ताकि भारत रहे निरोग

By: Feb 20th, 2018 12:05 am

(राजेश कुमार चौहान, सुजानपुर टीहरा)

मानवीय भूलों या बदली जीवन शैली के कारण जिन जानलेवा बीमारियों का जन्म हुआ, उसके लिए इलाज की नई तकनीक को भी इनसान ने विकसित कर लिया है। इनसान के स्वस्थ रहने के लिए वायु, पानी का शुद्ध होना बेहद जरूरी है, लेकिन अफसोस यह कि इनसान ने इनमें अपने स्वार्थ के लिए जहर घोलकर अपनी सेहत और जान का दुश्मन खुद बन गया है। आयुर्वेद भारत की विरासत है। भारत से ज्ञान या दवाइयां निर्मित करने के तौर-तरीके जानकर विदेशियों ने कई असाध्य रोगों से मुक्ति पाई है, लेकिन एलोपैथी के मोह में फंस कर इस कल्याणकारी विधा की भारत ने ही अब अनदेखी करनी शुरू कर दी है। भारत जो गोमूत्र, योग और जड़ी-बूटियों से हर छोटी-मोटी बीमारी का इलाज करने को दुनिया भर में नंबर एक माना जाता था, आज यहां महंगे इलाज के कारण या तो गरीब लोगों की मौत हो जाना या फिर इलाज के जमीन-जायदाद तक गिरवी रखना बेहद अफसोसजनक है। यहां यह बात भी गौर करने वाली है कि आज भी भारत के बहुत से गांवों में लोग देशी दवा पर ज्यादा भरोसा करते हैं। सरकारें इनका उत्पादन बढ़ाने के लिए गांवों की तरफ रुख करें, तो इससे एक तो गांवों के युवाओं को रोजगार मिलेगा, वहीं भारत के गरीब से गरीब जन को भी सस्ता इलाज मिलेगा। आयुर्वेद को इस तरह से अपनाकर ही भारत शत-प्रतिशत निरोगी बन सकेगा।

 


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