इस बार पर्यटन वाले मुख्यमंत्री

By: Feb 19th, 2018 12:05 am

हिमाचल में राजनीति अपनी जगह बटोरने के लिए विकास के मायने समझती है, इसलिए सत्ता के प्रयास हमेशा उल्लेखनीय रहे हैं। एक दौर वह भी था जब विकास के मायने राज्य की भौगोलिक शक्ल को नए आयाम तक ले गए और पंजाब के पर्वतीय क्षेत्र इसमें समाहित हो गए। स्व.वाईएस परमार के साथ विकास-विस्तार का यह सियासी ग्राफ जुड़ा, तो तरक्की की वजह ही क्षेत्रीय पहचान बन गई। इसी मानचित्र पर वीरभद्र सिंह ने संस्थागत विकास को अहमियत दी, तो मात्रात्मक दृष्टि से शिक्षा-चिकित्सा संस्थानों के साथ-साथ विभागीय व प्रशासनिक विस्तार भी हुआ। इस दौर को क्षेत्रवाद के नारों और विरोध के बीच क्षेत्रीय महत्त्वाकांक्षा को संबोधित करने के दायरे में देखना होगा, क्योंकि शिमला केंद्रित प्रशासन का विकेंद्रीकरण करते हुए कई साहसिक कदम उठाए गए। विकास के मुहाने आगे बढ़े तो शांता कुमार पानी वाले और प्रेम कुमार धूमल सड़क वाले मुख्यमंत्री बन गए। ऐसे में कमोबेश हिमाचल की हर सरकार के नजरिए में विकास चिन्हित हुआ और अब यही पड़ताल जयराम ठाकुर सरकार की भी होगी। विकास की जिस परिपाटी को मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर छूना चाहते हैं, उसके आरंभिक संकेत पर्यटन से मेल खाते हैं और यह स्वाभाविक लक्षण माने जाएंगे। कनेक्टिविटी के संदर्भों में जुड़ रही नई सड़क परियोजनाएं, उड़ान तथा नए हेलिपैड बनाने का संकल्प लेकर सरकार सबसे अधिक लाभ पर्यटन को ही पहुंचा पाएगी। यह संयोग हो सकता है कि जिस तरह जयराम सरकार को अपना वजूद कायम करना है, उसी तरह पर्यटन के क्षेत्र में हिमाचल को बहुत कुछ साबित करना है। यानी पर्यटन से संभावनाओं का प्रतिफल इस तरह मिल सकता है कि राज्य की नई क्षमता सामने आएगी। कमोबेश इससे पूर्व भी हर मुख्यमंत्री ने पर्यटन को छुआ जरूर, लेकिन प्रदेश पर्यटन राज्य नहीं बना। या तो जम्मू-कश्मीर की बेचैनी और अस्थिरता हिमाचल में पर्यटन खींच लाई या देव संस्कृति के रास्ते सैलानी बढ़ते गए। ऐसे में पर्यटन एक सराय की तरह रहा और इसीलिए होटलों के निर्माण तक ही विकास हुआ। खजियार को मिनी स्विट्जरलैंड जिस खूबसूरती से कहा गया, उससे कहीं विपरीत इसकी दुदर्शा हो गई। मनाली यूं तो हिमाचल का सबसे बड़ा टूरिस्ट डेस्टीनेशन है, लेकिन अव्यवस्था के आलम में अपना नूर खो रहा है। मकलोडगंज-डलहौजी की निगाहों में कंकरीट भरकर हम पर्यटन की  अमानत में अंधेरा कर चुके हैं। धार्मिक बस्तियों को अभी तक पर्यटन नगरियों की मान्यता नहीं मिली, तो मंदिरों की कमाई अन्यत्र जाया की जा  रही है। हमारे धरोहर, विरासत व ऐतिहासिक चिन्ह सिमट रहे हैं, तो चंद पर्यटक स्थलों पर निरंतर बोझ बढ़ रहा है। पर्यटक को शुमारी में देखकर हिमाचल केवल आंकड़ों को देख रहा है, जबकि इस क्षेत्र का प्रबंधन और चुनौतियां समझनी होंगी। पर्यटन न तो एक विभाग की मिलकीयत है और न ही वर्तमान व्यवस्था से प्रफुल्लित है। पर्यटन का ताल्लुक हर गांव की गली से शहर के चौक तक है, तो इसे स्थानीय निकायों और विधायक प्राथमिकताओं से जोड़ना होगा। यह कलाकारों का मंच है, तो कलाओं का संगम। पर्यटन अब किसी बाजार में खुद को ढूंढता है, तो मनोरंजन के साधनों में लोक कलाओं का अभिवंदन है। हिमाचल में पर्यटन को सिड्डू की महक रोक सकती है, तो हर पकवान का स्थानीय फ्लेवर इसका हक है। इसलिए इसे शिमला माल के किसी मशहूर रेस्तरां से कहीं अधिक राह चलते ढाबे पर हिमाचली स्वाद की परख है। क्या हमने पर्यटन के ये सभी फैक्टर पार्टनर बनाए। क्या हम स्वरोजगार का नाम पर्यटन रोजगार नहीं कर सकते। कोशिश करें तो हर सड़क पर पर्यटन की मंजिलें स्थापित होंगी और खड्डें भी मनोरंजन की नाव चलाएंगी। पर्यटक को होटलों की तादाद नहीं, प्रकृति का वरदान चाहिए। माहौल और आराम चाहिए। इसे ट्रैकिंग को चोटियां और आकाश में बिचरने को छतरियां चाहिएं। क्या हम पैराग्लाइडिंग के जश्न को केवल बिलिंग के आसरे छोड़ दें या पूरे हिमाचल में इसका एक विस्तृत मानचित्र बना दें। क्या शिमला के एकमात्र माल रोड पर सभी पर्यटकों को चला दें या हर पर्यटक स्थल पर ऐसे अनेक माल रोड बना दें। एक गेयटी थियेटर के मार्फत सैलानी को कितना रोक पांएगे, जबकि हर शहर और कस्बे में कला मंच स्थापित करके पर्यटन का सिलसिला आगे बढ़ा पाएंगे। हिमाचल का कमोबेश हर विभाग अगर अपने मंतव्य में पर्यटन शब्द जोड़ ले, तो पर्यटन प्रदेश बनाने का रोड मैप बन जाएगा। बिना अतिरिक्त संसाधन जुटाए व निजी क्षेत्र को पार्टनर बनाकर, यह राज्य पर्यटन की क्षमता में अपना स्वरूप बदल सकता है। मुख्यमंत्री ने अपनी पहली सार्वजनिक घोषणा में जंजैहली के पर्यटन मानचित्र को जो आवाज दी, उसकी व्यापकता में जब राज्य के दर्शन होंगे तो बदलाव आएगा। हिमाचल ही एकमात्र राज्य है, जो पर्यटन की हर ख्वाहिश का मजमून सहेजे है और सरकार अपने दस्तखत कर दे तो पर्यटन राज्य की तासीर में विकास की हर संभव क्षमता संपूण होगी। इसके लिए जयराम ठाकुर को पर्यटन वाले मुख्यमंत्री बनना ही पड़ेगा।


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