उड़ना है तो बोझ कम कीजिए

By: Feb 17th, 2018 12:07 am

जैसे ही हम ‘आध्यात्मिक’ शब्द बोलते हैं, लोग डिटैचमेंट यानी अनासक्ति की बात करने लगते हैं। जैसे ही आप किसी भी तरह के संबंध रखने की बात करते हैं, लोग उसे अटैचमेंट या लगाव से जोड़ने लगते हैं। ‘आप लोगों का लगाव मुझसे नहीं है, यही तो समस्या है।’ आखिर यह अटैचमेंट और डिटैचमेंट है क्या? जन्म अटैचमेंट के साथ होता है। अपनी मां के शरीर से अटैचमेंट के बिना आपका जन्म ही नहीं होता। मृत्यु भी एक तरह का अटैचमेंट ही है, लेकिन यह कहीं ज्यादा इनक्लूसिव है, इसमें आप इस धरती के साथ एक हो जाते हैं। लेकिन चूंकि यह एक बिना भेदभाव भरा लगाव है, इसलिए इसका कोई नकारात्मक असर नहीं होता। अपने शरीर व मन को अलग और खास समझने से अटैचमेंट पैदा होता है। चूंकि आपको लगता है कि आपके शरीर व मन एक्सक्लूसिव हैं, इसलिए आप जाल में फंस जाते हैं। यहां तक कि कई बार तो आपको मरने के समय तक एहसास नहीं हो पाता कि आपने अपने लिए एक कैदखाना तैयार कर रखा था, जहां कोई भीतर जा ही नहीं सकता था। चूंकि आप फंस चुके होते हैं, इसलिए आप उस पिंजरे के सींखचों से अपने हाथ निकाल कर किसी को थामना चाहते हैं, ताकि आपके भीतर किसी से जुड़ाव का एहसास बना रहे। आप उस बदकिस्मत इनसान को पकड़ लेते हैं, जो आपके पास से होकर गुजरा, और फिर आपने उसे जाने नहीं दिया। इसे ही प्रेम संबंध कहते हैं। और फिर आप इस एक इनसान के साथ गहराई से जुड़ जाते हैं, क्योंकि आपने खुद को बाकी पूरी दुनिया से काट रखा है।

स्वतंत्र अस्तित्व का भ्रम न पालें

दरअसल खुद को बहुत अधिक महत्त्व देने का साइड इफेक्ट है अटैचमेंट। अगर आप साइड इफेक्ट्स नहीं चाहते हैं, तो आपको गोली निगलनी ही नहीं चाहिए। जब तक आप खुद को महत्त्व देना बंद नहीं करते, तब तक आपको आध्यात्मिक प्रक्रिया कहीं नहीं पहुंचा सकती। सवा सात अरब लोगों के होते हुए सिर्फ एक इनसान के न होने से आप खुद को भयानक तरीके से अकेला महसूस करने लगते हैं। किसी से जुड़ाव की जरूरत की वजह यह गलतफहमी है कि आप अपने आप में स्वतंत्र अस्तित्व हैं। ज्यादातर लोग अपने होश में तब आते हैं, जब जिंदगी कहीं न कहीं उन्हें ठोकर मारती है। कितने दुख की बात है। क्या होना यह नहीं चाहिए कि जो आपके लिए सबसे बेहतर है, वही आपकी प्राथमिकता हो? यह चीज आपके जीवन में किसी विनाश, त्रासदी या बीमारी के चलते नहीं होनी चाहिए। जब सारी चीजें अच्छी चल रही हों तो यही समय अपने जीवन की परम संभावनाओं को देखने का होता है। उस समय का इंतजार मत कीजिए कि जीवन आपको ऐसे ठोकर मारे, जहां से आपका उबरना भी संभव न हो।

लोगों को समाज बनाता है

एक बार की बात है कि न्यूयॉर्क की एक सड़क पर एक महिला चली जा रही थी। तभी एक नौजवान उसके पास से गुजरा, जो उसका पर्स छीन कर भाग गया। तभी एक दूसरे नौजवान ने उस भागने वाले का पीछा किया और कुछ मिनटों बाद वह वापस लौटा तो उसके हाथ में महिला का पर्स था। उसने महिला को उसका पर्स वापस कर दिया। आभार से भरी उस महिला ने पर्स खोला और उसके भीतर झांका। पर्स में एक पचास डॉलर, दो बीस-बीस डॉलर और एक दस डॉलर का नोट था। उसने तहे दिल से उसका शुक्रिया अदा किया और बोली, ‘लेकिन मेरे पर्स में तो सौ डॉलर का एक नोट था। अब इसमें पचास, बीस-बीस और दस के नोट कैसे हैं? ऐसा कैसे हुआ?’ नौजवान ने जवाब दिया, ‘पिछली बार जब मैंने एक महिला को पर्स वापस किया था तो उसके पास छुट्टे नहीं थे।’ हम जानते हैं कि आपको कैसे पकड़ा जाए। बात यहां आपकी अच्छाई की नहीं है। बात यहां आपकी उस जिदंगी की है, जैसी उसे होनी चाहिए। जो चीज इतनी सहज व स्वाभाविक होनी चाहिए, वह इतने बेतुके तरीके से मुश्किल कैसे हो गई? ज्यादातर लोगों को यह समाज ही बनाता है। हम लोग अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए, अपनी सुविधा के लिए व कुछ चीजों को पाने के लिए परिवार का निर्माण करते हैं, समाज व देश बनाते हैं। लेकिन इसमें होता यह है कि इस सृष्टि के स्रोत द्वारा आपका निर्माण होने की बजाय समाज आपका निर्माण करने लगता है। यह समाज सभी तरह के लोगों से मिलकर बना है जिनमें ज्यादातर लोगों को यह पता ही नहीं होता कि वे अपनी जिंदगी के साथ क्या कर रहे हैं। इनसान में एक अंतर्निहित समझदारी होती है, जो उसे स्वाभाविक तौर पर हमारी परम प्रकृति की ओर ले जाती है। लोगों को लगता है कि कुछ लोग आध्यात्मिक हैं और बाकी दूसरे लोग आध्यात्मिक नहीं हैं। आध्यात्मिक होने का मतलब है कि चेतन रूप से अपनी परिपूर्णता की ओर आगे बढ़ना। अब इन तथाकथित ‘दूसरे लोगों’ पर नजर डालते हैं। अगर कोई पैसा, दौलत, आनंद, प्रेम, ज्ञान, मादक पदार्थ, शराब को चाहता है तो एक तरह से वे लोग भी खुद को पूरा करने की कोशिश में होते हैं। उन्हें लगता है कि ये चीजें उन्हें पूर्णता देंगी। यहां आध्यात्मिकता अपने रास्ते से भटकी हुई है। जब आप रास्ते से भटक जाते हैं, फिर आपके मंजिल पर पहुंचने की संभावना बेहद क्षीण हो जाती है। अगर आप सफल होना चाहते हैं तो आपको सचेतन रूप से सही दिशा में आगे बढ़ना होगा। आप जो एक्स्ट्रा बोझ लेकर चल रहे हैं, वह आपको अपनी पूरी ताकत से उड़ने की इजाजत नहीं देता। आपकी पीठ पर जो बोझ है, वह आपके अपने अभिमान का, अहंकार का और महत्त्व के भाव का है।

-सद्गुरु जग्गी वासुदेव


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