समसामयिकी

By: Jan 17th, 2018 12:08 am

इसरो की उड़ान

इसी साल इसरो को नया अध्यक्ष(के सिवान) भी मिला और इसरो की नई उपलब्धियां नए साल में उत्साह पैदा करती हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो ने एक बार फिर दक्षता और लगन की मिसाल पेश की है। उसने अपना सौवां उपग्रह कार्टोसेट-2 प्रक्षेपित कर एक विशेष मुकाम तो हासिल किया ही, साथ में तीस अन्य उपग्रह भी सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किए। और भी खास बात यह है कि ये सारे उपग्रह दो अलग-अलग कक्षा में स्थापित किए गए। यह इसरो की अपूर्व उपलब्धि है, एक ही यान से अलग-अलग कक्षा में उपग्रह स्थापित करना। कार्टोसेट-2 के साथ छोड़े गए तीस अन्य उपग्रहों में दो भारत के थे और अट्ठाइस उपग्रह अन्य देशों के। एक भारतीय माइक्रो उपग्रह और एक भारतीय नैनो उपग्रह और अट्ठाइस विदेशी उपग्रहों को पीएसएलवी सी-40 प्रक्षेपण यान के जरिए छोड़ा गया। यहां यह गौरतलब है कि पिछले साल अगस्त में पीएसएलवी-39 के जरिए इसरो का पिछला मिशन नाकाम रहा था। दरअसल, हीट शील्ड न खुलने के कारण उस प्रक्षेपण में कठिनाई आई थी। अब जाहिर है कि उस वक्त आई मुश्किल को इसरो के वैज्ञानिकों ने ठीक से समझा और उसे दूर कर लिया। वैसे इस तरह की नाकामी अंतरिक्ष विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में कोई बहुत असामान्य बात नहीं समझी जाती। अमरीका समेत विकसित देशों की अंतरिक्ष एजेंसियों को भी ऐसे अनुभव होते रहे हैं। इसरो ने अपने अनुभवों से तो सीखा ही, दूसरों के अनुभवों से भी सबक लिया है, और यही कारण है कि प्रक्षेपण में इसरो की विफलता की दर काफी कम रही है।

दूसरी ओर, इसरो ने सफलता के नए-नए अध्याय जोड़े हैं और आज उसकी गिनती दुनिया की सबसे पारंगत अंतरिक्ष एजेंसियों में होती है। यही नहीं, इसरो ने प्रक्षेपण की अपेक्षा सस्ती तकनीक विकसित कर अपने प्रति दुनिया भर में व्यावसायिक आकर्षण भी पैदा किया है। यही कारण है कि आज विकसित देश भी इसरो की सेवाएं लेने लगे हैं। पीएसएलवी-40 के जरिए प्रक्षेपित किए गए उपग्रहों में अमरीका, फ्रांस, कनाडा, ब्रिटेन के भी उपग्रह शामिल हैं। इसरो की कारोबारी क्षमता पर इससे पक्की मुहर और क्या होगी! बहरहाल, कार्टोसेट-2 भारत के लिए बहु-उपयोगी है। तटवर्ती क्षेत्रों, राजमार्गों, जल वितरण और जमीन के नक्शे को बेतहर बनाने और शहरी योजनाएं बनाने में यह मददगार साबित होगा। साथ ही, सरहदी इलाकों की निगरानी में भी सहायक सिद्ध होगा। सीमा पर पड़ोसी देशों की सैन्य गतिविधियां बढ़ने का आभास कार्टोसेट-2 से मिलने वाली तस्वीरों से हो सकता है। यानी कार्टोसेट-2 सुरक्षा के लिहाज से भी अहम है। इससे आपदा से निपटने में भी मदद मिलेगी, क्योंकि समुद्रतटीय इलाकों में होने वाले बदलाव पर नजर रखी जा सकेगी। दो अन्य उपग्रह यानी माइक्रोसेट और नैनो सेटेलाइट इसरो ने प्रायोगिक तौर पर छोड़े हैं। जाहिर है कि इनके सफलतापूर्वक प्रक्षेपण ने भी इसरो के वैज्ञानिकों का हौसला बढ़ाया होगा और अब वे इस तरह की अन्य योजनाओं को कहीं ज्यादा विश्वास के साथ अंजाम दे सकेंगे। इसरो ने उपग्रह प्रक्षेपण में शतक लगा कर एक ऐतिहासिक मुकाम हासिल किया है और 2018 की शुरुआत एक शानदार उपलब्धि के साथ की है।


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