हार के बावजूद कांग्रेस को सुधरने का मौका

By: Jan 5th, 2018 12:10 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

कांग्रेस की हार का एक कारण यह भी है कि वीरभद्र सिंह के अलावा चुनाव प्रचार में कोई और बड़ा नेता नहीं दिखा। उन्हें चुनाव के दौरान कोई मदद नहीं मिल पाई और पार्टी नेता गुजरात चुनाव की ओर पलायन कर गए। पार्टी ने हिमाचल चुनाव को गंभीरता से नहीं लिया और केंद्रीय नेतृत्व शिथिल पड़ा रहा। वीरभद्र सिंह को अगर केंद्रीय नेताओं की प्रचार में मदद मिली होती, तो पार्टी चुनाव में बेहतर परिणाम दे सकती थी…

हाल के विधानसभा चुनाव में वीरभद्र सिंह व उनके पुत्र विक्रमादित्य सिंह जीत गए, लेकिन पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। वह शिखर से धरातल की ओर आ गई। हार के बाद पार्टी ने इसके कारणों पर मंथन भी किया है। कांग्रेस के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने शिमला पहुंचकर पार्टी के नेताओं से बातचीत की है। बैठक से निकला निष्कर्ष यह है कि पार्टी की हार के कारणों का सभी को पता है, लेकिन कोई भी इसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है। आम वक्तव्य यह सामने आया कि पार्टी नेता धरातल के स्तर पर जनता से संपर्क नहीं बना सके। संभवतः यह एक बड़ा कारण रहा कि पूर्व की वीरभद्र सरकार में मंत्री रहे कई उम्मीदवारों तक को हार का सामना करना पड़ा।

बैठक में गहन चिंतन-मनन के पश्चात राहुल गांधी ने अपने अनुयायियों को मंत्र दिया कि वे जनता से सीधे संपर्क स्थापित करें। इस बात में कोई संदेह नहीं कि एक नेता का अपने अनुयायियों पर गहरा प्रभाव होना चाहिए और उसे सच्चा नेता होना चाहिए। हालांकि यहां सवाल यह भी उठ सकता है कि क्या राहुल गांधी पार्टी कार्यकर्ताओं को कोई विजन दे पाए, जिससे पार्टी हार के दलदल से बाहर निकल सके। क्या वह कार्य और ट्रेनिंग का कोई प्रभावी और व्यावहारिक चार्टर उनके सामने रख पाए। आत्मबोध से ऐसी कोई अंतःदृष्टि फिलहाल सामने निकलकर नहीं आई है। यहां तक कि हार के लिए किसी की जिम्मेदारी तक तय नहीं की जा सकी, अन्यथा ऐसी स्थिति में हार के लिए जिम्मेदार रहे लोगों पर कार्रवाई होती है। इसके उलट बैठक के दौरान ही थप्पड़ कांड हो गया। पार्टी की वरिष्ठ नेता आशा कुमारी को जब मीटिंग में जाने से एक महिला सुरक्षा कर्मी ने रोका, तो उन्होंने उस पर थप्पड़ जड़ दिया। जवाब में महिला कर्मी ने भी आशा कुमारी के गाल पर थप्पड़ रसीद कर दिया।

एक अनुभवी नेत्री होने के नाते आशा कुमारी को इस तरह से आपा नहीं खोना चाहिए था। इससे यह जाहिर होता है कि बैठक तक वरिष्ठ लोगों की भी पहुंच आसान नहीं बनाई गई थी, आम कार्यकर्ताओं की बात तो छोड़ ही दीजिए। बैठक के लिए बेहतर प्लानिंग नहीं की गई और नवनिर्वाचित विधायक अपनी बात कहने से वंचित रह गए। हालांकि ऐसी अव्यवस्थाएं देखकर भी अब कोई खास हैरानी नहीं होती। इस तरह का कुप्रबंधन पार्टी की कार्यशैली में आम हो गया है। पार्टी में सुस्त कार्यप्रणाली एक रूटीन कार्य बन गया है। यही कारण है कि पार्टी की दुरावस्था पर कोई टिप्पणी करने को तैयार नहीं है, सिवाय वीरभद्र सिंह के। इन्होंने साहस दिखाते हुए कुछ महत्त्वपूर्ण शब्द जरूर कहे, लेकिन मूल कारण वह भी नहीं बता पाए। राहुल गांधी मानते हैं कि पार्टी नेताओं की जनता से दूरी हार का कारण है, जबकि वीरभद्र सिंह का मानना है कि प्रत्याशियों के चयन में गलती हुई है। कांग्रेस की हार का एक कारण यह भी है कि वीरभद्र सिंह के अलावा चुनाव प्रचार में कोई और बड़ा नेता नहीं दिखा। उन्हें चुनाव के दौरान कोई मदद नहीं मिल पाई और पार्टी नेता गुजरात चुनाव की ओर पलायन कर गए। पार्टी ने हिमाचल चुनाव को गंभीरता से नहीं लिया और केंद्रीय नेतृत्व शिथिल पड़ा रहा। वीरभद्र सिंह को अगर केंद्रीय नेताओं की प्रचार में मदद मिली होती, तो पार्टी चुनाव में बेहतर परिणाम दे सकती थी। पार्टी की भीतरी लड़ाई ने भी कांग्रेस को कमजोर किया, हालांकि वीरभद्र के विरोधी, जिनमें कौल सिंह व जीएस बाली शामिल हैं, इस चुनाव में घुटनों के बल गिर गए। वीरभद्र सिंह ने कौल सिंह व हरभजन सिंह भज्जी जैसे पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों के खिलाफ लड़ रहे लोगों की परोक्ष मदद भी की।

