सरकारी संवेदना के सूखे में दम तोड़ती कूहलें

By: Jan 9th, 2018 12:05 am

प्रकाश चौधरी

लेखक, पालमपुर, कांगड़ा से हैं

कांगड़ा में कूहलों द्वारा सिंचाई का प्रश्न है, तो यह सिंचाई का एक बहुत ही सस्ता साधन है, लेकिन यहां कूहलों की स्थिति आज वैसी नहीं रही, जो वर्षों पहले कायम की गई थी। आज कृषि और बागबानी के क्षेत्र में सुधार लाना है, तो सर्वप्रथम कूहलों की स्थिति में सुधार लाना अति आवश्यक है…

भारत एक कृषि प्रधान देश है। हमारे देश की अधिकांश आबादी कृषि पर निर्भर है। हिमाचल प्रदेश में भी अधिकांश लोग वर्षों से खेती और बागबानी पर निर्भर हैं। पहाड़ी प्रांत होने के कारण इसकी भौगोलिक स्थिति भी देश के अन्य कृषि प्रधान प्रदेशों की अपेक्षा काफी भिन्न है। हिमाचल में केवल जिला कांगड़ा में ही खेतों की सिंचाई कूहलों के माध्यम से होती है। यहां कूहलों द्वारा दरिया और खड्डों का पानी सीधा खेतों तक पहुंचता है, जो कि सिंचाई का सस्ता एवं प्राचीनतम साधन है। प्रदेश के अन्य जिलों जैसे चंबा, मंडी, कुल्लू, किन्नौर, शिमला और हमीरपुर में खेतों की सिंचाई इतनी सस्ती नहीं, जितनी जिला कांगड़ा में है। इसके बावजूद सरकारों ने इन दुर्गम क्षेत्रों में खेतों तक सिंचाई सुविधा प्रदान करने की भरपूर कोशिशें कीं और उसमें सफलता भी मिली।

प्रदेश के इन जिलों में खेत ऊंचे हैं तो पानी काफी नीचे दरिया में बह रहा है। हालांकि लिफ्ट सिस्टम के माध्यम से वहां भी सिंचाई सुविधा प्रदान की जा रही है। जहां तक जिला कांगड़ा में कूहलों द्वारा सिंचाई का प्रश्न है, तो यह सिंचाई का एक बहुत ही सस्ता साधन है, लेकिन यहां कूहलों की स्थिति आज वैसी नहीं रही, जो वर्षों पहले कायम की गई थी। यहां जब कभी कूहलों का निर्माण हुआ था, तो उस समय हर खेत में अंतिम छोर तक इन कूहलों का पानी पहुंचता था। कांगड़ा जिला में जो पुरानी कूहलें थीं, उनमें से अधिकांश कूहलें मरम्मत के अभाव में आज अंतिम सांसें गिन रही हैं, जिनमें पालमपुर में न्यूगल दरिया से निकलने वाली मांहग कूहल भी एक है। आज अधिकांश कूहलें उजड़ चुकी हैं, लेकिन जो शेष हैं, वे भी बमुश्किल 25 प्रतिशत भाग तक ही सिंचाई सुविधा प्रदान कर रही हैं। आखिर इन कूहलों की सिंचाई का स्तर इतना अधिक क्यों गिरा और इसके क्या कारण थे? यह जानना अति आवश्यक था, लेकिन इसकी कभी ईमानदार कोशिश नहीं की गई। जब तक हमारी कूहलों की स्थिति अच्छी नहीं होगी, तब तक कृषि में पैदावार के आंकड़ों में बढ़ोतरी होना बेहद मुश्किल है। सिंचाई के अभाव में अधिकांश कृषि योग्य भूमि रकबा बंजर भूमि में तबदील होता जा रहा है। महकमा माल के भूमि रिकार्ड की प्रत्येक गांव की जमाबंदी में वे सब कूहलें और चोऊ दर्ज हैं, जिनके माध्यम से भूमि के रिकार्ड में जमीन की किस्म अव्वल नैहरी दर्शाई गई है।

