संविधान सभा की स्थापना पर जोर

By: Jan 17th, 2018 12:05 am

गतांक से आगे…

फैजपुर अधिवेशन में अध्यक्ष पद से भाषण करते हुए पंडित नेहरू ने स्पष्ट घोषणा की कि वयस्क मताधिकार द्वारा निर्वाचित संविधान सभा की मांग आज की कांग्रेस की नीति का आधार स्तंभ है। एक अन्य  प्रस्ताव द्वारा फैजपुर अधिवेशन ने निश्चय किया कि 1935 के भारत शासन अधिनियम के अंतर्गत शीघ्र ही होने वाले प्रांतीय विधानमंडलों के कांग्रेसी सदस्यों का एक सम्मेलन किया जाए, जो संविधान सभा की मांग पर बल दे। निर्वाचनों में निर्णायक सफलता पाने के बाद कांग्रेस की कार्यकारिणी समिति ने दिल्ली में 18 मार्च, 1937 को अपनी बैठक में एक प्रस्ताव द्वारा इस बात पर जोर दिया कि चुनावों के परिणामों से संविधान सभा की मांग की जनता द्वारा पुष्टि सिद्ध होती है। जनता चाहती है कि  1935 का अधिनियम वापस ले लिया जाए तथा राष्ट्रीय स्वतंत्रता के आधार पर भारतीयों को अपनी संविधान सभा में अपना संविधान स्वयं बनाने का अवसर दिया जाए। अगले दो दिन अर्थात 19 और 20 मार्च, 1937 को देहली में केंद्रीय  तथा प्रांतीय विधान मंडलों के कांग्रेस सदस्यों का राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ, जिसमें संविधान सभा की मांगा को दृढ़तापूर्वक दोहराया गया। अगस्त- अक्तूबर, 1937 के बीच केंद्रीय विधानसभा में उन सभी प्रातों में जहां कांग्रेस  सरकारें थीं तथा सिंध में विधानसभाओं ने ऐसे प्रस्ताव पारित किए, जिनमें भारत के निमित्त एक नया संविधान बनाने के लिए संविधान सभा की मांग का जोरदार समर्थन किया गया था। फरवरी, 1938 में सुभाषचंद्र बोस की अध्यक्षता में हुए  कांग्रेस के हरिपुर अधिवेशन में भी 1935 के अधिनियम की संघीय व्यवस्था की आलोचना की गई तथा राष्ट्रीय स्वतंत्रता के आधार पर संविधान सभा द्वारा बनाए जाने वाले संविधान में विश्वास  को प्रकट किया गया। दूसरा विश्वयुद्ध आरंभ होने पर भारतीय स्वतंत्रता का प्रश्न और उसके साथ ही संविधान सभा का विचार भी प्रमुख रूप से उभर कर सामने आया। कांग्रेस ने 14 सितंबर, 1939 के अपने ऐतिहासिक प्रस्ताव में अपनी संविधान सभा की मांग फिर दोहराई और कहा कि भारतीय लोगों को बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के संविधान  सभा द्वारा अपने विधान का निर्माण करने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए। कांग्रेस की इस मांग का सरकार ने सिर्फ यह उत्तर दिया कि भारत में ब्रिटिश नीति का अंतिम उद्देश्य देश में डोमिनियन स्टेटस की स्थापना करना है और युद्ध समाप्त होने पर ब्रिटिश सरकार भारत की विभिन्न जातियों दलों और हितों का प्रतिनिधियों से तथा देशी नरेशों से विचार विनिमय करेगी, जिससे कि 1935 के अधिनियम में आवश्यक संशोधन करने के लिए उनकी सहायता और सहयोग प्राप्त किया जा सके। सरकार का यह उत्तर कांग्रेस को असंतोषजनक लगा और कांग्रेस कार्यकारिणी समिति ने नवंबर 1939 में एक प्रस्ताव पास किया,जिसमें भारत के लिए संविधान सभा की स्थापना पर जोर दिया।


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