सूर्य और चंद्र के वंशजों के वंशज हैं राजपूत

By: Jan 17th, 2018 12:05 am

राजपूतों की उत्पत्ति के बारे में विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ विचार है कि ये प्राचीनकाल के सूर्य और चंद्र वंशों के ही वंशज हैं। राजपूत प्राचीन आर्य क्षत्रिय वंश से थे और शारीरिक बनावट में भी आर्यों से मिलते-जुलते थे। अतः यह कहना स्वाभाविक हो जाता है कि राजपूत वैदिक आर्यों के ही वंशज थे…

पूर्व मध्यकालीन हिमाचल

राजपूत लोग कौन थे तथा कहां से आए और किस प्रकार उन्होंने क्षत्रियों का स्थान ग्रहण किया, इस संबंध में निर्णयात्मक रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। सबसे अद्भुत बात यह है कि ये सभी राजपूत स्वयं को राम और कृष्ण का वंशज मानते रहे तथा अपने वंश के साथ सूर्य, चंद्र तथा अग्नि का संबंध जोड़ते रहे, परंतु इनका मौर्य, गुप्त एवं मौखरि वंशों से कोई संबंध प्रतीत नहीं होता। इससे पूर्व कि इस नव उदित ‘राजपूत’ जाति के विषय में कुछ कहा जाए यहां एक बात का निर्णय कर लेना होगा कि यहां प्राचीन काल के क्षत्रिय कौन थे।  इस विषय में यह तो सर्वमान्य है कि राजसत्ता जिसके हाथ में रही, वही क्षत्रिय कहलाता है। इस बात की पुष्टि हमारे प्राचीन ग्रंथों से भलीभांति हो जाती है। महाभारत में वर्णित राजा शांतनु, जो कि कौरवों एवं पांडवों के पूर्वज थे, ने एक शुद्र कन्या से विवाह किया और उसी की संतान से आगे चलकर क्षत्रिय कुलभूषण राजा युधिष्ठिर एवं धनुर्धर अर्जुन हुए, जिन्हें कि सभी निर्विरोध क्षत्रिय मानते हैं। इसी प्रकार चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म भी क्षत्रिय जाति में नहीं हुआ, परंतु मगध सम्राट होने के नाते उसे भी क्षत्रिय माना गया। बौद्ध यात्री ह्वेनत्सांग हर्ष को वैश्य लिखता है, परंतु भारतीय परंपरा के अनुसार उसे भी क्षत्रिय माना जाता है। ठीक इसी आधार पर कई विद्वानों का मत है कि ‘राजपूत’ जाति का प्रादुर्भाव भी राजसत्ता का उन व्यक्तियों  के हाथों में होने से माना गया है। राजपूत कोई एक जाति विशेष न होकर कई जातियों के मेल कोे, जिन्होंने कि समय-समय पर राजसत्ता का भोग किया, माना जाता है। राजनीतिक शक्ति इनके हाथों में आने पर इन्हें राजपूत कहा गया। राजपूतों की उत्पत्ति के बारे में विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ विचार है कि ये प्राचीनकाल के सूर्य और चंद्र वंशों के ही वंशज हैं। यह विचाराधारा राजस्थान के इतिहास के प्रसिद्ध लेखक डा. गौरी शंकर हीरा चंद्र ओझा की है, जो परंपराओं पर आधारित है। वासुदेव उपाध्याय का भी यही मत है कि राजपूत प्राचीन आर्य क्षत्रिय वंश से थे और शारीरिक बनावट में भी आर्यों से मिलते-जुलते थे। अतः यह कहना स्वाभाविक हो जाता है कि राजपूत वैदिक आर्यों के ही वंशज थे। दूसरी विचारधारा इस संबंध में भी है कि इसी देश के आदिवासियों को, जो मूलतः क्षत्रिय नहीं थे, परंतु सैनिक कार्यों में संलग्न रहते थे और शासनाधिकार प्राप्त कर रहे थे, धर्मरक्षक समझ कर ब्राह्मणों ने उन्हें क्षत्रिय वर्ण प्रदान कर दिया। साथ ही उन्हें ‘राजपूत’ की उपाधि से विभूषित कर दिया गया। कुछ इतिहासकार राजपूतों को विभिन्न विदेशी जातियों का सम्मिश्रण समझते हैं। उनका कथन है कि छठी शताब्दी से पूर्व शक, कुषाण, हूण, गुर्जर आदि विदेशी जातियां पश्चिमोत्तर प्रदेशों के मार्ग से भारत के उत्तर-पश्चिम भाग, पंजाब और वर्तमान राजपूताना में आकर बसने लगी थीं।


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