आज मौके पर कितनी कूहलें और चोऊ उस दर्शाई गई अव्वल नैहरी भूमि को सिंचित कर रहे हैं और कितने नहीं, यह जानने की किसी भी सरकार को फुर्सत ही नहीं मिली। प्रदेश का सिंचाई विभाग केवल उन्हीं कूहलों के रखरखाव और मरम्मत की ओर ध्यान देता है, जिनका जिम्मा सरकार ने उन्हें सौंप रखा है, लेकिन वे भी गिनती में नाममात्र ही हैं। बाकी कूहलों के रखरखाव व मरम्मत की किसी को कोई चिंता ही नहीं है। आज जरूरत इस बात की है कि हर कूहल व चोऊ को सिंचाई के योग्य बनाया जाए, चाहे इन्हें सिंचाई विभाग के अधीन किया जाए या मनरेगा के अधीन। जब तक हर कूहल और चोऊ से पानी खेत तक नहीं पहुंचेगा, तब तक सिंचाई विभाग, कृषि विभाग और उद्यान विभाग का कोई भी महत्त्व नहीं है। सरकार का दायित्व बनता है कि हरे-भरे हिमाचल प्रदेश का वास्तविक स्वरूप कायम रखने के लिए सिंचाई विभाग, कृषि विभाग, उद्यान विभाग व महकमा माल के अधिकारियों की फौज द्वारा हर कूहल और हर खेत का मौके पर जाकर यह सर्वे कराया जाए कि प्रत्येक महाल की जमाबंदी में दर्ज आज कितनी कूहलें और चोऊ सिंचाई सुविधा हर खेत को प्रदान कर रहे हैं और कितने नहीं। यह भी कि यदि ये सिंचाई में काम आ भी रहे हैं, तो कितने भाग तक पानी दे पा रहे हैं? और क्या उनका पानी अंतिम छोर व हर खेत तक पहुंच रहा है? कृषि विभाग, उद्यान विभाग और सिंचाई विभाग में करोड़ों रुपए के बजट के प्रावधान का तब तक कोई अर्थ नहीं, जब तक हर कूहल में पानी उसके अंतिम छोर तक न पहुंचे और हर खेत सिंचित न हो। तहसील पालमपुर में न्यूगल दरिया से निकलने वाली मांहग कूहल के निर्माण हेतु जो क्षेत्र पालमपुर विधानसभा के अंतर्गत आता था, उसकी 2.3 करोड़ रुपए की डीपीआर तो बन गई, लेकिन इस कूहल का जो क्षेत्र सुलह विधानसभा के अंतर्गत आता था, उसकी डीपीआर बनी ही नहीं। अब प्रश्न पैदा होता है कि आधी-अधूरी डीपीआर क्यों बनी? यह जांच का विषय है। कई खेत कागजात माल में नैहरी अव्वल दर्शाए जा रहे हैं, जबकि मौके पर वे सिंचाई के अभाव में बंजर बन चुके हैं। प्रदेश में कृषि क्षेत्र में अथाह संभावनाएं हैं। वित्तीय संकट से जूझ रहे हिमाचल प्रदेश को कृषि कुछ राहत प्रदान कर सकती है। आज कृषि और बागबानी के क्षेत्र में सुधार लाने के साथ सर्वप्रथम कूहलों की स्थिति में सुधार लाना अति आवश्यक है। सिंचाई के क्षेत्र में सुधार लाए बिना कृषि और बागबानी के क्षेत्र में प्रगति नहीं हो सकती। यदि कृषि योग्य भूमि को बंजर होने से बचाना है तो सिंचाई के साधनों पर प्राथमिकता के आधार पर ध्यान देना होगा, नहीं तो वह दिन दूर नहीं, जब समस्त कृषि योग्य भूमि बंजर भूमि में तबदील हो जाएगी।

हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय, ई-मेल आईडी तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।

-संपादक


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