हिंदू आतंक से बीफ तक

By: Jan 24th, 2018 12:05 am

बीते पांच साल के दौरान कर्नाटक में 3515 किसानों ने आत्महत्या की है। देश का करीब 30 फीसदी दलित-उत्पीड़न अकेले कर्नाटक में ही किया जाता है। यह देश में सर्वाधिक है। महिलाओं के प्रति अपराध अकेले कर्नाटक में ही करीब 186 फीसदी बढ़ गए हैं। राजनीतिक कार्यकर्ताओं और नेताओं की हत्याएं की जा रही हैं, लेकिन हत्यारे पकड़े नहीं जा रहे हैं। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया खुद दलित हैं और इस जमात का मसीहा प्रचारित करते रहे हैं। उसके बावजूद हालात ऐसे हैं, लेकिन कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने इन तमाम हादसों से आंखें मींच रखी हैं। कांग्रेस को सिर्फ याद रहती है, तो भाजपा! कभी संघ परिवार में हिंदू आतंकवाद की बात कही जाती है, तो अब एक ट्वीट के जरिए कांग्रेस ने भाजपा को नया नामकरण दिया है-बीफ जनता पार्टी। वीडियो में दिखाया गया है कि केंद्रीय मंत्री किरेन रिजीजू बीफ खाना पसंद करते हैं, तो गोवा में औसतन 2000 किलोग्राम बीफ का रोजाना प्रोडक्शन होता है। यदि कमी रह जाती है, तो मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर दूसरे राज्यों से आयात करने को तैयार हैं। विडंबना तो यह है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरीखे ‘संत’ को भी बीफ के निर्यात से जोड़ा गया है। यानी अब कांग्रेस खुद को ‘बड़ा हिंदू’ और ‘गोरक्षक’ पेश करने के मद्देनजर बीफ के मुद्दे पर भाजपा-संघ के दोगलेपन को बेनकाब करने पर आमादा है। कर्नाटक में करीब 84 फीसदी आबादी हिंदू है, लिहाजा कांग्रेस की रणनीति है कि बिना हिंदुत्व के कर्नाटक की चुनावी वैतरणी पार नहीं की जा सकती। चूंकि फरवरी में त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय सरीखे पूर्वोत्तर राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं। इन राज्यों में बीफ सामान्य तौर पर खाया जाता रहा है। इन राज्यों में भी कांग्रेस भाजपा के दोगलेपन को बेपर्दा करना चाहती है, क्योंकि भाजपा ने पूर्वोत्तर राज्यों में महत्त्वपूर्ण सेंध लगाने की कोशिश की है और कांग्रेस के बचे-खुचे दुर्ग भी ढहने को तैयार हैं। दरअसल बुनियादी सवाल है कि हिंदू आतंकवाद से बीफ तक क्या ‘फैंसी डे्रस हिंदू’ कांग्रेसी भाजपा के परंपरागत वोट बैंक को छीन सकते हैं? क्या अब चुनाव आतंकवाद और बीफ जैसे मुद्दों पर ही लड़े जाएंगे? दलित उत्पीड़न, किसानों की आत्महत्या, महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध आदि मुद्दे मौजूदा कांग्रेस सरकार और उसके साथी दलों के क्या सरोकार नहीं हैं? बीफ पर तो एके एंटनी, शशि थरूर सरीखे असंख्य कांग्रेसी चटखारे लेने लगते हैं। केरल के चौराहों पर गायों को काट-काट कर, सब्जी बनवाकर, कांग्रेसी खाते हैं और अब सवाल भाजपा और उसके नेताओं पर! सवाल वे दाग रहे हैं, जो गाय को मां नहीं मानते, मंदिर जाने का ही मजाक उड़ाते हैं, गाय के खिलाफ बोलते रहे हैं, भगवान राम को एक काल्पनिक पात्र मानते हैं, जिनकी छह दशकों की सत्ताओं के दौरान भारत बीफ निर्यात में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश बना। दुर्भाग्य है कि आज चुनाव की खातिर वे गोरक्षक बनने का ड्रामा कर रहे हैं। भाजपा से सवाल पूछा जा रहा है कि मोदी सरकार ने गोवध पर पाबंदी लगाने वाला ‘राष्ट्रीय कानून’ क्यों नहीं बनाया? जो संविधान की आत्मा और प्रावधानों को जानते हैं, वे देश के संघीय ढांचे का सम्मान करते हैं। वे जानते हैं कि गोवध पर कानून बनाना राज्य सरकारों का दायित्व है, केंद्र उसमें दखल नहीं दे सकता, फिर भी मोदी सरकार ने पशु क्रूरता निरोधक कानून तो बनाया ही है, जिसकी आत्मा गोवध प्रतिबंध के आसपास ही बसती है। यदि कांग्रेस खुद को ‘बड़ा हिंदू’ मानती है, तो इसी कानून के तहत गोहत्या नहीं करने का संकल्प ले ले। बीफ की आड़ में खोखली राजनीति क्यों करती है? क्या किसी व्यक्ति या समुदाय के निजी खानपान पर चुनाव लड़े जाएंगे? उनसे देश और समाज को हासिल क्या होगा? कांग्रेस मुगालते में है कि बीफ के वीडियो से भाजपा-संघ के नेता बदनाम होंगे और कन्नड़ हिंदू एकजुट होकर उसे वोट दे देंगे। अचानक हिंदू-हिंदू बोल कर राम मंदिर निर्माण का अब समर्थन करने वालों की असलियत जनता जानती है। गुजरात के चुनाव में किसान, मजदूर, दलित, पिछड़े बहुत याद आते थे, लेकिन कर्नाटक में आकर सब कुछ भूल गए। बस हिंदू आतंकवाद और बीफ ही याद रहा है। यदि इन मुद्दों पर ही जनादेश दिया जाता है, तो हमारा मानना है कि भारत के लोकतंत्र के ‘बुरे दिन’ आने वाले हैं।


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