आर्थिक आतंकवाद

By: Feb 20th, 2018 12:05 am

विवेक गुलेरिया, ठाकुरद्वारा, पालमपुर

देश पर हम कई बाह्य हमले देख चुके हैं और ऐसे हमलावरों को, जो राष्ट्र पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हमला कर कमजोर करने का प्रयास करते हैं, आतंकी का नाम दिया जाता है। ऐसे ही कुछ हमलावर आज अर्थतंत्र में व्याप्त खामियों का फायदा उठाकर देश को आर्थिक तौर पर कमजोर कर रहे हैं। इन लोगों की सूची में विजय माल्या, ललित मोदी जैसे नाम तो पहले से थे ही, अब एक नया नाम नीरव मोदी का जुड़ गया है। पेशे से हीरों के व्यापारी नीरव मोदी ने संपत्ति से अधिक कर्ज बैंक से प्राप्त किया और फिर देश छोड़ विदेश जाकर बैठ गया। ऐसे मामलों को देश के अर्थतंत्र पर हमला माना जाना चाहिए और ऐसे लोगों को आर्थिक आतंकी घोषित कर दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान किया जाना चाहिए। जितनी महत्त्वपूर्ण देश की सीमाओं की सुरक्षा है, उतनी ही महत्त्वपूर्ण देश की अर्थव्यवस्था की सुरक्षा भी है। भारत जैसा राष्ट्र जिसकी सीमाएं हमेशा तनावपूर्ण बनी रहती हों और उसे हर वर्ष सीमाओं की सुरक्षा पर करोड़ों खर्च करना पड़ता हो, इस तरह के मामले ऐसे राष्ट्र पर दोहरा हमला हैं। पहले भी देश विजय माल्या और ललित मोदी जैसे प्रकरण देख चुका है। बावजूद इसके ऐसे मामलों पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया और इसी चूक का फायदा उठाकर नीरव मोदी भी सरकार की पकड़ से बाहर है। और हाल ही में आई एक रिपोर्ट का दावा है कि पिछले नौ-दस वर्षों में छोटे-बड़े ऐसे मामलों से देश को अरबों रुपए का चूना लगा है। अब वक्त रहते सरकार द्वारा सभी बैंकों को प्राथमिकता के आधार पर बड़े कर्जधारकों के कर्ज मामलों की पुनर्समीक्षा के आदेश दिए जाने चाहिएं और जब तक यह प्रक्रिया पूरी न हो जाए, ऐसे कर्जधारकों के विदेश जाने पर प्रतिबंध लगना चाहिए।

 


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