दबाव में बांग्लादेश की न्यायपालिका

By: Feb 26th, 2018 12:08 am

कुलदीप नैयर

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं

बांग्लादेश में न्यायाधीश दबाव महसूस कर रहे हैं, क्योंकि ऐसी सूचनाएं हैं कि प्रधानमंत्री शेख हसीना उन पर हेकड़ी जमा रही हैं। एक न्यायाधीश विदेश चला गया है, परंतु उसके लौटने की संभावनाएं कम ही हैं क्योंकि ऐसा बताया जाता है कि यह जज प्रधानमंत्री की हिट लिस्ट में है। इस जज को आशंका व भय है कि अगर वह देश लौटता है तो उसके खिलाफ किसी न किसी तरह की कार्रवाई हो सकती है…

बांग्लादेश में न्यायपालिका इतने दबाव में आ गई है कि यह समझ पाना मुश्किल हो रहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री व विपक्ष की नेता खालिदा जिया को दी गई पांच साल की कैद की सजा कितनी उचित है। वहां पर न्यायाधीश दबाव महसूस कर रहे हैं, क्योंकि ऐसी सूचनाएं हैं कि प्रधानमंत्री शेख हसीना उन पर हेकड़ी जमा रही हैं। एक न्यायाधीश विदेश चला गया है, परंतु उसके लौटने की संभावनाएं कम ही हैं क्योंकि ऐसा बताया जाता है कि यह जज प्रधानमंत्री की हिट लिस्ट में है। इस जज को आशंका व भय है कि अगर वह देश लौटता है तो उसके खिलाफ किसी न किसी तरह की कार्रवाई हो सकती है। वास्तव में, लगभग पूरी की पूरी न्यायपालिका स्थिति से अपने को बचाने की कोशिश में जुटी हुई है। मैं यहां बेगम खालिदा जिया को बचाने की कोशिश नहीं कर रहा हूं, परंतु उनके खिलाफ आए फैसले के पीछे शेख हसीना का हाथ बताया जा रहा है और लोगों में इस फैसले की न्यायिकता व औचित्य पर चर्चा चल रही है।

यह फैसला तर्क की कसौटी पर उनके गले से नीचे नहीं उतर रहा है। विशेष न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस मोहम्मद अख्तर उज्जमान ने उनके खिलाफ फैसला सुनाते हुए कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री को स्वास्थ्य व सामाजिक रुतबे को ध्यान में रखते हुए अल्पावधि का कारावास दिया गया है। इसका मतलब यह हुआ कि दिसंबर में जो आम चुनाव होने जा रहे हैं, उनमें वह भाग नहीं ले सकेंगी। उनके खिलाफ आरोप है कि उन्होंने करीब 21 मिलियन टका अर्थात 1.6 करोड़ रुपए के विदेशी चंदे में गबन किया है। यह चंदा उनके परिजनों द्वारा संचालित जिया अनाथ ट्रस्ट को विदेशी दानवीरों से मिला था। वास्तव में खालिदा जिया व पांच अन्य लोगों, जिनमें उनका बेटा तारीक रहमान भी शामिल है, को दस-दस साल की कैद दी गई है। मामले की सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष ने यह तर्क पेश किया कि खालिदा जिया के पति स्वर्गीय जिया उर रहमान के नाम पर स्थापित किए गए जिया अनाथ ट्रस्ट व जिया चैरिटेबल ट्रस्ट वास्तव में केवल कागजों में ही अस्तित्व रखते हैं। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी प्रमुख खालिदा जिया और उनके तीन सहयोगियों पर जिया चैरिटेबल ट्रस्ट से 31.5 मिलियन टका अर्थात अढ़ाई करोड़ रुपए के गबन का भी आरोप है। कोर्ट का यह फैसला आने के बाद खालिदा जिया ने एक प्रेस कान्फ्रेंस में आरोप लगाया कि उन्हें झूठे मामले में सजा सुनाई गई है तथा सरकार विपक्ष के दमन को बढ़ावा दे रही है। उन्होंने आशा जताई कि कोर्ट उन्हें सभी आरोपों से बरी कर देगी। उन्होंने कहा कि यह एक झूठा केस है, जो कि मुझे व मेरे परिवार के दमन के लिए चलाया गया।

