अखाड़े की मिट्टी से मेडल उपजाते जगदीश राव

By: Feb 21st, 2018 12:12 am

कुश्ती में देश का नाम सबसे ऊंचा रखने का जुनून पाले जगदीश पहलवान बिना सुविधाओं के अखाड़े में कुश्ती प्रतिभाओं को तराश रहे हैं। जिला के पंजगाई स्कूल में बतौर डीपीई पद पर कार्यरत जगदीश पहलवान सुबह-शाम चैहड़ अखाड़े में तथा ड्यूटी के समय दिन में स्कूली पहलवानों को कुश्ती की बारीकियां सिखा रहे हैं…

पिता को माटी के अखाड़े में उतरकर पहलवानी करते देख मन में पहलवान बनने के जुनून ने अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचा दिया। वर्ष 1991 में बिलासपुर की नलवाड़ी में कुश्ती विजेता हरियाणा के बलवान पहलवान को देखकर अखाड़े में उतरने का जोश भरा। जगदीश राव का जन्म सरकाघाट के गैहरा नामक स्थान पर पिता भीखम राम और माता ब्यासां देवी के घर हुआ। इनकी पत्नी का नाम शीला है। वर्तमान में वह घुमारवीं में रह रहे हैं। हरियाणा के बलवान उनके पसंदीदा पहलवान हैं। उच्च कोटि का पहलवान बनने के लिए 1992 में घर-परिवार छोड़कर घुमारवीं पहुंचे। घुमारवीं में नामी पहलवान पंजाब केसरी खिताब विजेता यूनिवर्सिटी कोच जगदीश पहलवान से कुश्ती की बारीकियां सीखीं। कड़ी मेहनत व लगन से प्रैक्टिस करके लंबे समय बाद एक मुकाम हासिल कर लिया। घुमारवीं में रहकर माटी के अखाड़े में बिना सरकारी व गैर-सरकारी मदद के निशुल्क कोचिंग देकर सुल्तान तैयार कर रहे हैं।  लेकिन, रेस्लिंग खिलाडि़यों को सरकार की ओर से विशेष सुविधाएं न मिलने की टीस आज भी मन में है। भारत केसरी व हिमाचल केसरी सहित अन्य कई देश के बड़े खिताब अपने नाम कर चुके जगदीश पहलवान इस अखाड़े में पिछले करीब दो दशकों से पहलवानों को बारीकियां सिखा रहे हैं। इनके सिखाए कई पहलवान अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमा चुके हैं, जिनमें संजीत कुमार इंटरनेशनल स्तर पर नाम कमा चुके हैं, जबकि संजय कुमार यादव व जॉनी चौधरी को परशुराम अवार्ड से सुशोभित किया जा चुका है। योगराज पहलवान हिमाचल कुमार सहित अन्य कई खिताब हासिल कर चुके हैं। जगदीश पहलवान के अब तक 72 चेले नेशनल कुश्ती प्रतियोगिताओं में हिमाचल प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, जिनमें दो गोल्ड मेडलिस्ट, 15 सिल्वर मेडल विजेता तथा 22 पहलवान कांस्य पदक हासिल कर चुके हैं। दिल्ली में आयोजित हुई पहली बार खेलो इंडिया में भी जगदीश के तीन पहलवानों ने भाग लेकर दमखम दिखाया। कुश्ती में देश का नाम सबसे ऊंचा रखने का जुनून पाले जगदीश पहलवान बिना सुविधाओं के अखाड़े में कुश्ती प्रतिभाओं को तराश रहे हैं। जिला के पंजगाई स्कूल में बतौर डीपीई पद पर कार्यरत जगदीश पहलवान सुबह-शाम चैहड़ अखाड़े में तथा ड्यूटी के समय दिन में स्कूली पहलवानों को कुश्ती की बारीकियां सिखा रहे हैं। चैहड़ अखाड़े में इस समय कुश्ती किंग जगदीश पहलवान से 25 लड़के पहलवानी के टिप्स ले रहे हैं। इसमें अहम बात यह है कि जगदीश पहलवान की कोचिंग के प्रदेश के ही नहीं, बल्कि बाहरी राज्यों के पहलवान भी मुरीद हैं। इनमें इस समय हरियाणा से दो पहलवान जगदीश से कुश्ती की बारीकियां सीख रहे हैं। यदि इस अखाड़े को चलाने के लिए सरकार की ओर से कोई मदद मिल जाए, तो यहां पर देश भर के राज्यों से पहलवान मल्ल युद्ध सीखने के लिए पहुंचेंगे। जिससे घुमारवीं के इस चैहड़ अखाड़े से निकलने वाले पहलवान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश व हिमाचल प्रदेश का नाम रोशन करेंगे।

