए। इसके एक दिन पूर्व अर्थात माघ शुक्ल चतुर्थी को वागुपासक संयम, नियम का पालन करें। इसके बाद माघ शुक्ल पंचमी को प्रातःकाल उठकर घट (कलश) की स्थापना करके उसमें वाग्देवी का आह्वान करें तथा विधिपूर्वक देवी सरस्वती की पूजा करें। पूजन कार्य में स्वयं सक्षम न हों तो किसी ज्ञानी कर्मकांडी या कुलपुरोहित के दिशा-निर्देश से पूजन कार्य संपन्न करें। भगवती सरस्वती की पूजन प्रक्रिया में सर्वप्रथम आचमन, प्राणायामादि के द्वारा अपनी बाह्य यंतर शुचिता संपन्न करें। फिर सरस्वती पूजन का संकल्प ग्रहण करें। इसमें देशकाल आदि का संकीर्तन करते हुए अंत में ‘यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः भगवत्याः सरस्वत्याः पूजनमहं करिष्ये’ पढ़कर संकल्प जल छोड़ दें। तत्पश्चात आदि पूजा करके कलश स्थापित कर उसमें देवी सरस्वती का आह्वान करके वैदिक या पौराणिक मंत्रों का उच्चारण करते हुए उपचार सामग्रियां भगवती को सादर समर्पित करे। ‘श्री ह्यीं सरस्वत्यै स्वाहा’- इस अष्टाक्षर मंत्र से प्रत्येक वस्तु क्रमशः श्रीसरस्वती को समर्पण करें। अंत में देवी सरस्वती की आरती करके उनकी स्तुति करें। स्तुतिगान के अनंतर सांगीतिक आराधना भी यथासंभव करके भगवती को निवेदित गंध पुष्प मिष्ठानादि का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। पुस्तक और लेखनी में भी देवी सरस्वती का निवास स्थान माना जाता है तथा उसकी पूजा की जाती है। देवी भागवत एवं ब्रह्मवैवर्तपुराण में वर्णित आख्यान में पूर्वकाल में श्रीमन्नरायण भगवान ने वाल्मीकि को सरस्वती का मंत्र बतलाया था जिसके जप से उनमें कवित्व शक्ति उत्पन्न हुई थी। भगवान नारायण द्वारा उपदिष्ट वह अष्टाक्षर मंत्र इस प्रकार है- ‘श्रीं ह्वीं सरस्वत्यै स्वाहा’। इसका चार लाख जप करने से मंत्र सिद्धि होती है। ऐसा उल्लेख आता है कि महर्षि व्यास जी की व्रतोपासना से प्रसन्न होकर ये उनसे कहती हैं- व्यास! तुम मेरी प्रेरणा से रचित वाल्मीकि रामायण को पढ़ो, वह मेरी शक्ति के कारण सभी काव्यों का सनातन बीज बन गया है। उसमें श्रीरामचरित के रूप में मैं साक्षात् मूर्तिमती शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित हूं-

पठ रामायणं व्यास काव्यबीजं सनातन।

यत्र रामचरितं स्यात्तदहं तत्र शक्तिमान॥

भगवती सरस्वती के इस अद्भुत विश्वविजय कवच को धारण करके ही व्यास, भारद्वाज, देवल तथा जैगीषव्य आदि ऋषियों ने सिद्धि पाई थी। इस कवच को सर्वप्रथम रासरासेश्वर श्रीकृष्ण ने गोलोक धाम के वृंदावन नामक अरण्य में रासोत्सव के समय रासमंडल में ब्रह्माजी से कहा था। तत्पश्चात ब्रह्माजी ने गंधमादन पर्वत पर भृगुमुनि को इसे दिया था। भगवती सरस्वती की उपासना (काली के रूप में) करके ही कवि कुलगुरु कालिदास ने याति पाई। गोस्वामी जी कहते हैं कि देवी गंगा और सरस्वती दोनों एक समान ही पवित्रकारिणी हैं। एक पापहारिणी और एक अविवेक हारिणी हैं-

पुनि बंदउं सारद सुरसरिता।

जुगल पुनीत मनोहर चरिता।

मज्जन पान पाप हर एका।

कहत सुनत एक हर अविवेका।

भगवती सरस्वती विद्या की अधिष्ठात्री देवी हैं और विद्या को सभी धनों में प्रधान धन कहा गया है। विद्या से ही अमृतपान किया जा सकता है। विद्या और बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की महिमा अपार है। सरस्वती के द्वादश नाम हैं, जिनका तीनों संध्याओं में पाठ करने से भगवती सरस्वती उस मनुष्य की जिह्वा पर विराजमान हो जाती हैं।

 


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