सरकार की गागर में सागर का हिसाब रखना

By: Jan 25th, 2018 12:05 am

डा. विनोद गुलियानी

लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं

सांस्कृतिक संध्याओं में गानों के नाम पर चहेतों को खुश कर आखिर हम कौन सा सांस्कृतिक विकास करते रहे हैं? अफसरों की टोली मंत्रियों के आगे-पीछे घूमने के बजाय, अपने कार्यालयों में बैठकर जनहित से जुड़े कार्य निपटाने को वरीयता दे। नए कार्यक्रमों के उद्घाटन तो समाजसेवी, दानियों से भी करवाए जा सकते हैं…

प्रदेश में नवनिवार्चित सरकार यदि शुरुआत से ही वित्तीय अनुशासन की आदतें अपना ले, तो भविष्य का सफर यकीनन कुछ सरल हो जाएगा। इस संदर्भ में कई ऐसे पहलू चिन्हित किए जा सकते हैं, जिनके सहारे फिजूलखर्ची पर अंकुश लगाया जा सकता है। सर्वप्रथम विधायक बार-बार अपने वेतन-भत्ते बढ़ाने का सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करने से परहेज करें तथा अपनी पेंशन न लेने का साहस जुटाएं। जब 350 रुपए में मोबाइल द्वारा सारी सुविधाएं मिल सकती हैं, तो 15,000 रुपए मासिक भत्ता व अन्य भत्ते क्यों? टूअर प्रोग्रामों, उद्घाटनों के लिए लाखों के यात्रा भत्ते का भी कोई तुक नजर नहीं आता। अफसरों की टोली मंत्रियों के आगे-पीछे घूमने के बजाय, अपने कार्यालयों में बैठकर जनहित से जुड़े कार्य निपटाने को वरीयता दे। नए कार्यक्रमों के उद्घाटन तो समाजसेवी, दानियों से भी करवाए जा सकते हैं। सरकारी गाडि़यां पूलिंग प्रणाली से चलें। दौरों पर जब अफसर मंत्री के साथ हों, तो खाली गाड़ी में एक अफसर या अकेला चालक का चलना कदाचित न्यायसंगत नहीं, बल्कि यह जनता के साथ भी सरासर धोखा है।

सरकारी समारोहों में फूलों का कत्ल, फूलों की खरीदपर खर्च की परंपरा आखिर कहां तक वाजिब है? शिवरात्रि तथा सांस्कृतिक संध्याओं में गानों के नाम पर चहेतों को खुश कर आखिर हम कौन सा सांस्कृतिक विकास करते रहे हैं? आधुनिक समय में शौकीन लोग घर बैठे दूरदर्शन या नेट पर मनपसंद कार्यक्रम देख सकते हैं। इस चापलूसी के बजाय क्यों न स्थानीय कलाकारों तथा स्कूली बच्चों के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाए। कर्मचारियों की तबादला नीति स्पष्ट, पारदर्शी व धन बटोरने वाले बिचौलियों से मुक्त होनी चाहिए। अगर पहले की सरकारों ने प्रदेश में कोई स्पष्ट तबादला नीति तैयार की होती, तो वर्तमान सरकार को तबादलों में इतनी मशक्कत करने की नौबत ही न आती। क्या अतीत से सबक लेकर जयराम सरकार इस दिशा में कोई प्रभावी नीति तैयार कर पाएगी? विधायक निधि का आबंटन पूरी पारदर्शिता के साथ बूथ अनुसार बराबर-बराबर होना चाहिए व कामकाज की नियमित जांच होनी चाहिए। सरकारी योजनाओं व सुविधाओं के बारे में संबंधित कार्यालयों के बाहर स्पष्ट लिखा होना चाहिए। उदाहरणतः बहुत सी जनहित योजनाओं में से एक मातृ शक्ति बीमा योजना या राष्ट्रीय परिवार सहायता कार्यक्रम में केवल गरीबी रेखा के नीचे, 59 वर्ष की आयु तक व तीन माह के अंदर केवल योग्य पात्र ही आवेदन करें। अयोग्य पात्र आवेदन कर अपना व विभाग का समय बर्बाद न करें। इस स्थिति में गांव के सामाजिक कार्यकर्ता आवेदकों का सही मार्गदर्शन कर सकते हैं।