सुविधाएं दो, पांच साल में दूंगा ओलंपियन मेडलिस्ट :

अंतरराष्ट्रीय पहलवान जगदीश राव ने दावा किया कि यदि सरकार प्रदेश में पहलवानों को सुविधाएं उपलब्ध करवाए, तो वह पांच सालों के भीतर ओलंपियन देंगे, वे भी मेडल जीतने वाला। उन्होंने कहा कि हिमाचल में कुश्ती के लिए सुविधाएं न होने के कारण यहां की प्रतिभाएं दम तोड़ रही हैं। बिना मैट के खिलाड़ी मिट्टी के अखाड़ों में प्रैक्टिस कर रहे हैं।

रेस्लिंग खिलाडि़यों के भी हों होस्टल :

कुश्ती किंग जगदीश पहलवान ने बताया कि दूसरे राज्यों व अन्य खेलों की तर्ज पर हिमाचल प्रदेश में रेस्लिंग खिलाडि़यों के होस्टल खोले जाएं। हिमाचल में कम से कम चार रेस्लिंग होस्टल होने चाहिए, जिनमें एक महिला पहलवानों के लिए भी खुलना चाहिए। हिमाचल प्रदेश का क्लाइमेंट जार्जिया देश की तरह है। यहां पर पहलवानों को प्रैक्टिस करने के लिए बेहतरीन वातावरण उपलब्ध है।

चेलों को मिले अवार्ड, गुरुजी गुमनाम :

कुश्ती में अंतरराष्ट्रीय पटल पर देश व प्रदेश का नाम चमकाने वाले जगदीश पहलवान के दो चेलों को परशुराम अवार्ड से सुशोभित किया जा चुका है, लेकिन इस मामले में गुरुजी अभी भी गुमनाम हैं। जिस पर जगदीश ने बताया कि अवार्ड भी जान-पहचान वालों को ही मिलते हैं। सरकार को इस ओर विशेष ध्यान देना चाहिए, जिससे हर पात्र खिलाड़ी को ये अवार्ड मिलें।

उपलब्धियां : 

ईरान के तेहरान में 1996 वर्ल्ड रेस्लिंग चैंपियनशिप में घुमारवीं के जगदीश पहलवान ने इंडिया का प्रतिनिधितत्व किया था, जिसमें उन्होंने ब्रांज मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया। 1994 से 1996 तक हिमाचल कुमार खिताब, 1998, 2002, 2006 व 2010 में हिमाचल केसरी खिताब, रुस्तम- ए- हिमाचल, सितारे-ए-हिंद, भारत कुमार व ऑल इंडिया फेडरेशन कप 1994 में गोल्ड तथा 1996 में इंटर यूनिवर्सिटी में गोल्ड मेडल सहित कई खिताब जगदीश राव जीत चुके हैं।

– राजकुमार सेन, घुमारवीं

जब रू-ब-रू हुए…

हिमाचल में कुश्ती को हरियाणा की तरह स्थान मिले…

आपके लिए अखाड़े की मिट्टी का अर्थ क्या है ?

मेरे लिए अखाड़े की मिट्टी सर्वोपरि है। मेरी रोजी-रोटी भी है।  अखाड़े की मिट्टी के कारण ही प्रदेश में मेरा नाम रोशन भी हुआ।

कुश्ती में हिमाचल की उपस्थिति कहां तक सफलता से निरूपित हुई ?

कुश्ती गांव-गांव में खेले जाने वाला खेल है। हिमाचल प्रदेश में 12 जिलों में से 11 जिलों में कुश्ती का वर्चस्व है।

कुश्ती की हिमाचली परंपरा में छिंज आयोजन को कैसे देखते हैं?

कुश्ती हिमाचल प्रदेश का एक बहुत पुराना खेल है, जिसको  हमारे धर्म के साथ भी जोड़ा गया है। इसको लोग पूजा करके शुरू करते हैं। लखदाता पीर से मनोकामना भी कुछ लोग मानते हैं।

मेलों, खास तौर पर नलवाड़-नलवाड़ी के माध्यम से कुश्ती को औपचारिक और वार्षिक खेल कैलेंडर से जोडऩा हो?

नलवाड़ी मेला में कुश्ती होना एक बहुत अच्छी परंपरा है। इसको गेम के साथ भी जोड़ना चाहिए। सिर्फ  मनोरंजन के लिए नहीं करना चाहिए। इसका स्वरूप इस प्रतियोगिता में भाग लेना होना चाहिए। इसमें हिमाचल केसरी, हिमाचल कुमार, बाल केसरी के टाइटल होना अति आवश्यक हैं, जिससे कि बच्चों को फायदा हो सके। नलवाड़ी मेला में हिमाचल कुमार जैसे टाइटल होते हैं। इनसे बच्चों में अपनी गेम को निखारने का मौका मिलता है  और हुनर दिखाने का मौका मिलता है।

हिमाचल से निकल रहे पहलवान क्यों और कहां तक उपेक्षित रहते हैं?

