सच्चाई से बनाया घटनाओं का रेखाचित्र

By: Jan 14th, 2018 12:05 am

पुस्तक समीक्षा

*           पुस्तक का नाम : ध्वनि-प्रतिध्वनि

*           लेखक : अनिल शर्मा ‘नील’

*           मूल्य – 200 रुपए

*           प्रकाशक : शंकर प्रिंटिंग प्रेस, घुमारवीं, जिला बिलासपुर, हि. प्र.

अपने मन के उद्गारों को व्यक्त करने का सशक्त माध्यम कविता से बढ़कर समीक्षक की नजर में अन्यत्र दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है। आदि कवि महर्षि वाल्मीकि काल को काव्य विधा का जनक काल माना जाता है। कम से कम शब्दों में संकेतात्मक संप्रेषण ही कविता है। शंकर प्रिंटिंग प्रेस घुमारवीं से अक्तूबर, 2017 में प्रकाशित समीक्षित काव्य संग्रह युवा कवि अनिल शर्मा ‘नील’ का अनुभवों से संचित 111 कविताओं का काव्य पुष्प है, जो उन्होंने अपने आदरणीय गुरुदेवों व अभिभावकों को समर्पित किया है। प्रस्तावना में बिलासपुर लेखक संघ को अपनी साहित्यिक क्षेत्र की जन्मभूमि मानते हुए प्रधान रोशनलाल शर्मा व महासचिव सुरेंद्र मिन्हास कलम के सिपाहियों द्वारा सुशोभित कराते हुए अपने प्राक्कथन ‘मन की बात’ में अपने जीवन की भूतकालिक घटनाओं का सच्चाई से उल्लेख करने का साहस अनिल शर्मा ‘नील’ सरीखा कोई विरला रचनाकार ही कर सकता है। काव्य संग्रह का नामकरण ध्वनि-प्रतिध्वनि इसी संग्रह की अंतिम कविता से लिया जाना प्रासंगिक प्रतीत होता है। अनिल शर्मा उम्मीद, आशा, तर्क, सामयिकी, हौसले के कवि हैं। जब आप संग्रह की रचनाओं से रू-ब-रू होंगे तो पाएंगे कि कवि हृदय सांप्रदायिक सद्भावना, पर्यावरण संतुलन, महिला सशक्तिकरण, स्वादू ढोंगी द्विचरित्रवान मानवता से व्यथित अपनी कविताओं में प्रश्न व उत्तर स्वयं ही ढूंढने को समुचित प्रयासरत हैं। आंचलिक शब्दों को फलक में समेटे हुए अलंकारों, छंदों, समासों आदि की पृष्ठभूमि से सुदूर कवि ने बिना अबूझ पहेली बनी कविताओं को दरकिनार  करके कुछ प्राचीन सामयिक घटनाओं को भी कविताओं में स्थान दिया है। बिलासपुर के पूजनीय संत काले बाबा कल्याण दास जी को समर्पित श्रीगणेश वाली कविता की बानगी तो देखिए-

काम, क्रोध, लोभ, मोह छोड़कर

दया, धर्म दिनचर्या में जोड़ लें

बेसहारों के बने सहारा,

श्याम वर्ण पहचान तुम्हारी

जनहित में थी उम्र गुजारी।

बिलासपुर में बाबा रामदेव आगमन पर ‘लुहणू में योग गंगा’ कविता में कुछ यूं फरमाया :

योग शिविरों में साधकों के मेले,

वर्षा, तूफान हंसते-हंसते झेले।

ओऽम के नाद से, आसन और प्राणायाम से

इक ऐसा संसार बनाया, रुग्ण ने स्वास्थ्य पाया।

‘जलरानी’ कविता में यूं वैज्ञानिक जानकारी देकर तार्किक दूरदर्शी सोच का परिचय दिया है :

विटामिन तुममें भरपूर। करे हार्ट प्रॉब्लम दूर।

आंतों से बनता आपरेशन धागा,

नहीं है फैट्स तुममें ज्यादा।

स्टेटस सिंबल को इंगित करती ‘बाइक ले लो’ कविता पर जरा गौर तो फरमाएं :

मेरे लिए न सही,

पर पड़ोसियों को दिखाने के लिए,

बाइक ले लो।

नवयुग की नवभोर बुलाने को चिर प्रतीक्षित आतुर कवि कहता हैः

न कोई बड़ा छोटा। न कोई जात-पात,

कभी न हो बाजार मंद,

बारंबार न होवे सियासी जंग।

महिला सशक्तिकरण की अवधारणा को प्रेरित ये पंक्तियां ध्यानाकृष्ट करती हैं :

निरंतर बुलंदियों को छूने वाली बेटियां,

क्यों दिन ब दिन कम हो रही बेटियां।

पर्यावरण मित्र यंत्र साइकिल के महत्त्व पर ये पंक्तियां तो देखें:

योग करवाती व करवाती व्यायाम,

चुस्त दुरुस्त है वो पहुंचाती मुकाम।

इसके अलावा सामायिक विषयों पर भी लेखनी चलाई गई है। यह काव्य संग्रह साहित्यिक दायरे में अपनी उपस्थिति को आतुर है।

                                                                                                                           -रवि कुमार सांख्यान,  मैहरीं,  घुमारवीं


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