शिवलिंग और शालिग्राम का रहस्य

By: Jan 20th, 2018 12:05 am

गतांक से आगे…

शिवलिंग को भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है, तो जलाधारी को माता पार्वती का प्रतीक। निराकार रूप में भगवान शिव को शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है।

‘ॐ नमः शिवाय’ यह भगवान का पंचाक्षरी मंत्र है। इसका जप करते हुए शिवलिंग का पूजन या अभिषेक किया जाता है। इसके अलावा महामृत्युंजय मंत्र और शिवस्तोत्र का पाठ किया जाता है। शिवलिंग की पूजा का विधान बहुत ही विस्तृत है, इसे किसी पुजारी के माध्यम से ही संपन्न किया जाता है।

शिवलिंग पूजा के नियम :

शिवलिंग को पंचामृत से स्नानादि कराकर उन पर भस्म से तीन आड़ी लकीरों वाला तिलक लगाएं।

शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ाना चाहिए, लेकिन जलाधारी पर हल्दी चढ़ाई जा सकती है।

शिवलिंग पर दूध, जल, काले तिल चढ़ाने के बाद बेल पत्र चढ़ाएं।

केवड़ा तथा चंपा के फूल न चढाएं। गुलाब और गेंदा किसी पुजारी से पूछकर ही चढ़ाएं।

कनेर, धतूरे, आक, चमेली, जूही के फूल चढ़ा सकते हैं।

शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ प्रसाद ग्रहण नहीं किया जाता, सामने रखा गया प्रसाद अवश्य ले सकते हैं। शिवलिंग नहीं शिव मंदिर की आधी परिक्रमा ही की जाती है।

शिवलिंग के पूजन से पहले पार्वती का पूजन करना जरूरी है। शिवलिंग को नाद और बिंदु का प्रतीक माना जाता है। पुराणों में इसे ज्योर्तिबिंद कहा गया है। पुराणों में शिवलिंग को कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है जैसे प्रकाश स्तंभ लिंग, अग्नि स्तंभ लिंग, ऊर्जा स्तंभ लिंग, ब्रह्मांडीय स्तंभ लिंग आदि। शिव का अर्थ परम कल्याणकारी शुभ और लिंग का अर्थ है, सृजन ज्योति। वेदों और वेदांत में लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आता है। यह सूक्ष्म शरीर 17 तत्त्वों से बना होता है। मन, बुद्धि, पांच ज्ञानेंद्रियां, पांच कर्मेंद्रियां और पांच वायु। भृकुटी के बीच स्थित हमारी आत्मा या कहें कि हम स्वयं भी इसी तरह हैं बिंदु रूप।

ब्राह्मांड का प्रतीक  :

शिवलिंग का आकार-प्रकार ब्रह्मांड में घूम रही हमारी आकाश गंगा की तरह है। यह शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड में घूम रहे पिंडों का प्रतीक है। वेदानुसार ज्योतिर्लिंग यानी व्यापक ब्रह्मात्मलिंग जिसका अर्थ है व्यापक प्रकाश। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।

अरुणाचल है प्रमुख शिवलिंगी स्थान :

भगवान  –  शिव ने ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर हुए विवाद को सुलझाने के लिए एक दिव्य लिंग (ज्योति) प्रकट किया था। इस लिंग का आदि और अंत ढूंढते हुए ब्रह्मा और विष्णु को शिव के परब्रह्म स्वरूप का ज्ञान हुआ। इसी समय से शिव के परब्रह्म मानते हुए उनके प्रतीक रूप में लिंग की पूजा आरंभ हुई। यह घटना अरुणाचल में घटित हुई थी। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार विक्रम संवत के कुछ सहस्राब्दी पूर्व संपूर्ण धरती पर उल्कापात का अधिक प्रकोप हुआ। आदिमानव को यह रुद्र (शिव) का आविर्भाव दिखा। जहां-जहां ये पिंड गिरे,वहां-वहां इन पवित्र पिंडों की सुरक्षा के लिए मंदिर बना दिए गए। इस तरह धरती पर हजारों शिव मंदिरों का निर्माण हो गया।

 


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