कहानी : नाम का महत्त्व

By: Feb 18th, 2018 12:05 am

‘‘फैंसी बल्बों की लडि़यों की चकाचौंध कितनी अच्छी लगती है, आजकल दिवाली पर और कई दूसरे त्योहारों में यह रोशनी कितनी सुंदर लगती है मां!’’ 10 वर्षीय दीपक ने अपनी मां से कहा। मां शाम का खाना बनाने के लिए सब्जी काट रही थी। मां ने बेटे को पास बुलाया और पूछा- ‘‘बेटा तुम जानते हो तम्हारा नाम क्या है?’’ दीपक अनमने ढंग से-यह भी कोई पूछने की बात है? क्या आप नहीं जानती मेरा नाम? आपने ही तो रखा है ‘दीपक’। बेटे के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए मुस्कुराते हुए- ‘‘हां बेटा, मैं तो जानती हूं, पर मैं कहती हूं तुम भी जानो’’ मां ने कहा। बेटा मां की बात पर ध्यान न देकर मुंह बना कर बोला-‘‘मां मेरी समझ में आपकी बात नहीं आती, मैं तो सामने फैंसी लाइट को देखकर सोच रहा था कि हमें भी अपने घर में ऐसी लाइट लगानी है और आप हैं कि मेरे नाम को लेकर बैठ गई जिसका मेरी बात से कोई लेना-देना नहीं।’’ मां उठकर रसोई घर में चली गई और सब्जी बनाने लगी। बेटा भी पीछे-पीछे आ गया। इधर-उधर देखकर फिर जिद्द करके पूछने लगा।

मां! मां! बताओ न मैं भी ऐसी फैंसी लाइट खरीद लाऊं। मां ने सब्जी बना कर रख दी और बेटे की ओर मुड़ कर बोली-‘‘तुमने स्कूल का काम कर लिया बेटा?’’ दीपक जिद्द करते हुए खीझकर बोलने लगा- ‘‘मां पहले मैंने आपसे जो पूछा उसका उत्तर दो। मुझे वैसी ही फैंसी लाइट खरीदनी है। खरीद लूं?’’ मां ने अपनी बात बड़े प्यार से रखते हुए कहा-‘‘पहले मैंने आपसे कुछ पूछा था, उसका जबाव दो।’’ बेटा चिढ़ते हुए-‘‘क्या? स्कूल का काम।’’ मां-‘‘नहीं तुम्हारा नाम।’’ ‘‘मेरा नाम?’’ बेटे ने हैरानी से दोहराया। मां ने कहा-‘‘हां तुम्हारा नाम’’।

मां ने बेटे को पकड़ा और प्यार से बिस्तर पर बिठाया और बोली-‘‘बेटा दीपक! मैं तुम्हें कुछ बता रही हूं, पहले उसे सुनो, फिर जो खरीदना होगा, खरीद लाना।’’

दीपक ने उस समय अपनी मां के स्पर्श में ऐसा आकर्षण और प्रेम महसूस किया कि वह कुछ बोला नहीं, चुपचाप मां की बात सुनने बैठ गया और मां के मुंह की तरफ देखने लगा। मां उसे उस समय केवल अपनी मां नहीं लगी, पल भर के लिए उसे वह प्यारा स्पर्श ईश्वरीय प्रतीत हुआ जैसे कोई दिव्य शक्ति उसे दुलार रही हो। मानो वह इस स्पर्श को बिना हिले डुले महसूस करना चाहता हो, वह अपनी मां के दिव्य रूप को अपलक देखना चाहता हो। मां बच्चे के मासूम चेहरे को देखकर मुस्कराई और कहने लगी-बेटा तुम्हारा नाम जानते हो हमने दीपक क्यों रखा? बेटे ने मना करते हुए सिर हिलाया और पहले जैसी स्थिति में मां को टकटकी लगाकर देखता रहा।

मां ने सिर पर हाथ फेर कर फिर पूछा-‘‘क्या तुमने दीपक देखा है?’’ बेटा बोला-‘‘वही न जो हम दिवाली पर जलाते हैं, जो मिट्टी के बने होते हैं और आप शाम को तुलसी के पास रोज ही तो मिट्टी का दीपक जलाते हो।’’ मां-‘‘बिल्कुल सही कहा तुमने। बेटा! दस दीपक का महत्त्व समझते हो?’’ नहीं मां! वह क्या है? मां-‘‘बेटा! दीपक जलाने के लिए उसमें घी या तेल डाला जाता है। एक रूई की बत्ती डाली जाती है और वह दीपक तब तक जलता रहता है जब तक उसमें घी अथवा तेल रहता है, आप चाहो तो अखंड ज्योति भी जला सकते हो। उसमें डाली गई बत्ती जितनी सही होगी, वह उतनी ज्यादा देर जलेगा। दीपक हमारी आस्था और श्रद्धा का प्रतीक होता है जो निरंतर जलता है।’’

मां ने सामने वाले घर की ओर इशारा करते हुए कहा-‘‘देखो वो लडि़यां जो तुम देख रहे हो, कभी जल रही हैं, कभी बुझ रही हैं और देखने में भी सुंदर लग रही हैं, परंतु एक दीपक से हम कई और दीपक जला सकते हैं, लेकिन एक बार लड़ी का बल्ब फ्यूज हो गया तो दोबारा दूसरे बल्ब से उसे जलाया नहीं जा सकता। बेटा! इसलिए हमने आपका नाम दीपक रखा है ताकि तुम स्वयं जल कर दूसरों को प्रकाशित कर सको। अपने साथ दूसरों का भी कल्याण कर सको।’’ दीपक के मन पर मां की बात का जादू सा असर हुआ। उसका चेहरा चमक उठा, वह मां के गले लग कर कहने लगा-‘‘मां हम ढेर सारे दीपक ही दीपक सारे घर में जला देंगे, जिससे हमारे घर में शुद्ध और पवित्र रोशनी होगी, बनावटी और दिखावे की नहीं।’’ मां ने दीपक के माथे को चूमा-‘‘बेटा! तुम्हें अपने नाम का अर्थ समझ आ गया न?’’

बेटा-‘‘हां मां! मैं तुम्हारी भावनाओं और विचारों की बत्ती लेकर तुम्हारे संस्कारों के घी से जलाया गया दीपक हूं, जिसे तुमने केवल अपने लिए नहीं, बल्कि सबके लिए बनाया है। मां! मैं अब से पहले अपने नाम के महत्त्व को कभी नहीं जानता था, पर अब मैं इसके अर्थ को सार्थक करने का हरसंभव प्रयास करूंगा। आप दुनिया की सबसे अच्छी मां हो।’’

-प्रियंवदा, मकान नं. 273/11, पुराना बाजार सुंदरनगर, जिला मंडी, हिप्र


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App