अपने शरीर को ब्रह्मरूप बनाना चाहिए

By: Feb 17th, 2018 12:05 am

आराधना में समर्थ न होने पर पूजा की सामग्री प्रदान करें और यदि वह भी न बन सके तो जहां (साधना के निमित्त पहले) पूजा होती हो, वहां श्रद्धापूर्वक बैठकर सामान्य पूजा का दर्शन करें। वस्तुतः यह महाविद्या ब्रह्मविद्या है। इसकी स्थूल, सूक्ष्म व परा के रूप में त्रिविध साधना (उपासना) होती है। पराशक्ति ही विज्ञानानंदघन ब्रह्म है। विज्ञानानंदघन ब्रह्म का तत्त्व अत्यंत सूक्ष्म एवं गुह्य होने के कारण शास्त्रों में उसे नाना प्रकार से समझाने की चेष्टा की गई है…

गतांक से आगे…

पात्रासादन में : वर्धनीकलश, सामान्यार्घ्य तथा विशेषार्घ्य की स्थापना एवं पात्रों में वह्नि, सूर्य, सोमकला आदि का पूजन होता है। तदनंतर शुद्धिपात्र, गुरुपात्र एवं आत्मपात्र की स्थापना और पूजा करके अंतर्याग किया जाता है। यहीं पर महर्षियों के मतानुसार अर्घ्याचन आदि के पात्र भी स्थापित होते हैं।

अर्चन में : आवाहन, चतुः षट्युपचार पूजा, चतुरायतन पूजा, लयांग पूजा, षडंगार्चन, नित्यायजन एवं गुरुमंडलार्चन के बाद आवरणार्चन (उपदेशानुसार सृष्टयादि क्रम से) करते हैं। तदनंतर पंचपंचिका पूजा, षड्दर्शनविद्या, षडाधार, आम्नाय समष्टि, दंडनाथा, मंत्रिणी एवं ललितानामार्चनपूर्वक अर्चन संपन्न होता है। यही अवकाशानुसार सहस्रनामार्चनादि भी किए जाते हैं। महानैवेद्य, आरती, पुष्पांजलि, प्रदक्षिणा, कामकलाध्यान, बलिकान, जप, पुष्पांजलिस्तोत्र, कल्याणवृष्टिस्तोत्र, सर्वसिद्धिकृतस्तोत्र और क्षमाप्रार्थना, गुरुस्तोत्रादि का पाठ करके सुवासिनीपूजन, तत्वशोधन, पूजासमर्पण देवतोद्वासन शांतिस्तव पाठ के साथ अर्चनविधि पूर्ण होती है। जो साधक इतने विस्तार से पूजादि नहीं कर पाएं, उनके निमित्त आचार्यों ने अनेक प्रकार की लघु पूजा की विधियां भी बनाई हैं, जिनमें कलश व शंख (सामान्य अर्घ्य के पात्र) स्थापन करके निम्नलिखित पद्धति से अर्चन करना चाहिए ः

संक्षिप्त पूजा विधान

आचम्य प्राणानायम्य देशकालौ च संकीर्त्य। श्री गुरु महागणपितं भगवतीं महात्रिपुर सुंदरीं च प्रणम्य पूज्येत।

ध्यानम

बालार्कारुण-तेजसं त्रिनयनां रक्ताम्बरोल्लासिनीं

नानालंकृतिराजमानवपुषं बालोडुराड्-शेखराम।

हस्तैरिक्षुधनुः सृणीसुमशरान पाशं मुदा बिभ्रतीं,

श्रीचक्रस्थितसुंदरीं त्रिजगतामाधारभूतां भजे।।

इसके पश्चात कुछ मंत्र हैं। मंत्रों के पश्चात नैवेद्यादि विधि करके नित्यकृत्य पूर्ण कर लें ः

आराधनाअसमर्थश्चेद् दधादर्चन साधनम्।

यो दातुं नैव शक्नोति कुर्यादर्चन दर्शनम्।।

अर्थात आराधना में समर्थ न होने पर पूजा की सामग्री प्रदान करें और यदि वह भी न बन सके तो जहां (साधना के निमित्त पहले) पूजा होती हो, वहां श्रद्धापूर्वक बैठकर सामान्य पूजा का दर्शन करें। वस्तुतः यह महाविद्या ब्रह्मविद्या है। इसकी स्थूल, सूक्ष्म व परा के रूप में त्रिविध साधना (उपासना) होती है। पराशक्ति ही विज्ञानानंदघन ब्रह्म है। विज्ञानानंदघन ब्रह्म का तत्व अत्यंत सूक्ष्म एवं गुह्य होने के कारण शास्त्रों में उसे नाना प्रकार से समझाने की चेष्टा की गई है। यह वास्तविक तथ्य है कि किसी भी कार्य को करने के लिए व्यक्ति में शक्ति का होना आवश्यक है और सबको शक्ति प्रदान करने वाली पराशक्ति ही उसकी अधिष्ठात्री देवता है। वही राजराजेश्वरी, श्रीमहादेवी, ललिता, त्रिपुरसुंदरी, षोडशी, श्रीविद्या आदि नामों से विख्यात है। वही परब्रह्मस्वरूपिणी है। इसलिए उसकी यथाशक्ति उपासना करते हुए ब्रह्म-सम्मिलन के लिए अपने शरीर को नित्य पूजा, नैमित्तिक पूजा तथा जप आदि के जरिए ब्रह्मरूप बनाना चाहिए। इसी से मानव जीवन की सार्थकता होती है और लक्ष्य तक पहुंचने की क्षमता प्राप्त होती है।


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