आशा कुमारी ने एक स्वर्णिम अवसर गंवा दिया है। हालांकि वह आने वाले समय में पार्टी का नेतृत्व कर सकती थीं। उनमें वह ऊर्जा थी, जो नेतृत्व संभालने के लिए जरूरी होती है, लेकिन उनके कुछ कारनामे उल्टे पड़ गए। पार्टी को अब दूरगामी सोच रखनी होगी तथा विजन लेकर सामने आना होगा। पार्टी संगठन के भीतर वीरभद्र सिंह को छोड़कर अन्य नेताओं का कार्यकर्ताओं पर प्रभाव कम होता जा रहा है और पूरा संगठन ढुलमुल लगता है। पार्टी में युवा नेतृत्व को उभारने के लिए भी कोई कोशिश नहीं हो रही है। विधानसभा चुनाव भी जिला व खंड स्तर पर टूटे-फूटे ढांचे के साथ लड़ा गया। पार्टी को अब व्यावसायिक तरीके से वे कारण जानने होंगे, जो उसकी हार के लिए जिम्मेदार हैं। बीमारी ढूंढने के बाद उसके बेहतर इलाज से ही पार्टी संगठन को मजबूत किया जा सकता है। वास्तव में पार्टी की कई विफलताएं रही हैं। वह कुशल प्रशासन देने में कामयाब नहीं रही। कानून व व्यवस्था का मामला भी उसकी हार का कारण बना, क्योंकि कोटखाई जैसे कांड ने व्यवस्था की पोल खोल दी। प्रदेश में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना का मामला भी वह सुलझा नहीं पाई। लोगों में नाराजगी भी थी और जनता की रक्षक कहलाने वाली पुलिस के अधिकारियों को ही गिरफ्तार करना पड़ा। महत्त्वपूर्ण बैठकों का कुप्रबंधन तो उस समय सामने आ गया, जब एक महिला जवान ने वरिष्ठ नेता को ही थप्पड़ रसीद कर दिया। प्रदेश स्तर पर भी इस तरह की लापरवाही बड़े स्तर पर दिखी, जिससे हार का सामना करना पड़ा। सत्ता विरोधी लहर की चर्चा आम तौर पर होती है, परंतु जहां सुशासन की स्थापना होती है, वहां इसे केवल कल्पना माना जाता है। कई जगहों पर सरकार तीन या चार बार भी रिपीट हुई है।

अब बचाव के मार्ग ढूंढने के बजाय वैध डाटा व सूचना के आधार पर लापरवाही बरतने वालों को सजा मिलनी चाहिए। पार्टी को सही विजन ढूंढने के लिए प्रोफेशनल तरीके से खोज करनी होगी और जुमलों के जरिए गुमराह होने से बचना होगा। यही बिलकुल ठीक समय है, जब पूरी पार्टी व संगठन की मरम्मत होनी चाहिए। यहां दुख की बात यह है कि अब तक इस तरह के कोई संकेत पार्टी की ओर से नहीं मिले हैं।

बस स्टैंड

पहला यात्री : क्या तुम यह जानते हो कि जिस महिला कांस्टेबल ने एक वरिष्ठ नेता को थप्पड़ मारा, वह एक प्रशिक्षित बॉक्सर थी?

दूसरा यात्री : भगवान का शुक्र है कि उसने बॉक्सिंग की निपुणता का प्रयोग नहीं किया।

ई-मेल : singhnk7@gmail.com


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