गोवंश का सहारा बनें मंदिर ट्रस्ट

By: Feb 10th, 2018 12:05 am

रणजीत सिंह राणा

लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता हैं

वेदों में गोमाता को विश्वरूपा एवं विश्ववंदया बताया गया है। यह हमारे जीवन की सर्वस्व निधि हैं। भारतीय पुरातन परंपरा, संस्कृति, सभ्यता, मर्यादा एवं धर्म की प्रतीक स्वरूप हैं। अनादि वैदिक सनातन धर्म एवं सभी धर्मों के कार्य गोमाता के बिना संपादित नहीं हो सकते। यह हमारी परम पूज्या, परम वंदनीय, परमाराध्य हैं। यह परम दिव्य अमृत को प्रदान करने वाली हैं, यह हमारे पोषण की एकमात्र आधारशिला हैं। इनके दूध, दही, मक्खन, घृत, गोबर और गोमूत्र सभी हमें बलिष्ठ, ओजसंपन्न, कांतिमान, पवित्र, स्वस्थ, सद्बुद्धिमान बनाने वाले हैं। इनके आश्रय से मानव इहलौकिक एवं परलौकिक दिव्यानंद की अनवरत कामना करते हैं तथा देश में आने वाले भीषण संकटों का निवारण भी इन्हीं के बल पर करने में पूर्ण समर्थ होते हैं। हमारे वेद, स्मृति, पुराणादि सकल शास्त्रों में इनकी महिमा, इनके महत्त्व का वर्णन है। यह केवल अवध्या ही नहीं, अपितु परम वंदनीया, प्रातः स्मरणीय हैं। गोमाता हमारे आचार, पवित्रता और आरोग्य की आधाररूपा हैं। गोवंश की श्रमशक्ति द्वारा पृथ्वी से अन्नादि की विपुल उत्पत्ति होती है। गोबर से यज्ञभूमि, गृहस्थी का आंगन और वानप्रस्थियों की कुटिया पवित्र होती है। गोघृत द्वारा यज्ञादि में देवों की तृप्ति होती है, गो दुग्ध मनुष्य के लिए तेज, बल, बुद्धि और स्फूर्तिदायक है। गोबर, गो दुग्ध तथा गोघृत की उपयोगिता तो है ही, साथ ही गाय के दान से मनुष्य सहज ही भव वैतरणी को पार करने का अवसर प्राप्त कर लेता है। ब्रह्मांड पुराण, पद्म पुराण, स्कंद पुराण, भविष्य पुराण आदि अनेक पुराणों में गोमाता को शक्तिरूप में निरूपित किया गया है। यहां तक कि परम परब्रह्म भगवान श्रीकृष्ण ने अपना रामरत बाल्यकाल गोसेवा में ही व्यतीत कर दिया था और इसलिए उनका नाम श्री गोपाल आज भी प्रसिद्ध है। ऐसी महिमामयी गोमाता आज अकालग्रस्त क्षेत्रों में अत्यंत शोचनीय अवस्था में अपना जीवनयापन कर रही हैं। गो की महिमा से अज्ञात व्यक्ति अकालग्रस्त क्षेत्रों में आज भूख से व्याकुल गोमाता को लोग त्याग रहे हैं और भैंसों का पालन-पोषण कर रहे हैं। यह कैसी विडंबना है? संभवतः भूख और कष्ट से जर्जर गोविंद की गाय क्रंदन को हम सुन नहीं पा रहे हैं। वैदिक संस्कृति की पोषक, जिसका दर्शन पुण्यास्पद है, जो कष्ट सहिष्णु है, उसके प्रति ऐसी उपेक्षा चिंतनीय है। गो दुग्ध की महिमा का बखान तो हम करते हैं, पर वह गो संरक्षण के बिना कैसे संभव होगा? राष्ट्र की समृद्धि दायिनी गाय विवश हो आज अपने अश्रुपूर्ण नेत्रों से हमारी ओर निहार रही है। ऐसे समय में गोमाता की रक्षा करना प्रत्येक भारतवासी का धार्मिक एवं नैतिक कर्त्तव्य है। यह एक महान यज्ञ है, जिसमें सभी को सक्रिय सहयोग देना है। जिनकी गोमाता के प्रति श्रद्धा, निष्ठा है, वे इस व्रत को ग्रहण करेंगे तभी यह सफल