गुब्बारे ले लो गुब्बारे….

By: Feb 4th, 2018 12:05 am

गली में गुब्बारे वाला था। नैना ने उसकी आवाज सुनी और दौड़ कर बाहर आई। गुब्बारे वाले के हाथ में पांच गुब्बारे थे। दो लाल, एक पीला, एक हरा और एक गुलाबी। एक गाड़ी भी थी। गाड़ी पर पीली छतरी थी। छतरी बड़ी थी। सबको छाया देती थी। गाड़ी में रंग -बिरंगे गुब्बारे भरे हुए थे। नैना ने सोचा वह अपनी फ्राक जैसा लाल गुब्बारा लेगी।

मुझे एक गुब्बारा चाहिए, नैना ने कहा।

क्या तुम्हारे पास पैसे हैं, गुब्बारेवाले ने पूछा।

लाल गुब्बारा कितने का है। मैं मां से पैसे ले कर आती हूं, नैना ने कहा।

दो रुपए ले कर आना, गुब्बारेवाले ने कहा।

नैना मां के पास से पैसे लेकर आई। गुब्बारे वाले को पैसे दिए और लाल गुब्बारा खरीदा।

गुब्बारा लेकर नैना गली में खेलने लगी। गली में भीड़ नहीं थी। लाल गुब्बारा पतंग की तरह लहरा रहा था। नैना धागे को अंगुली पर लपेट लेती, तो गुब्बारा उसके पास आ जाता। वह उसको गाल से लगाती तो नरम-नरम लगता। रगड़ती तो मजेदार आवाज करता। वह धागे को छोड़ देती तो लाल गुब्बारा फिर से दूर आसमान में उड़ने लगता। वह दौड़ती तो गुब्बारा भी साथ-साथ ऊपर चलता।

गली में खेलना नैना को अच्छा लगता था। खेल में बड़ा मजा था। नैना देर तक खेलती रही। लाल गुब्बारा उसका दोस्त बन गया। उसने लाल गुब्बारे का नाम ‘लालू’ रख दिया।

‘बहुत देर हो गई नैना, खेलना बंद करो और खाना खा लो। मां ने भीतर से आवाज दी।

नैना को भी भूख लग रही थी। आती हूं मां, नैना ने जवाब दिया। लेकिन वह लाल गुब्बारे के साथ खाना कैसे खाएगी, नैना ने सोचा। उसने गुब्बारे के धागे को दरवाजे की कुंडी से बांध दिया। लालू, मैं खाना खा लूं तब तक तुम यहीं रहना। बाद में हम दोनों मिल कर फिर खेलेंगे। नैना ने कहा।

शायद नैना ठीक से बांध नहीं पाई। धागा खुल गया और लाल गुब्बारा आसमान में उड़ गया।

नैना उसको पकड़ने के लिए दौड़ी, पर वह ऊपर जा चुका था। नैना धागा नहीं पकड़ पाई। उसकी आंखों में आंसू आ गए। वह रोने लगी। मां ने कहा, रो मत। कल नया गुब्बारा ले लेना।


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