अलेक्सांदर का जीवन रहस्य से कम नहीं

By: Feb 3rd, 2018 12:05 am

उनके आसपास के लोग यह बात समझ नहीं पा रहे थे कि अलेक्सांदर अपनी तीसरी बेटी के जन्म के प्रति इतने उदासीन क्यों हैं। लेकिन सम्राट को यह पता था कि वह बच्चा उनका नहीं है…

-गतांक से आगे…

रूस की सर्दियों में रहने उपयुक्त एकमात्र स्थान पर अपना कब्जा गंवा देने के बाद नेपोलियन की सेना ने पीछे हटना शुरू कर दिया और लगभग पूरी तरह से पछाड़ दी गई। दुश्मन को अपने देश से पछाड़ देने के बाद रूसी सेना ने संपूर्ण यूरोप को फ्रांसीसी सम्राट के वर्चस्व से मुक्त कराया। इस युद्ध ने अलेक्सांदर की  जिंदगी बदल डाली। उन्होंने नेपोलियन पर जीत को अपने लिए भगवान का संदेश माना और शाही मुकुट उनके लिए अब बोझ बन गया। अलेक्सांदर अब अक्सर गद्दी छोड़ कर निजी जीवन व्यतीत करने की इच्छा व्यक्त करने लगे। उन्हें अब मानसिक शांति केवल धार्मिक कार्यों से ही मिलती थी। सम्राट अपने निजी जीवन में भी खुश नहीं थे। दो बेटियों की मृत्यु प्रारंभिक अवस्था में ही हो गई थी और उनकी पत्नी एलिजावेता अलेक्सेव्ना को एक घुड़सवार सेना अधिकारी अलेकसेई अखोत्निकव से प्यार हो गया था। उनके आसपास के लोग यह बात समझ नहीं पा रहे थे कि अलेक्सांदर अपनी तीसरी बेटी के जन्म के प्रति इतने उदासीन क्यों हैं। लेकिन सम्राट को यह पता था कि वह बच्चा उनका नहीं है। यह कोई सोच भी नहीं सकता है कि क्या हुआ होता अगर यह बच्चा लड़का, यानी सिंहासन का वारिस पैदा हुआ होता। बच्ची को महान सम्राट ने अंततः अपना लिया। लेकिन वह केवल डेढ़ साल ही जीवित रही और जल्द ही अखोत्निकव की भी मृत्यु तपेदिक की बीमारी से हो गई। बाद के वर्षों में अलेक्सांदर और उनकी पत्नी के संबंध अटूट रहे। अलेक्सांदर ने सब कुछ भुला कर पत्नी को माफ कर दिया था। सम्राट के जीवन का अंतिम वर्ष उनकी जीवन रूपी पुस्तक का सबसे रहस्यमय पृष्ठ है। इस वर्ष के साथ कई कहानियां जुड़ी हुई हैं। सन 1825 की शरद ऋतु में पत्नी के खराब स्वास्थ्य ने अलेक्सांदर को दक्षिण की यात्रा पर जाने को मजबूर कर दिया। अपनी पत्नी के साथ सम्राट क्रीमिया की यात्रा पर गए। वापसी के रास्ते में वह गंभीर रूप से बीमार हालत में तगानरोग शहर पहुंचे, लेकिन डाक्टरों की मदद लेने से उन्होंने इनकार कर दिया। सन् 1825 में नवंबर के महीने में अलेक्सांदर की मृत्यु हो गई। सर्दी के दिनों में तगानरोग से सेंट पीटर्सबर्ग तक का रास्ता पार करने में तीन महीने लग गए, शव को शाही कब्रगाह में मृत्यु के तीन महीनों बाद दफनाया गया। इसके एक महीने बाद एलिजावेता अलेक्सेव्ना की मृत्यु हो गई। ताबूत, जिसमें सम्राट के पार्थिव शरीर को रखा गया था, बंद था। अतः लोग सम्राट से विदा होते समय उनका चेहरा नहीं देख पाए थे। इसके बाद शुरू हुआ अटकलबाजियों और किंवदंतियों का एक सिलसिला। कुछ का कहना था कि सम्राट की मृत्यु नहीं हुई है, बल्कि वह मठ चले गए हैं। कुछ लोग साइबेरिया में रह रहे एक रहस्यमयी बूढ़े फ्योदर की चर्चा करते थे। वह एक धर्मपरायण बूढ़ा आदमी तथा उत्तम शिष्टाचार का पात्र था। वह उत्कृष्ट फ्रांसीसी भाषा बोलता था और लोगों पर एक परिष्कृत रईस की छाप छोड़ता था। हो सकता है कि वह अलेक्सांदर प्रथम थे। क्या उन्होंने अपनी मौत का स्वांग रचकर राजगद्दी त्यागी थी, ताकि बाकी जीवन भगवान की सेवा में समर्पित किया जा सके? किसी को इसका यकीनन पता नहीं है।


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