प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार द्वारा अपने मुख्यमंत्रित्व काल में 1992 में विकास में जन सहयोग नाम से योजना चलाई थी, उसका आज के संदर्भों में भी व्यापक प्रचार-प्रसार होना चाहिए। इसे सामाजिक, पंजीकृत शैक्षणिक संस्थाओं व गोशाला निर्माण हेतु पुनः शुरू करना चाहिए। इसके अतिरिक्त निजी, वन मैन स्कूलों व सरकारी सहायता के लिए ही फर्जी पंजीकृत संस्थाओं पर कड़ी नजर रखी जाए। ऐसी संस्थाओं को गलत आबंटन से ईमानदार सामाजिक कार्यकर्ताओं का मनोबल भी टूटता है। अधिकांश कंपनियों की दवाइयों पर खुदरा कीमत यदि कम कर दी जाए, तो कमीशन खाने वाले डाक्टरों का धंधा स्वतः ही बंद हो जाएगा। इसी प्रकार बहुत से लैब व अल्ट्रासाउंड वालों को, जो डाक्टरों को कमीशन देते हैं, गरीबों का वास्ता देकर मनोवैज्ञानिक ढंग से गलत काम से रोका जा सकता है। इस बारे अधिकांश नौकरशाह व राजनेता या तो अनभिज्ञ हैं या जानबूझ कर आंखें मूंदे बैठे हैं। जनमानस के कल्याण से जुड़े बहुत से कार्यालयों में काम की संस्कृति सुधार मांग रही है। प्रायः सैकड़ों लोग हर रोज तहसील व उपमंडल अधिकारी कार्यालयों में तारीख भुगतने आते हैं। आगे साहब छुट्टी पर हों, तो मायूसी ही हाथ लगती है। आम जनता को यह भला किस दोष की सजा है? साहब की छुट्टी का अग्रिम नोटिस लगने के साथ-साथ संबंधित कार्यालय द्वारा घर के पते पर डाक से सूचना आनी चाहिए। समय व ऊर्जा बचने के कारण इससे दरिद्र नारायण ही नहीं, परंतु हर व्यक्ति को मानसिक शांति का एहसास होगा। ऐसे में जनता का मूड सरकार का तरफदार बन सकता है।

‘दुधारू गाय हमारी, उसके बाद सरकारी’! लोगों की यह सोच बदलनी है। इसके लिए प्रथम व अति आवश्यक पग यह होना चाहिए कि पशुओं की फोटो व संख्या, राशन कार्ड में अंकित हो। मृत्यु पर नाम कटवाने का नियम परिवार की तरफ बनाया जाए, जिसे चुने हुए वार्ड पंच बखूबी निभा सकते हैं। दूसरा जो सामाजिक कार्यकर्ता गोमाता की सेवा हेतु सदन बनाते हैं, उन्हें सरकार जमीन तो उपलब्ध करवाए। यहां मुझे यह बताते हुए दुख हो रहा है कि ‘शिवधाम गोशाला बैजनाथ’ जो लोगों के नियमित सहयोग से 20 लावारिस पशुओं की सेवा कर रही है, को आरंभ करने में तब के विधायक व प्रशासन ने उद्घाटन व भाषण के अतिरिक्त आज तक कोई सुध न ली। इस नेक कार्य में लगे लोगों का सहयोग करना तो दूर, प्रशासन ने जमीन की नेचर बदलने में भी ढुलमुल नीति अपनाई, जबकि सारी औपचारिकताएं पूर्ण करने के बाद फाइल दो वर्ष से घूम-फिर कर जिला कार्यालय कांगड़ा में धूल चाट रही है। क्या ऐसा शुभ काम करने में सामाजिक कार्यकर्ता हतोत्साहित नहीं होते? ये कुछ पहलू हैं, जिन पर नई सरकार और इसके मंत्रियों समेत विधायक अमल करें, तभी प्रदेश की जनता को जरूर कुछ नएपन का एहसास होगा।


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