काठगढ़ महादेव

By: Feb 10th, 2018 12:10 am

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के इंदौरा उपमंडल में काठगढ़ महादेव का मंदिर स्थित है। इस मंदिर को जाने के लिए जालंधर जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित कस्बा मीरथल से और दूसरा पठानकोट से डमटाल, कंदरोड़ी, इंदौरा होते हुए काठगढ़ पहुचा जा सकता है। यह विश्व का एकमात्र मंदिर है, जहां शिवलिंग ऐसे स्वरूप में विद्यमान है, जो दो भागों में बंटा हुआ है। ग्रहों और नक्षत्रों के परिवर्तित होने के अनुसार इन दोनों भागों के मध्य का अंतर घटता-बढ़ता रहता है। शिव पुराण में वर्णित कथा- एक बार ब्रह्मा और विष्णु के मध्य श्रेष्ठता का विवाद उत्पन्न हो गया और दोनों दिव्यास्त्र लेकर युद्ध हेतु उन्मुख हो उठे। यह भयंकर स्थिति देख शिव वहां आदि अनंत ज्योतिर्मय स्तंभ के रूप में प्रकट हो गए, जिससे दोनों देवताओं के दिव्यास्त्र स्वतः ही शांत हो गए। ब्रह्मा और विष्णु दोनों उस स्तंभ के आदि, अंत का मूल जानने के लिए जुट गए। विष्णु शुक्र का रूप धरकर पाताल गए, मगर अंत न पा सके। ब्रह्मा आकाश से केतकी का फूल लेकर विष्णु के पास पहुंचे और बोले, मैं स्तंभ का अंत खोज आया हूं, जिसके ऊपर यह केतकी का फूल है। ब्रह्मा का यह छल देखकर शंकर वहां प्रकट हो गए और विष्णु ने उनके चरण पकड़ लिए। तब शंकर ने कहा कि आप दोनों समान हैं। यही अग्नि तुल्य स्तंभ काठगढ़ के रूप में जाना जाने लगा। ईशान संहिता के अनुसार इस शिवलिंग का प्रादुर्भाव फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात्रि को हुआ था। शिव का वह दिव्य लिंग शिवरात्रि को प्रकट हुआ था इसलिए लोक मान्यता है कि काठगढ़ महादेव शिवलिंग के दो भाग भी चंद्रमा की कलाओं के साथ करीब आते और दूर होते हैं। शिवरात्रि का दिन इनका मिलन माना जाता है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि- विश्वविजेता सिकंदर जब पंजाब आया, तो प्रवेश से पूर्व मीरथल नामक गांव में पांच हजार सैनिकों को खुले मैदान में विश्राम की सलाह दी। उसने देखा कि एक फकीर शिवलिंग की पूजा में व्यस्त था। उसने फकीर से कहा, आप मेरे साथ यूनान चलें। मैं आपको दुनिया का हर ऐश्वर्य दूंगा। फकीर ने सिकंदर की इस बात को अनसुना करते हुए कहा, आप थोड़ा पीछे हट जाएं और सूर्य का प्रकाश मेरे तक आने दें। फकीर की इस बात से प्रभावित होकर सिकंदर ने टीले पर काठगढ़ महादेव का मंदिर बनाने के लिए भूमि को समतल करवाया और चारदीवारी बनवाई। इस चारदीवारी के ब्यास नदी की ओर अष्टकोणीय चबूतरे बनवाए, जो आज भी यहां हैं।अर्द्धनारीश्वर का रूप- दो भागों में विभाजित आदि शिवलिंग का अंतर ग्रहों एवं नक्षत्रों के अनुसार घटता-बढ़ता रहता है और शिवरात्रि पर दोनों का मिलन हो जाता है। यह पावन शिवलिंग अष्टकोणीय है तथा काले भूरे रंग का है। शिव रूप में पूजे जाते शिवलिंग की ऊंचाई 7-8 फुट है जबकि पार्वती के रूप में अराध्य हिस्सा 5-6 फुट ऊंचा है। शिवरात्रि पर प्रत्येक वर्ष यहां पर तीन दिवसीय भारी मेला लगता है। शिव और शक्ति के अर्द्धनारीश्वर स्वरूप श्री संगम के दर्शन से मानव जीवन में आने वाले सभी दुःखों का अंत हो जाता है।                                                                                                                         -गगन ललगोत्रा, भंगाला


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