हिंदी-यहूदी भाई-भाई
इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भारत के प्रधानमंत्री मोदी को ‘क्रांतिकारी’ माना है। उनके नेतृत्व में भारत चौतरफा क्रांति का संवाहक देश है। प्रधानमंत्री मोदी भारत को भविष्य का देश बनाते हुए क्रांतिकारी काम कर रहे हैं। उन्होंने भारत और इजरायल के आपसी संबंधों को ‘क्रांतिमय’ किया है। भारत-इजरायल का हजारों वर्षों का इतिहास आपसी भाईचारे, प्रगाढ़ता, परिपक्वता और मानवीय लोकतंत्र की असंख्य कहानियां समेटे है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी उसी सांस्कृतिक परंपरा को जिया है और भारत में यहूदी-विरोधी भावनाओं का नामोनिशान नहीं है, लिहाजा ‘क्रांतिकारी नेता’ के नेतृत्व में तीन चीजें दोनों देशों को जोड़ती रहेंगी-प्राचीन इतिहास, स्वर्णिम वर्तमान और उन्नत भविष्य। जिस मुहावरे से ऐसे कूटनीतिक संबंधों की निकटता शुरू हुई थी, वह तो नकली निकला और शत्रुता के भाव के साथ आपसी संबंधों की खोखली दुहाई दी जाती रही। हम ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ की बात कर रहे हैं, लेकिन उसी तर्ज पर आज भारत के अमरीका, जर्मनी, जापान, फ्रांस, ब्रिटेन सरीखे ताकतवर देशों के साथ ‘भ्रातृत्व’ के संबंध हैं। नई कड़ी इजरायल की है, जिसके साथ कूटनीतिक संबंधों की रजत जयंती का यह वर्ष है। भारत में इजरायल के मूल वासी यहूदी सुरक्षित हैं और उनके खिलाफ एक भी उग्र या हिंसक आंदोलन नहीं है, लिहाजा ‘हिंदी-यहूदी, भाई-भाई’ के नए मुहावरे पर भरोसा किया जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय मंच पर आज जो ताकतवर स्थिति भारत की है, वह प्रधानमंत्री मोदी की ‘हग डिप्लोमेसी’ का नतीजा है। कांग्रेस ने उसका मजाक उड़ाया है और सवाल दागे हैं कि इस कूटनीति से भारत को हासिल क्या हुआ है? हमारा पलटसवाल यह है कि हासिल क्या नहीं हुआ है? इजरायल तो भारत की तुलना में बेहद छोटा सा देश है। एक ओर अरब देशों से घिरा है, तो दूसरी ओर फलस्तीन सरीखा जन्मजात शत्रु मौजूद है। इन विरोधाभासों के बावजूद भारत ने इजरायल के साथ रक्षा, सेना, कृषि, जल, तेल और गैस, साइबर सुरक्षा, विज्ञान और तकनीक, अक्षय ऊर्जा, चिकित्सा आदि क्षेत्रों में करार किए हैं, क्या यह कम उपलब्धि है? इजरायल रक्षा और हथियारों तथा खुफियागीरी में अतुल्य देश है। वह हमें 460 करोड़ रुपए की 131 बराक मिसाइलें देगा। ये मिसाइलें धरती से हवा में मार करने वाली हैं। इनका डाटा 100 किलोमीटर की रेंज तक दुश्मन की मौजूदगी भांप कर उसे 70 किमी के दायरे में ही तबाह कर सकता है। यह जहाजों पर लगाने वाला एक सिस्टम है, जिससे जहाज को एंटी शिप मिसाइल, लड़ाकू विमान, मानव रहित विमान और हेलिकाप्टर से किए गए हमलों से बचाया जा सकता है। भारत और इजरायल के बीच करीब 26,000 करोड़ रुपए का कारोबार होता है। मोदी-नेतन्याहू की ‘दोस्ती’ उसे बढ़ाने को कृतसंकल्प है। यह हासिल नहीं है क्या? इजरायल भारत के साथ खुफिया सूचनाएं साझा करने और दुश्मन को निशाना बनाने में भी सहयोग करेगा, क्या यह अच्छा संकेत नहीं है। दोनों देशों ने आतंकवाद के दंश झेले हैं, लिहाजा ऐसे सहयोग किसी भी प्रकार की आतंकी साजिश को नाकाम कर सकते हैं। भारत में साइबर के खतरे भी बढ़ते जा रहे हैं, लिहाजा इस क्षेत्र में भारत को इजरायली कंपनियों की विशेषज्ञता मिलेगी, प्रशिक्षण भी मुहैया कराया जाएगा और तकनीक का हस्तांतरण भी होगा, नतीजतन हम साइबर खतरों से लड़ कर निजात पा सकेंगे। भारत में कृषि का बहुत महत्त्व है। करीब 70 फीसदी आबादी कृषि पर आश्रित है, लेकिन इजरायल ने इस क्षेत्र में जो प्रगति की है, नए-नए प्रयोग किए हैं, उनका लाभ भी भारत को मिलेगा। दोनों देशों में कृषि और जल क्षेत्र में सहयोग पर भी करार हुए हैं। जल संरक्षण, जल की गुणवत्ता सुधारने के लिए इजरायल भारत से तकनीक साझा करेगा। कृषि क्षेत्र में डाटा, सेंसर और सेटेलाइट के जरिए किसानों को उत्पादन बढ़ाने की तकनीकें उपलब्ध कराई जाएंगी। दोनों प्रधानमंत्रियों ने यह भी तय किया है कि दोनों देशों के नागरिकों में नियमित तौर पर ‘मिलन’ होते रहना चाहिए, उससे भी ‘हिंदी-यहूदी, भाई-भाई’ की भावना को बल मिलेगा। बहरहाल भारत और इजरायल दोनों ही नया इतिहास लिखने जा रहे हैं। विरोधी तो आलोचना करेंगे, सवाल उठाएंगे, लेकिन वक्त साबित करेगा कि प्रधानमंत्री मोदी के कालखंड में रक्षा, सैन्य, विदेश नीति, विज्ञान नीति, कृषि, युवा और सबसे बढ़कर बड़े देशों के साथ संबंधों के मद्देनजर कौन से ‘मील पत्थर’ स्थापित किए गए।
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