हिंदू आतंकवादी संगठन !

By: Jan 13th, 2018 12:05 am

भाजपा-संघ, बजरंग दल, विहिप में हिंदू आतंकवादी हैं। हिंदुत्व उग्रवादी कहें या हिंदुत्व आतंकवादी कहें, इन सभी जुमलों का भाव एक ही है। इतिहास एक बार फिर खुद को दोहरा रहा है। 2013 में जयपुर के कांगे्रस चिंतन शिविर में देश के तत्कालीन गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने सार्वजनिक तौर पर आरोप चस्पां किया था कि संघ की शाखाओं में हथियारों और आतंकवाद की ट्रेनिंग भी दी जाती है। भाजपा-संघ के भीतर भगवा आतंकवाद है, लेकिन तत्कालीन विपक्षी पार्टी भाजपा ने संसद में ऐसा तूफान खड़ा किया था कि गृह मंत्री को न केवल बयान वापस लेना पड़ा, बल्कि माफी भी मांगनी पड़ी। उसी दौर में एक और गृह मंत्री पी. चिंदबरम ने भी भाजपा-आरएसएस के भीतर भगवा आतंकवाद की घटनाओं का जिक्र किया था, लेकिन वह चौतरफा शोर में दबकर रह गया। पांच साल बाद कर्नाटक के कांगे्रसी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी उसी अध्याय को दोहराते हुए कहा है कि भाजपा-आरएसएस, बजरंग दल, विहिप में हिंदू आतंकवादी हैं। मुख्यमंत्री ने खुद को मानवता वाला हिंदू करार दिया और हिंदू आतंकवाद को बिना मानवता वाला कहा। यही नहीं, भाजपा-संघ की तुलना पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से की, जो प्रतिबंधित सिमी के नए नामकरण वाला आतंकी संगठन है। दिलचस्प है कि गुजरात चुनाव कांगे्रस अध्यक्ष राहुल गांधी ने नरम हिंदुत्व के साथ लड़ा और 28 मंदिरों में जाकर पूजा-पाठ किया। कांगे्रस प्रवक्ताओं ने राहुल के जनेऊ पहने चित्रों को भी टीवी चैनलों पर खूब दिखाया, लेकिन वह हिंदूवाद कर्नाटक में ध्वस्त होता लग रहा है। कांगे्रस में इससे बड़ा विरोधाभास या नकलीवाद क्या हो सकता है? क्या कांगे्रस में कर्नाटक के मुख्यमंत्री कांगे्रस अध्यक्ष राहुल गांधी से भी बड़े और महत्त्वपूर्ण हैं? एक तरफ 2019 के आम चुनावों के मद्देनजर कांगे्रस ने राम मंदिरों में मरम्मत कराने, पूजा सामग्री बांटने, आरती की समितियां बनाने यानी हिंदू-हिंदू खेलना तय किया है, लेकिन दूसरी तरफ एक मुख्यमंत्री हिंदुओं को आतंकवादी करार देते हुए कुछ और ही राजनीति खेल रहा है। सवाल है कि यदि भाजपा-संघ के भीतर हिंदू आतंकी हैं, तो मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अभी तक उन्हें पकड़ कर जेल में क्यों नहीं ठूंसा? कमोबोश उन आतंकियों के खिलाफ केस तक क्यों नहीं बनाए? सार्वजनिक तौर पर उन आतंकियों को नंगा क्यों नहीं किया? दरअसल मुझे जस्टिस केटी थॉमस का कथन याद आता है कि सेना, संविधान और संघ ही इस देश को बचाए हैं। क्या थॉमस को भी आतंकवादी करार देंगे सिद्धारमैया? अब तीन महीने बाद कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने हैं, तो मुख्यमंत्री सिद्धारमैया कभी खुद को हिंदू कह रहे हैं, तो कभी हिंदुओं को ही गाली दे रहे हैं। यदि फरवरी, 2011 में उनके बयान को नए सिरे से याद किया जाए, तो अब सिद्धारमैया ने खुद को नास्तिक करार दिया था। सिद्धारमैया कितने विरोधाभासों को अपने भीतर पाले हुए हैं? चूंकि कर्नाटक में 12.5 फीसदी से ज्यादा मुसलमान हैं। गुजरात में तो इतने मुस्लिम नहीं थे। लिहाजा राहुल ने किसी मस्जिद में जाना गवारा नहीं किया, लेकिन कर्नाटक की तस्वीर अलग है। संभव है कि कर्नाटक में मुसलमानों को खुश करने को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने यह दांव खेला हो। चुनाव की खातिर किसी दूसरे के चेहरे पर कालिख नहीं पोती जा सकती, लेकिन अब कर्नाटक भी गुजरात की तर्ज पर जा सकता है। भाजपा-संघ के नेताओं ने कर्नाटक में जेल भरो अभियान का आह्वान कर इस मुद्दे को लपक लिया है। बहुत संभव है कि आने वाले दिनों में कर्नाटक में भी हिंदू-मुसलमान देखने और सुनने को मिले। चूंकि मुख्यमंत्री ने भाजपा-संघ की तुलना आतंकी संगठन पीएफआई से की है, लिहाजा भाजपा मानहानि का केस करने की भी सोच रही है। पीएफआई वही संगठन है, जिसने भाजपा-संघ के 22 कार्यकर्ताओं और नेताओं की हत्या की है, लेकिन मुख्यमंत्री ने इस ओर आंखें मूंद रखी हैं। हत्यारों के खिलाफ कोई गिरफ्तारी नहीं की गई है। पीएफआई पर हजारों अन्य लोगों की हत्या के भी आरोप हैं, लेकिन हत्यारे खुले घूम रहे हैं। क्या कर्नाटक के हिंदू इस यथार्थ को नहीं जानते? अब राजनीति में ऐसा नहीं होता कि आप हिंदुओं को गाली दें और तमाम मुसलमान आपको वोट दे देंगे। मुख्यमंत्री एक संवैधानिक पद है। मुख्यमंत्री ने कर्नाटक में भाजपा-संघ पर पाबंदी क्यों नहीं लगाई? सार्वजनिक तौर पर आतंकवाद के सबूत पेश क्यों नहीं किए? विरोधाभास तो तब सामने आएगा, जब कांगे्रस अध्यक्ष राहुल गांधी शृंगेरी मंदिर में भगवान के दर्शन करेंगे, पूजा-पाठ करेंगे और अपना चुनाव अभियान शुरू करेंगे। तब मुख्यमंत्री क्या कहेंगे या कन्नड़ जनता की सोच क्या होगी? और सबसे अहम सवाल तो यह है कि देश की जनता ने वोट देकर जिस पार्टी को चुना और सत्ता सौंपी, क्या उसी को आतंकवादी करार देना सहा जा सकता है? बहरहाल कर्नाटक की चुनावी शुरुआत विवादास्पद ढंग से हुई है, अंजाम क्या होगा देखते रहिए।


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