उम्मीदों को उंडेलती फरियाद

By: Feb 15th, 2018 12:05 am

हर बार हिमाचल की राहों पर वार्षिक योजना का सफर कुछ मील चलने का वादा करता है और फिर हम किस्मत के संदूक से कुछ समारोह छीन लेते हैं। इस बार भी 6300 करोड़ के बंटवारे में माहौल की चवन्नियां-अठन्नियां नाचेंगी और फिर विधायक अपनी प्राथमिकताओं तक पहुंच कर भी सत्ता और विपक्ष में बंट जाएंगे। ठीक वैसे ही जैसे नई सरकार के नए परिवहन मंत्री ने इलेक्ट्रिक टैक्सियों के पुनः रूट बांटते हुए सारे प्रदेश की प्राथमिकताएं छीन लीं या कल कोई अन्य मंत्री अपने विभाग के हिसाब में नया फलादेश लिख देगा। यूं तो विधायक प्राथमिकताओं में सरपट दौड़ती जमीन दिखाई देती है और प्रगति के सूचक नागरिक अभिलाषा में वितरित हो जाते हैं, लेकिन उम्मीदों को उंडेलना वाकई मुश्किल होता जा रहा है। काफी हद तक विधायक समझते हैं कि किसी चिकित्सा संस्थान की ऊंची होती इमारतें भी नाकाफी हैं, अगर भीतर डाक्टर-नर्सें न होंगी। चंबा मेडिकल कालेज को एमसीआई के सामने पेश करना अगर चिकित्सा विभाग की सीढ़ी है, तो इसके संरक्षण के बदले अनाथ हुए कांगड़ा के अस्पतालों का दर्द क्या होगा। धर्मशाला-पालमपुर के अस्पतालों के डाक्टर चंबा में मेडिकल कालेज को बचा कर भी चिकित्सा के दायित्व में मरीजों से कब तक अन्याय करेंगे और यह पीड़ा कई विधायकों ने सरकार के सामने रखी है। आश्चर्य यह कि विकास और प्रगति के मायने केवल इमारतें, कार्यालय, स्कूल-कालेज या संस्थान हो गए हैं। कमोबेश हर विधायक की प्राथमिकता में ऐसा ही कुछ एजेंडा रहा, मगर जब कभी रमेश धवाला सरीखा विधायक जल संरक्षण की बात करता है, तो भविष्य की पैरवी हो जाती है। दूसरी ओर समझना तो यह होगा कि हिमाचल का भविष्य महज स्कूल-कालेज हैं या औपचारिकता से हटकर शिक्षा का उत्थान किया जाए। सामान्य शिक्षा से हटकर अगर शिमला ग्रामीण के विधायक विक्रमादित्य सिंह ललित कला महाविद्यालय के सुदृढ़ीकरण तथा बहु-उद्देश्यीय महाविद्यालय के निर्माण की चर्चा कर रहे हैं, तो यहां पाठ्यक्रम के मार्फत भविष्य की खोज हो सकती है। क्यों नहीं हमारे विधायकों ने कालेज ऑफ डिफेंस स्टडीज या खेल महाविद्यालय की स्थापना को अपना मकसद माना। हमारा मानना है कि पौंग जलाशय के किनारे पर नगरोटा सूरियां जैसे कालेज को अगर फिशरी स्टडीज व वाटर स्पोर्ट्स का प्रशिक्षण केंद्र बनाया जाए, तो शिक्षा व स्वरोजगार के मायने बदल जाएंगे। बेशक चिंतपूर्णी के विधायक बलबीर सिंह ने मेगा फूड पार्क तथा फिशरी फूड पार्क की स्थापना की इच्छा जाहिर करके युवा भविष्य को खिलखिलाने का अवसर ढूंढा, लेकिन बाकी विधायक भी तो कहीं आईटी, कहीं जैविक पार्क मांग सकते थे। कहीं मनोरंजन पार्क, तो कहीं साइंस सिटी मांग सकते थे। किसी विधायक ने न तो कृषि और न ही बागबानी विश्वविद्यालय से शोध का हिसाब पूछा। किसी ने भी बंदरों, आवारा पशुओं और वन्य प्राणियों से निजात का रास्ता न पूछा। यह दीगर है कि इस बार पचास फीसदी विधायकों ने पर्यटन की खोज में विधानसभा क्षेत्रों को नए मुकाम तक ले जाने की कसम खाई, तो पार्किंग के मसले पर सारा हिमाचल विकल्प खोज रहा है। सरकार के सामने पार्किंग के अलावा आधुनिक बस स्टैंड बनाने की चुनौती अगर रखी गई, तो आगामी बजट में इस दिशा को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। विधायकों के बीच खनन की पट्टियों में अगर कहीं सामग्री खोजी गई, तो नूरपुर के विधायक राकेश पठानिया ने पंजाब की ओर तस्करी से पहुंचाई जा रही रेत-बजरी पर सख्त निगाह से पहरेदारी की ताल ठोंक दी। खड्डों के तटीकरण, चैक डैम, रेल ओवर ब्रिज, सिंचाई बंदोबस्त, सुरंग, बाइपास निर्माण, कोल्ड स्टोर व सब्जी मंडियों की स्थापना पर विधायकों की प्राथमिकताएं संजीदा दिखाई दीं, लेकिन किसी ने पुस्तकालयों की वर्तमान स्थिति पर नहीं सोचा, जहां करियर की तलाश में रोजाना बेरोजगारों का जमघट लगा रहता है। जहां किसी अलमारी में महात्मा गांधी या विवेकानंद बंद हैं, उस ज्ञान की भूमिका में लाइब्रेरी को कौन बचाएगा। किसी विधायक ने गेयटी की तर्ज पर सभागार नहीं मांगा, तो फिर हमारा लोक कलाकार कहां गाएगा। टूटती धरोहरों और सूखती नदियों पर विचार नहीं हुआ, फिर भी आंसुओं के टापुओं पर इक्का-दुक्का विधायकों ने विस्थापितों के पुनर्वास का बीड़ा उठा ही लिया। विधायक प्राथमिकताओं में फिर कहीं जब आशाएं उंडेली गईं, तो पुराने ढर्रे पर न जाने कितने दफ्तरों के नींव पत्थर खोजे गए और सामान्य मांग पत्र की तरह हिमाचली विजन भी एक सीमित बजट की धुरी में घूमता और अरदास करता देखा गया।


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