कश्मीर में जंग के हालात

By: Feb 8th, 2018 12:02 am

श्रीनगर के महाराजा हरिसिंह अस्पताल में भी आतंकी हमला हो गया। लश्कर-ए-तोएबा का आतंकी अबु हंजाला उर्फ मोहम्मद नवीद जट पुलिस की गिरफ्त से छूट कर फरार हो गया। हमारे दो पुलिसिया जवान ‘शहीद’ हो गए और कुछ जख्मी भी हैं। आतंकी का इस तरह भागना और आतंकियों का घात लगाकर हमला करना भारी चूक है-खुफिया और प्रशासनिक स्तर की। यह कश्मीर की राजधानी का यथार्थ है। अस्पताल अभी तक सुरक्षित माने जाते रहे हैं, क्योंकि वे मरते हुओं को जिंदगी प्रदान करते हैं। कहा जा रहा है कि अस्पताल के भीतर ही आतंकी छिपे थे। यदि ऐसा है, तो कश्मीर में कोई भी जगह सुरक्षित नहीं है। नियंत्रण रेखा पर वैसे ही आतंकी बड़ी संख्या में माजूद हैं। एक तरफ ‘बैट’ फौजी दस्ते की कार्रवाई को अंजाम देने के लिए आतंकी मौजूद हैं, तो दूसरी तरफ जैश-ए-मोहम्मद के आठ-दस आतंकी मोर्चा संभाले हैं, तो कहीं बर्फ के रास्ते आतंकी कश्मीर में घुसपैठ कर रहे हैं। हमें यकीन है कि सेना और सुरक्षा बलों को ऐसी मोर्चेबंदी की खबरें होंगी और जवान चौकस होंगे। नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर और उसके आसपास जंग के हालात हैं। अभी तो शहीद कैप्टन कुंडु और अन्यों की चिताएं भी शांत नहीं हुई होंगी और आतंकियों ने श्रीनगर के मुख्य अस्पताल में ही हमला बोल दिया। कश्मीर में आतंकवाद है, यह एक सामान्य सी बात है। कश्मीर में हमारी सेना, सुरक्षा बल और स्थानीय पुलिस आतंकियों से लड़ रहे हैं, यह भी हकीकत है। पाकिस्तान का मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा, उसके टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे, गृह मंत्री राजनाथ सिंह के ये बयान अब ‘जुमले’ लगते हैं। ये जुमले आखिर कब तक चलेंगे? हमने सर्जिकल स्ट्राइक भी करके देख ली, एक नहीं, कई बार, लेकिन सीमापार से आक्रामक हमले जारी हैं। लगातार बड़े मोर्टार फेंके जा रहे हैं, गोलाबारी और गोलीबारी से सरहदी इलाके बारूद की गंध देने लगे हैं। अब तो मिसाइलें भी छोड़ी जाने लगी हैं। मवेशी मर रहे हैं, लोग जख्मी हो रहे हैं, घरों की दीवारें छलनी हो रही हैं और हजारों लोगों का सुरक्षित स्थानों तक पलायन जारी है। मोदी सरकार के दौरान ही 354 सैनिक और पुलिसवाले हताहत हो चुके हैं। आखिर धैर्य की भी कोई सीमा होगी? सरकार क्या सोच रही है? पाकिस्तान की ओर से संघर्ष विराम के उल्लंघन जारी हैं। नए साल 2018 में ही अभी तक 160 से अधिक बार पाकिस्तान या उसके भड़ुए आतंकी संघर्ष विराम का उल्लंघन कर चुके हैं। ये जंग के हालात नहीं हैं, तो फिर क्या है?  आखिर पाकिस्तान की इस भूमिका और कश्मीर के सरहदी इलाकों के हालात का समाधान क्या है? कश्मीर में हमारी मोर्चेबंदी क्या और कैसी हो? बेशक सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत का दावा है कि पाकिस्तान का चार गुना नुकसान किया जा चुका है। सेना के ही सूत्रों का खुलासा है कि बीते साल के दौरान 130-140 पाकिस्तानी फौजी मारे गए हैं, लेकिन देश के आम नागरिक के एहसास को महसूस कीजिए। उसे जो भी दिख रहा है, वे शहीदों के ताबूत हैं, परिजनों के विलाप हैं, जनता का आक्रोश और गुस्सा है। कमोबेश सेना के पक्ष की पुष्टि के लिए कुछ तो दिखाएं। यदि हमारी सेना, पाकिस्तानी फौज की तुलना में, सशक्त और आक्रामक है, तो आतंक के पिठ्ठू कश्मीर में लगातार घुसपैठ कैसे कर रहे हैं? यदि एलओसी और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर जंग के हालात हैं, तो फिर भारतीय सेना को किसके इशारे की प्रतीक्षा है? प्रधानमंत्री और गृह मंत्री तो बार-बार खुली छूट के दावे करते रहे हैं। एक बार निर्णायक जंग होने दीजिए। हमारा भी नुकसान हो, लेकिन पाकिस्तान के अहम इलाके जरूर ‘राख’ हो जाने चाहिएं। हालांकि हमारे राजनेता और कुछ रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि जंग ही आखिरी समाधान नहीं है। कश्मीर में पत्थरबाजों की एक पूरी जमात पैदा हो गई है, अलगाववादी अलग हैं, पढ़े-लिखे नौजवानों में 126 ऐसे हैं, जो आतंकवाद की धारा के साथ जुड़ चुके हैं। यह आंकड़ा मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का है। क्या सेना ही ऐसे आतंकी पैदा कर रही है? यदि जंग ही कोई समाधान नहीं है, तो 2003 जैसा पाकिस्तान पर हमला किया जाए, जिसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति मुशर्रफ बिलबिलाता हुआ भारत आया था और संघर्ष विराम की गुहार की थी। दरअसल पाकिस्तानी फौज सिर्फ ताकत की भाषा ही समझती है। यदि वैसा हमला या एक और सर्जिकल स्ट्राइक करनी है, तो भी नीति तैयार करनी होगी। शायद मोदी सरकार और सेना ऐसी रणनीति पर विमर्श कर रहे होंगे! हमें प्रतीक्षा रहेगी, क्योंकि कश्मीर का अब अंतिम समाधान निकालना ही पड़ेगा।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App