हज सबसिडी पर ढक्कन

By: Jan 18th, 2018 12:02 am

प्रधानमंत्री मोदी ने सत्ता में आने के बाद हज सबसिडी खत्म करने का जो सिलसिला शुरू किया था, अब उस पर पूरी तरह ढक्कन लगा दिया गया है। मोदी सरकार ने हज के लिए प्रस्तावित सबसिडी बिलकुल ही खत्म करने का फैसला लिया है। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी का स्पष्टीकरण है कि हज सबसिडी से मुसलमानों को फायदा होने के बजाय कुछ बिचौलिया एजेंसियों की तिजौरियां भरी जा रही थीं, लिहाजा यह फैसला लेना पड़ा। अलबत्ता सरकार गरीब हाजियों की आर्थिक मदद करने पर जरूर कुछ विचार करेगी। इस तरह हज सबसिडी खत्म होने से भारत सरकार की 700 करोड़ रुपए से ज्यादा की बचत हो सकती है। साथ ही हाजी मुसलमान ‘खैरात’ की लानत से बच सकेंगे, क्योंकि कुरान में लिखा है कि जो समर्थ हैं, वही हज पर जाएं। हज करने के लिए किसी भी तरह की ‘खैरात’ हराम है। बेशक सबसिडी भी ‘खैरात’ ही है। मोदी सरकार ने अपनी प्राथमिकता तय की है कि सबसिडी की राशि को मुस्लिमों के विकास, कल्याण और खासकर मुस्लिम बच्चियों की पढ़ाई पर खर्च किया जाएगा। सच्चर आयोग की रपट के मुताबिक, करीब 90 फीसदी मुस्लिम बच्चियां अपनी स्कूली शिक्षा पूरी नहीं कर पाती हैं और स्कूल छोड़ने को विवश होती हैं। करीब 60 फीसदी मुस्लिम महिलाएं शिक्षा से ही वंचित हैं। मात्र 10 फीसदी औरतें ही उच्च शिक्षा ग्रहण कर पाती हैं। औसतन 43 फीसदी मुसलमान निरक्षर हैं। यह भी आकलन सामने आया है कि अभी तक हज सबसिडी के नाम पर जो 3000 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं, उनसे 151 स्कूल बनाए जा सकते थे। बहरहाल इस मुद्दे को हिंदू-मुसलमान के चश्मे से न देखा जाए। 8 मई, 2012 को सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि 10 सालों की अवधि के दौरान हज सबसिडी को धीरे-धीरे खत्म किया जाए। हालांकि तत्कालीन यूपीए सरकार ने उस फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी कि फिलहाल सबसिडी खत्म न की जाए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले पर सख्ती से कायम रहा। शायद उसी का नतीजा है कि 2014 में केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद सबसिडी घटाकर 577 करोड़ रुपए कर दी। उसके बाद 2015 में 529 करोड़ और 2016 में 405 करोड़ रुपए हज सबसिडी रह गई थी, जिसे अब पूरी तरह खत्म किया जा रहा है। इस पर मुसलमानों ने तल्ख प्रतिक्रियाएं दी हैं और ओवैसी सरीखे मुस्लिम नेताओं ने भी यह सबसिडी तुरंत खत्म करने की बात कही थी। मुस्लिम नेताओं का एक तबका ऐसा है, जिसका मानना है कि मोदी सरकार मुसलमानों को कुचल-कुचल कर परेशान कर रही है, लिहाजा लगातार मुस्लिम-विरोधी फैसले लिए जा रहे हैं। उनकी दलीलें हैं कि ऐसा कर मोदी सरकार हिंदुओं को संकेत देना चाहती है कि देखिए, वह मुसलमानों से किस तरह निपट रही है! दरअसल यह हिंदू-मुसलमान का मामला नहीं है, देश की आर्थिक स्थिति को बचाने की कोशिश है। सवाल है कि देश की आजादी के बाद हज सबसिडी लगातार क्यों दी जाती रही है? यदि मुसलमान सरीखे अल्पसंख्यकों को यह सरकारी सुविधा दी जाती रही है, तो जैन, बौद्ध, सिख, पारसी आदि अन्य अल्पसंख्यकों को क्यों नहीं दी गई? उनके भी धर्मस्थल हैं, वे भी तीर्थयात्रा पर जाना चाहते हैं। सवाल तो यह भी है कि पूरी हिंदू जमात को ‘धार्मिक सबसिडी’ क्यों नहीं दी जाती? जब कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए विभिन्न राज्य सरकारें 20,000 रुपए से एक लाख रुपए तक के अनुदान देती हैं, तो उन पर आपत्ति की जाती है। इस यात्रा में हिंदू और मुसलमान सभी को अनुदान दिए जाते हैं। कुंभ मेले में भी केंद्र और राज्य सरकारें विस्तृत बंदोबस्त करती रही हैं। स्वच्छ पेयजल से लेकर सुरक्षा, परिवहन, स्वास्थ्य सेवाओं के लिए डाक्टर और विशेष प्रकार के इंजेक्शन आदि भी मुहैया कराए जाते हैं। वे सरकारों के सामाजिक दायित्व हैं, न कि सबसिडी के माध्यम हैं, जिनके जरिए सरकारें तुष्टिकरण की राजनीति खेलती रही हैं। क्या हज सबसिडी भी तुष्टिकरण का एक जरिया रही है? सरकारी रिकार्ड के मुताबिक, करीब 40 लाख मुसलमानों ने हज के लिए आवेदन किया है। लॉटरी के जरिए इजाजत मिलेगी, लेकिन बिना हज सबसिडी के 1.75 लाख मुस्लिम ही मक्का-मदीना जा सकेंगे। सबसिडी किसी भी देश की अर्थव्यवस्था पर बोझ है। मोदी सरकार के आने से पहले करीब दो लाख करोड़ रुपए की सबसिडी दी जाती थी। प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर लोगों ने गैस सिलेंडर पर सबसिडी छोड़ी। अब भी एक मोटी सबसिडी मुहैया कराई जा रही है। यह खत्म होनी चाहिए। यदि कोई गरीब, असहाय है, तो उसकी मदद करना सरकार का सामाजिक दायित्व है, लेकिन ‘खैरात’ उन तबकों को भी क्यों दी जाए, जो सक्षम और समर्थ हैं?


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