दो सरकारों का घोटाला

By: Feb 19th, 2018 12:05 am

विश्वविख्यात हीरा कारोबारी नीरव मोदी, मामा मेहुल चोकसी ने पंजाब नेशनल बैंक के जरिए 11,400 करोड़ रुपए का घोटाला किया है। मुद्दा यहीं तक सीमित नहीं है। यह अभी तक का भारतीय बैंकिंग का सबसे बड़ा घोटाला है। घोटाले की शुरुआत 2010 में यूपीए सरकार के दौरान हुई। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने एक आरटीआई के जवाब में खुलासा किया है कि 2012-16 के दौरान 8000 से ज्यादा बैंक फ्रॉड हो चुके हैं। उनका प्रत्यक्ष या परोक्ष नुकसान 10 अरब डालर आंका जा रहा है। एक अन्य अर्थशास्त्रीय आकलन के मुताबिक, भारत में दो लाख करोड़ रुपए से अधिक के बैंक घोटाले हो चुके हैं। यदि घोटालों को ही लें, तो इन राशियों से आठ लाख किसानों के 1.5 लाख रुपए तक के कर्ज माफ किए जा सकते थे। 76 लाख से ज्यादा शौचालय बनाए जा सकते थे। 48 आईआईटी और 12 एम्स स्तर के अस्पताल बन सकते थे। खाने की गारंटी तीन साल तक, बजट की चिंता किए बिना, तय की जा सकती थी। मिड-डे मील और स्वास्थ्य सुरक्षा योजना को भी लागू किया जा सकता था। करीब 2280 किलोमीटर लंबी सड़कें बनाई जा सकती थीं। निश्चित तौर पर यह देश विरोधी, विकास विरोधी घोटाला है। दरअसल यह हमारे बैंकिंग सिस्टम का घोटाला है। यह ऑडिट कमेटियों के ‘बेईमान’ या लापरवाह रवैये का घोटाला है। यह बैंक का ही नहीं, सरकार का भी घोटाला है, क्योंकि पंजाब नेशनल बैंक में 97 फीसदी हिस्सा केंद्र सरकार का है। एलआईसी का भी हिस्सा है, लिहाजा कीचड़ और कांच सिर्फ बैंक पर ही उछाल कर पीछे नहीं हटा जा सकता। यह रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का भी घोटाला है, क्योंकि बैंकों की व्यवस्था, कार्यप्रणाली पर निगाह रखना उसका दायित्व है। और यह यूपीए की मनमोहन सरकार से पनपा, फैला और एनडीए की मोदी सरकार के दौरान भी जारी रहने वाला घोटाला है। सरकार अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकती। करीब 293 गारंटी पत्र (एलओयू) तो मोदी सरकार के दौरान जारी किए गए। सीबीआई ने जो दूसरी एफआईआर दर्ज की है, उसमें भी उल्लेख है कि सबसे ज्यादा 143 गारंटी पत्र 2017 में ही जारी किए गए और 2017-18 में 5000 करोड़ रुपए का घोटाला हुआ। दरअसल पीएनबी के भीतर के घोटाले का ‘खलनायक’ बैंक का प्रबंधन ही है। मुंबई की एक शाखा में सात साल तक एक ही पद पर तत्कालीन उप प्रबंधक गोकुलनाथ शेट्टी बैठा रहा। आखिर क्यों? बैंकिंग नियमों के मुताबिक, कोई भी प्रबंधक स्तर का कर्मचारी दो-तीन साल से अधिक एक ही शाखा में, एक ही पद पर, कार्यरत नहीं रह सकता। बेशक आज शेट्टी बैंक से रिटायर हो चुका है और सीबीआई की रिमांड पर है, लेकिन देश में आम आदमी की गाढ़ी कमाई का पैसा तो लुट चुका है। क्या उसे वापस लाया जा सकता है? क्या ‘घोटाले के चोर’ नीरव मोदी और मेहुल चोकसी को भी पकड़ कर देश लाया जा सकता है? हमें तो ऐसा संभव नहीं लगता, क्योंकि विजय माल्या और ललित मोदी इन दो भगौड़ों के उदाहरण हमारे सामने हैं। माल्या पर करीब 9000 करोड़ रुपए पीने के आरोप हैं और ललित मोदी मनी लांडिं्रग के जरिए 2200 करोड़ रुपए का चूना लगा चुका है। क्या एक पाई भी वापस आई? लिहाजा ऐसे बयान और तसल्लियां फिजूल हैं। गौरतलब यह है कि मई, 2014 में केंद्र में मोदी सरकार बन चुकी थी। तमाम बैंकों, उनके निदेशकों की अदला-बदली की गई होगी। नई सरकार ने नौकरशाहों को भी अपनी तरह से नियुक्त किया। तमाम खुलासे फाइलों में बंद थे, जो मोदी सरकार देख सकती थी, लेकिन करीब चार सालों में न तो खुद बैंकों ने ऐसी गड़बडि़यां देखीं और न ही किसी एजेंसी ने दखल दिया। यह भी अपनी तरह की गंभीर लापरवाही थी या यूं कहा जा सकता है कि जो बैंक घोटाले जारी थे, उनके पीछे आला अफसरों की भी अघोषित, अनदिखी सहमति रही होगी। लिहाजा इस स्तर पर मोदी सरकार भी दोषी है, बेशक उसके मंत्री और प्रवक्ता कुछ भी बयान देते रहें। इस तरह भ्रष्टाचार के मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी का मिथ भी टूटा है। बेशक सरकार में ऐसे घोटाले पनप नहीं रहे हैं, जैसे यूपीए सरकार के दौरान हो रहा था, लेकिन इस बैंकिंग घोटाले ने धारणा बदल दी है और अब यह माना जा सकता है कि घोटाले मोदी सरकार में भी हुए हैं, बेशक कार्रवाई त्वरित आधार पर की जा रही हो। यदि नीरव मोदी और मेहुल चोकसी को किसी भी तरह भारत लाने में मोदी सरकार सफल रहती हो, तो माना जा सकेगा कि प्रधानमंत्री वाकई देश के खजाने के ‘सच्चे चौकीदार’ हैं।


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