गुरु बिन ज्ञान नहीं

By: Feb 17th, 2018 12:05 am

अवधेशानंद गिरि

जन्म-जन्मांतर के संस्कारों के बाद ही सद्गुरु की प्राप्ति होती है। इसलिए गुरु की सच्चे मन से सेवा करनी चाहिए और उनसे ज्ञान की प्राप्ति कर जीवन की समस्त विसंगतियों का शमन करना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसा करते हैं, सद्गुरु उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं…

यह देश गुरुओं का देश है, सतपुरुषों का देश है। भारत सदियों से विश्व गुरु रहा है। गुरु अर्थात विचार सत्ता, ज्ञान सत्ता और प्रकाश सत्ता है। जिसके पास विचारों का प्रकाश है, उसी का जीवन सार्थक है। ज्ञान हमारे भीतर में छुपी अनंतता और विराटता का बोध कराने वाला तत्त्व है। सद्गुरु एक ऐसा प्रथम दीप है जिससे असंख्य दीप प्रज्वलित हो सकते हैं। दुनिया में एक सद्गुरु हजारों-लाखों सुपात्र शिष्यों को ज्ञानामृत और आशीष देकर अपने जैसे तमस् का तिरोहण करने वाले सूर्य बना सकते हैं, लेकिन अनेक शिष्य मिलकर एक सद्गुरु का स्वरूप तैयार नहीं कर सकते। लाखों-करोड़ों वर्षों की तपस्या के बाद किसी व्यक्ति के भीतर गुरुतत्व प्रकट होता है। गुरु ही परमात्मा का दूसरा स्वरूप है, क्योंकि गुरु बिना ज्ञान अर्जित नहीं होता और बिना ज्ञान के हम परमात्मा की प्राप्ति नहीं कर सकते हैं। गुरु कृपा मात्र से हमारा जीवन आनंद एवं प्रकाश से परिपूर्ण हो जाता है। गुरु की दिव्य दृष्टि से हम अचेतन से चेतन की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर एवं स्वार्थ से परमार्थ की ओर अग्रसर होते है। गुरु यानी मर्यादा। यदि आपके पास मर्यादा है और आप किसी के शील, संयम एवं उसकी मर्यादा का हनन नहीं कर रहे हैं तो ही आप आध्यात्मिक हैं। पूज्य आचार्य जी के अनुसार आत्मानुशासन, सह अस्तित्व समता, सर्वभूत हितेरता जैसे उच्चस्तरीय भाव के कारण ही संपूर्ण विश्व हमारी और झांक रहा है। मानव का लक्ष्य भगवान को पाने के लिए ज्ञान प्राप्त करना है। इसके लिए गुरु की आवश्यकता होती है। किसी भी प्रकार की कला, संस्कृति, शास्त्र आदि सीखने के लिए शिक्षक की जरूरत होती है। उसी प्रकार आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि अज्ञानरूपी अंधकार को दूर करने के लिए एवं कल्याण के पद पर चलने की प्रेरणा भी गुरु से ही मिलती है। समस्त लोक व्यवहार को पूर्ण करते हुए परमात्मा की ओर प्रवृत्त हो आत्मकल्याण को प्राप्त करना ही गुरु पूजा का प्रथम लक्ष्य है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को स्वार्थ त्याग कर गुरु  के बताए मार्ग पर चलकर समाज कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि गुरु पूर्णिमा अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का पर्व है, क्योंकि गुरु ही परमात्मा से मिलने का मार्ग शिष्य को दिखाते हैं और गुरु के सान्निध्य में साधना करने से जीवन में निष्काम भक्ति अवतरित होती है, जो मोक्ष का मार्ग दिखाती है। जन्म-जन्मांतर के संस्कारों के बाद ही सद्गुरु की प्राप्ति होती है। इसलिए गुरु की सच्चे मन से सेवा करनी चाहिए और उनसे ज्ञान की प्राप्ति कर जीवन की समस्त विसंगतियों का शमन करना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसा करते हैं, सद्गुरु उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। सद्गुरु चरणों का ध्यान, उनका पूजन, सेवा और सत्कार करते समय मन में जितनी श्रद्घा आस्था और प्रेम भाव होगा उतनी ही शीघ्रता से कल्याण के कपाट खुलते जाएंगे। गुरु अपने शिष्य को एक ऐसी सुदृष्टि प्रदान करते हैं जिससे उसकी सृष्टि बदल जाती है। गुरु और शिष्य का रिश्ता समर्पण के आधार पर टिका होता है।

 


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