आनंदित होकर काम करें, आनंद पाने के लिए नहीं

By: Feb 24th, 2018 12:07 am

मैं आपको एक बात समझाना चाहता हूं। आप खुद को जितना अकेला समझेंगे, खुद को जितना निराश महसूस करेंगे, उतना ही आपको लोगों के साथ की जरूरत महसूस होगी। लेकिन आप जितना खुश होंगे, आप भीतर से जितना उल्लासित और उत्साहित महसूस करेंगे, आपको लोगों के साथ की जरूरत उतनी ही कम महसूस होगी। इसलिए जब आप खुद के साथ हैं और तब आप अकेलापन महसूस करते हैं तो इसका सीधा सा मतलब है कि आप एक खराब संगत में हैं। अगर आप एक अच्छे इनसान की संगत में हैं तो आप अकेलापन कैसे महसूस कर सकते हैं? तब तो आपको बहुत अच्छा और विशिष्ट महसूस करना चाहिए। आपके उल्लास को पैदा नहीं किया जा सकता। अगर यह ओढ़ा हुआ या कृत्रिम रूप से बनाया हुआ उल्लास है तो बेशक आपको लोगों के साथ की जरूरत महसूस हो सकती है। अकसर लोग उल्लास या आनंद का मतलब समझते हैं-संगीत सुनना, नाचना और झूमना। आनंद के लिए ये सब करना बिल्कुल जरूरी नहीं है। आप चुपचाप एक जगह शांति से बैठकर भी पूरी तरह से आनंद और उल्लास को अपने भीतर महसूस कर सकते हैं। इस एक अंतर को समझना होगा कि अगर आप अपने स्वभाव से ही आनंदित रहने वाले इनसान हैं, या आपका जीवन आनंदमय हो गया है तो आपका काम बस उसका एक परिणाम भर होता है। लेकिन कई बार आपका जीवन उल्लासपूर्ण नहीं होता, बल्कि आप कुछ गतिविधियों की मदद से इसे उल्लासपूर्ण बनाने की कोशिश कर रहे होते हैं। असलियत तो यह है कि जब पौधे अपने भीतर ऊर्जा या उल्लास को संभाल नहीं पाते तो वह फूलों के रूप में उसे व्यक्त कर देते हैं। जीवन भी इसी तरह होना चाहिए। इन दोनों स्थितियों में एक बड़ा फर्क है। एक में आप नृत्य करके आनंद की स्थिति में पहुंचते हैं, जबकि दूसरी में आप आनंद से भरे होते हैं और उस आनंद को संभाल न पाने के कारण आप नाचने लगते हैं। ये दोनों चीजें अलग-अलग हैं।

बनावटी खुशी से जीवन मुश्किल

इस दुनिया में सबसे मुश्किल जीवन वह है, जो खुश न होने पर भी लगातार यह दिखाने की कोशिश करता है कि वह बेहद खुश है। इस तरह का दिखावा करने में बहुत बड़ी मात्रा में जीवन ऊर्जा लगती है। क्या आपने कभी इस पर गौर किया है? दुनिया में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो वाकई खुश होने पर तो खुश दिखते हैं, पर जब वे दुखी होते हैं तो दुखी दिखाई देते हैं। ऐसे लोग असलियत में जैसे हैं, वैसे ही दिखाई देते हैं। पूरी दुनिया उनकी इस जीवन-शैली के बारे में जानती है। जबकि कुछ लोग पूरे समय बनावटी हंसी और खुशी बनाए रखते हैं जिसमें उन्हें जबरदस्त ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है।

बार-बार अपनी दिशा न बदलें

लोग अकसर मुझसे सवाल करते हैं कि सद्गुरु हमें किस तरह का रवैया और अपनी भावनाएं रखनी चाहिए। इस पर मेरा जवाब होता है कि ‘हर भाव, हर रवैया अच्छा है।’ अगर आप गुस्सा करना चाहते हैं तो चौबीस घंटे बिना रुके लगातार गुस्सा कीजिए। आपको खुद-ब-खुद आत्मानुभूति हो जाएगी। चीजें बस ऐसे ही घटित होती हैं। इस सृष्टि का कण-कण, हर एक कोशिका, हर एक परमाणु, आपके लिए अस्तित्व से परे जाने का द्वार बन सकते हैं, अगर आप लगातार एक दिशा में चलें, एक भाव में रहें। लेकिन दिक्कत यह है कि लोग लगातार अपनी दिशा और दशा बदलते रहते हैं। जहां भी जाना है, उस दिशा में नियमित रूप से लगातार बढि़ए। आप रोज-रोज अपनी दिशा मत बदलिए।                                                                        -सद्गुरु जग्गी वासुदेव


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