हिमाचल प्रदेश के पहलवानों में बहुत बड़ा टेलेंट है और हिमाचल प्रदेश का जो क्लाइमेट है वह भी बहुत अच्छा है। इसलिए हिमाचल प्रदेश के पहलवान नेशनल तथा इंटरनेशनल लेवल पर भी खेल चुके हैं और खेलने की क्षमता भी रखते हैं।

क्या सरकार की तरफ  से कुश्ती को इसका वांछित मिल पाया। होना क्या चाहिए। प्राथमिकताएं क्या हों?

सरकार को कुश्ती के अखाड़े बनाने चाहिएं। जिससे आने  वाली जो नई जनरेशन है, इस ओर आकर्षित होगी। नशे से दूर रहने के लिए अखाड़ों में बच्चे अभ्यास करेंगे। उससे  शरीर तो बनेगा ही, दूसरा वे नशों से भी दूर रहेंगे। स्वास्थ्य बनेगा और अपने प्रदेश और देश के लिए मेडल जीत करे लाएंगे।

हिमाचल में अखाड़ा परंपरा चैहड़ से बाहर नहीं जा पाई और अगर इसे संभव करना हो?

हिमाचल प्रदेश में अभी 3 अखाड़े और खोल दिए गए हैं, परंतु सरकार की तरफ  से कोई भी मदद न मिलने के कारण ज्यादा विकसित न कर सके। हिमाचल प्रदेश में कुश्ती को बढ़ावा देने के लिए कोई भी सरकार कोई भी कारपोरेट आगे नहीं आते हैं।

कुश्ती में सामाजिक भागीदारी को कैसे देखते हैं और आगे कैसे जा सकते हैं?

कुश्ती एक सामाजिक खेल है। इसको पूरा समाज बढ़ावा देता है । हर गांव-गांव में कुश्ती खेली जाती है क्योंकि यह हमारा पारंपरिक खेल है।

हरियाणा में कुश्ती का जैसे उत्थान हुआ, क्या उसके नजदीक हिमाचल पहुंच सकता है?

इस मामले में  अभी हम हरियाणा से सौ साल पीछे हैं।  हरियाणा के बराबर लाने के लिए हिमाचल सरकार को कई बड़े कदम उठाने पड़ेंगे। हरियाणा में खिलाडि़यों के लिए हर सुविधा है, तभी वहां मेडल आ रहे हैं।

खेलो इंडिया खेलो में अपनी भागीदारी से कितने संतुष्ट हैं?

खेलो इंडिया में बच्चों ने बहुत अच्छा परफार्म किया और हम मेडल भी जीत के लाए, परंतु बच्चों को सुविधा न मिलने से अधिक बच्चे मेडल से वंचित रह गए।

कुश्ती के माध्यम से आप अपने राज्य के प्रति क्या शपथ लेते हैं और इस सपने को पूरा कैसा करेंगे?

हिमाचल प्रदेश का नागरिक होने के नाते शपथ लेता हूं कि प्रदेश में जगह-जगह अखाड़ा खुलवाने की कोशिश करूंगा। जब तक जीवित हूं, तब तक  कुश्ती को बढ़ावा देता रहूंगा।

आपकी नजर में हिमाचल के श्रेष्ठ पहलवान कौन-कौन और रहे हैं?

मेरी नजर में हिमाचल प्रदेश के पहलवान रमेश डोगरा, संजय यादव, जगदीश पहलवान यूनिवर्सिटी कोच, बलवीर, जॉनी, चंद्रवीर, अजय यादव, अजय ठाकुर, प्रीति ठाकुर, रसिका, शालू व पंकज यादव हैं।

भविष्य के पथ पर ऐसी कौन से प्रतिभाएं पल रही हैं, जिन्हें आप किसी मुकाम पर देखते हैं?

भविष्य में अभी मेरे पास प्रीति ठाकुर, रसिका, पंकज यादव, अजय ठाकुर, कोमल, जतिन व निशांत चंदेल ऐसे खिलाड़ी हैं, जो आने वाले समय में हिमाचल प्रदेश का नाम रोशन करेंगे।

पहलवान की जिंदगी को आप क्या कहेंगे?

पहलवान की जिंदगी बहुत कठिन परिश्रम वाली जिंदगी होती है और बहुत चमकती हुई लाइफ भी होती है। हमेशा सुर्खियों में रहते हैं, अखबारों में छाए होते हैं, प्रदेश का नाम और देश का नाम रोशन करते हैं इसलिए पहलवान बहुत मेहनती इनसान होता है।


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