खालिदा ने कहा कि अगर शासकों को प्रसन्न करने के लिए ही फैसले आते रहे, तो इससे कलंक का एक इतिहास बन जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि यह उनके खिलाफ न्यायालय का दुरुपयोग करने का प्रयास है। यह इसलिए किया जा रहा है, ताकि मैं राजनीति, चुनाव व लोगों से दूर रहूं। उन्होंने कहा कि वह सभी परिणाम भुगतने के लिए तैयार हैं। मैं जेल अथवा दंड से भयभीत नहीं हूं। मैं सिर झुकाने वाली नहीं हूं। इसके बावजूद विशेषज्ञ कह रहे हैं कि अगर वह ऊपर के कोर्ट से इस संबंध में नए दिशा-निर्देश नहीं ले पाती हैं, तो इससे उनका राजनीतिक करियर बुरी तरह प्रभावित होगा और वह चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगी। कोर्ट के फैसले की प्रति मिलने के एक दिन बाद उनके वकील ने हाई कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अपील दायर कर दी। वकील अब्दुर रजाक खान द्वारा दायर 1223 पृष्ठों के डोजियर में 25 ऐसे आधार वर्णित किए गए हैं जिनके जरिए यह साबित करने की कोशिश की गई है कि यह मामला महज राजनीतिक है, जो खालिदा जिया के राजनीतिक करियर को तबाह करने के लिए बुना गया है। इसका लक्ष्य मात्र उन्हें चुनाव लड़ने से रोकना है। हालांकि दूसरी ओर प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इन आरोपों का खंडन किया है और अपने अदालती हस्तक्षेप से साफ इनकार किया है। खालिदा के एक अन्य वकील ने बताया कि जैसे ही कोर्ट सुनवाई का शेड्यूल तय करेगा, हम जमानत याचिका दायर कर देंगे।

एक न्यायिक अधिकारी ने कहा कि दो न्यायाधीशों पर आधारित एक खंडपीठ इसी सप्ताह खालिदा की अपील पर सुनवाई शुरू कर देगी। भ्रष्टाचार का यह मामला खालिदा के खिलाफ लंबित कई मामलों में से एक है। उल्लेखनीय है कि खालिदा वर्षों से शेख हसीना की धुर विरोधी रही हैं। वह विपक्ष की सबसे बड़ी नेता हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि वर्ष 2014 में हुए चुनाव का ऐसे ही आरोपों के चलते खालिदा ने बहिष्कार किया था और उस वक्त व्यापक स्तर पर प्रदर्शन भी हुए थे। संभावना है कि खालिदा जिया इस वर्ष चुनाव लड़ने की अनुमति मांगेंगी। हाल ही में विरोध प्रदर्शन के दौरान खालिदा की पार्टी के एक नेता ने कहा था कि उनकी पार्टी खालिदा जिया के बगैर चुनाव में भाग नहीं लेगी। उधर प्रधानमंत्री शेख हसीना का कहना है कि अगर बीएनपी चुनाव का बहिष्कार करती है, तो सरकार कुछ भी नहीं कर पाएगी। उन्होंने कहा कि चाहे बीएनपी चुनाव में भाग ले अथवा न ले, चुनाव तय समय पर दिसंबर में ही होंगे। एक प्रेस कान्फ्रेंस में शेख हसीना ने कहा कि अगर बीएनपी चुनाव से दूर रहती है तो हम क्या कर सकते हैं। हमने यह केस नहीं चलाया, हमने सजा नहीं दी। सजा कोर्ट ने दी है और हम उसे पलट नहीं सकते।

बेगम खालिदा जिया, जो वर्ष 1991 से लेकर तीन बार देश की प्रधानमंत्री रही हैं, पर 30 अन्य आरोप भी हैं। इनमें कुछ भ्रष्टाचार के, तो कुछ देशद्रोह के भी हैं। खालिदा को जब सजा सुनाई गई, तो बीएनपी ने त्वरित कार्रवाई करते हुए उनके बेटे रहमान को पार्टी का कार्यवाहक मुखिया बना दिया। सरकार ने इसकी आलोचना यह कह कर की कि  बीएनपी में नैतिकता का अभाव है। यह प्रशंसा योग्य बात है कि तीसरे विश्व अर्थात विकासशील देशों में न्यायपालिका स्वतंत्र है। पाकिस्तान की ही मिसाल लें तो कुछ समय पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अपने खिलाफ कोर्ट का फैसला आने पर पद से त्यागपत्र दे दिया। कई ऐसे उदाहरण हैं, जब नेताओं को कोर्ट के फैसले आने के बाद अपने पदों से अलग होना पड़ा। ऐसे भी कई उदाहरण हैं जब कोर्ट के फैसले के बाद नेताओं ने प्रतिक्रिया में बड़ी कोर्ट में फैसले के खिलाफ अपील दायर की ताकि जनता के बीच उनकी प्रासंगकिता बनी रहे। वास्तव में प्रणाली में सुधार की जरूरत है ताकि भ्रष्ट राजनेताओं को जीवन भर के लिए पदों के अयोग्य ठहराया जा सके। भारत में सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि अपराधी राजनेताओं को शासन में घुसपैठ नहीं करनी देनी चाहिए। माननीय न्यायालय ने यह बात कार्यपालिका पर छोड़ दी है कि वह प्रणाली में सुधार के लिए आवश्यक परिवर्तन करे। अब तक इस पर काम नहीं हुआ है। ऐसी स्थिति में सुप्रीम कोर्ट कैसे अपेक्षा कर सकती है कि यह काम भविष्य में जरूर होगा।

ई-मेल : kuldipnayar09@gmail.com


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