कनाडाई पीएम की उपेक्षा क्यों ?

By: Feb 23rd, 2018 12:05 am

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो आजकल भारत के प्रवास पर हैं। कनाडा को ‘छोटा हिंदोस्तान’ माना जाता रहा है, क्योंकि वहां भारत मूल के 16 लाख से अधिक नागरिक बसे हैं। कनाडा में करीब पांच लाख सिख भी हैं। भारतीयों का वर्चस्व ऐसा है कि कनाडा सरकार में चार सिख मंत्री हैं, जिनमें रक्षा मंत्री भी शामिल हैं। वे दिन दूर नहीं लगते, जब कनाडा का प्रधानमंत्री भी भारत मूल का होगा! ऐसे देश के प्रधानमंत्री को हवाई अड्डे पर एक राज्यमंत्री ने रिसीव किया। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी शैली के मुताबिक प्रधानमंत्री ट्रूडो को न तो गले लगाया, न ही साबरमती के किनारे झूला झुलाया और न ही गांधी धाम जाकर चरखा चलवाया। अभी तक दोनों प्रधानमंत्रियों में द्विपक्षीय संवाद भी नहीं हुआ है। बताया गया है कि प्रधानमंत्री मोदी कनाडाई प्रधानमंत्री से 23 फरवरी को मुलाकात करेंगे और शिखर वार्ता होगी। वह मुलाकात भी इसलिए जरूरी लगती है, क्योंकि उस दिन कनाडाई प्रधानमंत्री का प्रवास समाप्त होना है। ट्रूडो अपने परिवार समेत ताजमहल देखने गए, तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी नदारद रहे। ऐसा लगा मानो कोई व्यक्ति छुट्टियों में अपने परिवार के साथ घूमने निकला हो! ट्रूडो सामान्य व्यक्ति नहीं, एक देश के प्रधानमंत्री हैं, लिहाजा प्रधानमंत्री मोदी के समकक्ष भी हैं। माना जा रहा है कि भारत ने कनाडाई प्रधानमंत्री के दौरे को अहमियत नहीं दी, लिहाजा सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या इसकी वजह यह है कि ट्रूडो खालिस्तान समर्थक माने जाते हैं। कनाडा में खालिस्तानियों के जो जलसे हुए हैं या खालसा डे पर परेड के आयोजन होते रहे हैं, उनमें भिंडरावाले के चित्र प्रदर्शित किए जाते रहे हैं। कनाडा के प्रधानमंत्री उन जलसों में शिरकत करते रहे हैं। क्या भारत सरकार को लगता है कि ट्रूडो खालिस्तान के हमदर्द हैं? कनाडाई प्रधानमंत्री पंजाब में अमृतसर भी गए। स्वर्ण मंदिर में उनका भव्य स्वागत किया गया। उन्होंने परिवार समेत मत्था टेका और प्रसाद चखा। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंदर सिंह के साथ संवाद के दौरान खालिस्तान का मुद्दा भी उठा। मुख्यमंत्री ने पीएम ट्रूडो को ‘ए’ श्रेणी के नौ आतंकियों की सूची भी सौंपी, जो कनाडा में बैठकर पंजाब में नफरत फैलाने और अपराधियों को हथियार मुहैया कराने के साथ-साथ आर्थिक मदद भी कर रहे हैं। वे पंजाब में युवाओं और बच्चों को कट्टरपंथी बनाने की कोशिशें करते रहे हैं। लेकिन कनाडाई प्रधानमंत्री ने दावा किया कि उनका देश अलगाववाद के समर्थन में नहीं है। फिर भी वह लौटकर इस मुद्दे पर गौर करेंगे। सवाल है कि क्या कनाडाई प्रधानमंत्री नहीं जानते कि खालिस्तान विवाद क्या है? क्या उन्हें जानकारी नहीं है कि आतंकवाद के उस प्रारूप में कितने मासूम लोग मारे गए और खाड़कुओं को कनाडा में पनाह दी जाती रही? यह भारत-कनाडा के बीच का कड़वा सच है, लेकिन यह भी सच है कि कनाडा भारतीयों का दूसरा घर है। कनाडा खुली बाहों से भारतीयों का स्वागत करता रहा है। अब दोनों प्रधानमंत्रियों में जब संवाद होगा, तो सभी मुद्दे अपनी व्यापकता के साथ उठेंगे, लेकिन यह मानना उचित नहीं है कि भारत के प्रवास पर कनाडाई प्रधानमंत्री की उपेक्षा की गई है। मोदी सरकार के अभी तक के कार्यकाल में 200 से अधिक विश्व नेता भारत आए हैं। यदि उनमें से चार विश्व नेताओं-बराक ओबामा, शी जिनपिंग, शिंजो आबे और बेंजामिन नेतन्याहू की अगवानी का मुद्दा छोड़ दिया जाए, तो अन्य नेताओं का स्वागत प्रोटोकॉल के मुताबिक ही किया गया है। इन चार विश्व नेताओं के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने अपने समीकरणों को बुलंदियां देना चाहा होगा। वे सबसे ताकतवर और समृद्ध देशों के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री रहे हैं, लिहाजा प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी अगवानी के लिए प्रोटोकॉल को भी तोड़ा। इसे मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए। दरअसल महत्त्वपूर्ण यह है कि कृषि, ऊर्जा, संचार, साइबर और मानव संसाधन आदि क्षेत्रों में कनाडा भारत का जो सहयोग करता रहा है, उनका आगे विस्तार होगा या नहीं। और यह दोनों प्रधानमंत्रियों के संवाद के बाद ही तय होगा। लिहाजा द्विपक्षीय रिश्तों में खटास वाली टिप्पणियां नहीं करनी चाहिएं।


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