हो सकेगा। जिस देश में गोरक्षण, गोसेवा होती है, वह कभी भी संक्रामक रोग, अर्थाभाव, अशांति एवं असुख से आक्रांत नहीं होता। यथार्थतः देखा जाए तो गोमाता के बिना जीवन, जीवन नहीं है, केवल असुरता है। बड़े दुख की बात यह है कि हमारे हिमाचल प्रदेश में भी बेसहारा गउओं और बैलों की स्थिति ठीक नहीं है। प्रदेश में सरकारी ताजा आंकड़ों के अनुसार लगभग 103 गोशालाएं बनाई गई हैं। इनमें से लगभग 98 गोशालाएं निजी तौर पर संस्थाओं द्वारा और लगभग पांच गोशालाएं सरकारी तौर पर बड़े मंदिर ट्रस्टों द्वारा या प्रदेश सरकार के सहयोग से चलाई जा रही हैं। प्रदेश में गोवंश की दशा को सुधारने के लिए गोसेवा आयोग का गठन किया जाना चाहिए। जितने भी लोगों ने प्रदेश में गाय या बैल पाले हैं, उन सबका रजिस्टे्रशन होना चाहिए। गाय या बैलों के गोवंश कार्ड प्रदेश सरकार द्वारा पंचायतों में बनाए जाएं। उस संबंधी एक रजिस्टर पंचायत प्रधान के पास तथा उस रजिस्टर की एक कापी संबंधित पशु अस्पताल में होनी चाहिए। प्रदेश में जितनी भी गोशालाएं हैं या आगे भविष्य में बनानी हैं, वहां रखे जा रहे गोवंश का भी रजिस्ट्रेशन होना चाहिए।  प्रदेश सरकार विधानसभा में कानून बनाए, ताकि बड़े मंदिर ट्रस्टों की आमदन का 25 प्रतिशत हिस्सा गोशालाओं के निर्माण और रखरखाव के लिए प्रयोग किया जाए। इसके साथ ही बड़े मंदिर ट्रस्टों द्वारा गोवंश कल्याण कोष की स्थापना की जाए तथा मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं से यथायोग्य इस कोष के लिए दान लिया जाए। इस समय जो 22 हजार बेसहारा गऊएं और बैल सड़कों और नदी-नालों के किनारों पर सर्दियों की हाड़ कंपाती ठंड में धक्के खा रहे हैं या किसानों की फसलों को भी उजाड़ रहे हैं, उनके लिए गोसेवा आयोग गो सेवकों की भर्ती करे। प्रत्येक गोशाला में गोबर से जैविक खाद बनाई जाए, ताकि हमारी खेती से रासायनिक खादों का प्रयोग कम किया जा सके। प्रदेश सरकार इस प्रदेश में गोमूत्र आधारित कोई बड़ी आयुर्वेदिक फार्मेसी स्थापित करे, ताकि गउएं और बैल पालने वालों को आर्थिक सहायता भी मिले और लोगों को सही कीमत में आयुर्वेदिक औषधियां भी प्राप्त हों। हरेक जिला पशु अस्पताल में इन बेसहारा या पालतू गोवंश के इलाज के लिए कम एक-एक एंबुलेंस का प्रबंध हो। जो निजी गोशालाएं प्रदेश में संस्थाओं द्वारा चलाई जा रही हैं, उनके रखरखाव के लिए बड़े मंदिर ट्रस्टों की आमदनी से हरेक गोशाला को कम से कम दस लाख रुपए सालाना आर्थिक सहायता दी जाए।  मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर व उनके द्वारा बेसहारा पशुओं के संरक्षण के लिए बनाई गई तीन माननीय मंत्रियों की सब-कमेटी से आशा की जाती है कि इन सुझावों पर आने वाले वार्षिक बजट सत्र में हर हालत में कानून बनाकर इन्हें लागू करवाया जाए, ताकि प्रदेश के किसानों को एक बड़ी राहत मिल सके। यह शुभ कार्य प्रदेश के इतिहास में एक बड़ा मील का पत्थर सिद्ध होगा।


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